गुरुवार, 31 जुलाई 2008

जय भोले और ये दे मारा

किस पुराण में लिखा है की किसी को सताकर भी आप भक्ति कर सकते हैं. सिर्फ़ हरिद्वार जाने से ही वहां का गंगाजल पैदल चलकर लाने से ही भगवान् खुश नही हो जाते. अभी मैंने कंवाद के मेले में जो देखा उसका जिक्र यहाँ कर रहा हूँ जो आप सुनकर दंग रह जायेंगे. मैं अपने घर वापस जा रहा था आश्रम के पास से डाक कांवड़ वाले जा रहे थे एक आदमी गंगाजल लेकर दौड़ रहा था और एक मिनी ट्रक में १५ के लगभग लोग भगवे रंग के ड्रेस में बैठे हुए थे. इस ट्रक के आगे ६ लोग मोटर साइकिल पर सवार थे जिनके हाथ में मज़बूत हान्कियाँ थीं. ये लोग रास्ता खाली करवाने का काम कर रहे थे. मैंने अपनी आंखों से देखा की जय भोले के नाम का नारा लगते ये लोग रास्ता खाली करवाने के लिए तीन चार गाड़ियों के शीशे तोड़ दिए. एक बार मेरा मन हुआ की लावो मैं इन्हे भोले की महिमा बता दूँ पर चुप रहा क्यूँकी ये आस्था का सवाल था. अब हमारे देश में आडम्बर के नाम पर इस तरह से अपने ही लोगों के लिए मुसीबतें खादी कर रहे हैं जो किस हद तक जायज़ है ये सोचने वाली बात है. अब जी गाड़ियों के शीशे टूटे थे वो कहीं इसकी शिकायत भी नही कर सकते क्यूंकि ये आस्था का सवाल था. अब आप ही सोचिये क्या ऐसे दोषियों को सज़ा देने का प्रावधान हमें नही बनाना चाहिए. पता नही क्यूँ जब इस तरह के भोले बने लोगों को मैं देखता हूँ ज़ल भुन जाता हूँ. अरे भइया किसी के लिए कुछ न कर सको तो कम से कम उनका बुरा तो मत करो. भोले सबकी रक्षा के लिए जाने जाते हैं सिर्फ़ आग लगाने के लिए और दंगा फैलाने के लिए नही. अमित द्विवेदी

शनिवार, 26 जुलाई 2008

राफ्टिंग का रोमांचक सफर, जिंदगी में ये भी ज़रूरी है

मैंने पैदल के साथ राफ्ट के साथ।
मैं सबके साथ

एक पिद्दी सा झरना था इसका पानी बहुत मीठा था।


मेरी अब तक सबसे रोमांचक फोटो जिसे मेरे गाइड ने उस समय क्लिक किया जब मैं पहाडी से कूद रहा था। मुझे अब भी भरोसा नही होता की मैं वहां से कूदा कैसे।



मेरी टीम जिसमे कुछ लोग मुंबई और कुछ लोग इस्राइल के थे।




मेरी राफ्टिंग टीम जिसके साथ मैंने राफ्टिंग के कुछ किलोमीटर गुजारे।





गंगा की पावन धारा जिसकी लहरों पर राफ्टिंग करके ज़िंदगी का सबसे अनोखा अनुभव मिलता है।






राफ्टिंग के लिए मेरा राफ्ट तैयार करता मेरा गाइड।







शिवपुरी में बना राफ्टिंग का कैंप यहाँ पर रात में लोग जो राफ्टिंग करते हैं ठहरते हैं। प्रकृति के करीब बना ये कैंप सच में अनूठा है जिसमे रहकर लोग प्रकृति का पूरा आनंद उठाते हैं।








ये लेख मैंने ऋषिकेश से लौटकर लिखा था जिसमे मैंने राफ्टिंग के रोमांचक अनुभवों को बताया था।









शुक्रवार, 25 जुलाई 2008

नासिक की वर्षों पुरानी पांडव गुफा

ये गुफा कुछ यूँ दिखती है बाहर से यहाँ पर नासिक के लोग छुट्टी के दिनों में मस्ती करने के लिए आते हैं। अगर आप भी यहाँ जाना चाहते हैं तो जा सकते हैं
पांडव गुफा की ये मूर्तियाँ कुछ कहती हैं। पर मेरे ड्राईवर अरुण ने जो मुझे बताया उसके अनुसार यहाँ पर पांडवों ने अपना १२ साल का वनवास छुपकर काटा था।

कुछ इस तरह की प्राचीन काल की मूर्तियाँ हैं जिन्हें दखकर लगता है की वर्षों पहले इन्हे ये आकर्षक रूप दिया गया हो।


ज़िंदगी में इन पलों का आना भी उत्सव जैसा होता है.



रास्ता कठिन है पांडव गुफा में जाने का पर मुश्किल नही इस गुफा में जाने के लिए एक किलोमीटर की पहाडी चढ़नी पड़ती है। यहाँ जाने के लिए एक रास्ता बनाया गया है। अगर आप यंग हैं तो पहाडी के चढाई उन भी चढ़ सकते हैं जैसे की मैं चढ़ा।




रविवार, 20 जुलाई 2008

देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान्

एक थे नेता जी वो ग़लत काम करते थे। आतंकियों को मॉल देना उन्हें शरण देना उनकी दिनचर्या में शामिल था. एक दिन एक युवक को जोश आया और उसने नेता जी को मार डाला बस क्या था नेता जी अमर हो गए. और सौभाग्य बस नेता जी जब मूर्ती गांव में लगी और उनके आत्मशांति के लिए गांव वाले एकत्रित हुए तो उस युवक को ही उन्हें माल्यार्पण करने का मौका मिला. पता है उस युवक ने क्या किया. नेता जी को माला पहनते हुए कहा की ये जनता है इसकी यादास्त कमज़ोर है. आज माला पहनते हुए सब ताली बजा रहे हैं. पर कल आपकी इस प्रतिमा पर चिडिया और कबूतर अपना डेरा ज़मायेंगे और इस मूर्ती का इस्तेमाल अपने टॉयलेट के लिए करेंगे. यही नही तब कोई इस जनता के बीच से निकलकर इसकी सफाई करने नही आयेगा. आपको बता दूँ ये कहानी मैंने एक फ़िल्म में घटती देखी है. पर अब समझ में आ रहा है की ये नेता और जनता का नाता कितना पुराना है. कोई रैली हुयी तो जनता कुकुरमुत्ते की तरह किसी शहर की व्यवस्था चौपट करने पहुँच जाती है. उसे भी पता है की नेता जी किसी विपक्ष के नेता को गली देंगे और उस पर ताली बजाना है. मूंगफली वाले की मूंगफली छीनकर खाते हैं किसी फल वाले को पीटकर उसका फल खा जाते हैं और नेता जी की रैली को सफल बनाकर घर वापस आ जाते हैं. ये है हमारे देश की राजनीति जिसमे १०० भ्रस्ट नेता चुनाव ने खड़े होते हैं जनता को उसमे से एक सबसे अच्छे भ्रस्ट नेता को चुनना होता है. यहाँ के लचर कानून के कारन बहुत से नेता जी तो जेल में ही रहकर चुनाव जीत जाते हैं. सभी को पता है इनसे देश का उद्वार नही होने वाला पर किसे इसकी परवाह है. किसी भी तरह से पैसे बनने के लिए देश को गर्त में धकेलते जा रहे हैं. अब आज कल चल रहे राजनीतिक उठापठक को ही देख लीजिये जनता द्वारा देश की विकास के लिए तैयार नेता जी लोग संसद में अपनी मंदी लगाये बैठे हैं और अपनी कीमत फिक्स करने के बजाय जितना अधिक मिल जाए उसके आसरे बैठे हैं. मुझे तो लगता है की क्यूँ ना हम एक बार देश की तकदीर बदलने के लिए सामने आयें इस बिकावू राजनीति को दूर करके स्वस्थ भारत का निर्माण करें क्यूंकि युवा ताकत ही ऐसा कर सकती है, अब कब तक भगवान के पास जाने को तैयार ख़त्म हो चुके निर्बल लोग इस देश का भविष्य तय करेंगे. अमित द्विवेदी

गुरुवार, 17 जुलाई 2008

ज़िंदगी एक सफर है सुहाना....

कुछ ऐसे भी पल आए थे जिसपर अब यादों के साये हैं
कुछ पल भी ऐसे आए थे मैं खडा रहा खामोश, तस्वीर बनी अब यहाँ टंगी कुछ कहना नही सुनना नही

कुछ ऐसा मौसम आया था हर तरफ़ तूफ़ान सा छाया था, आयी थी जोरों की आंधी पर माँ ने मुझे बचाया था


मैं पल दो पल का बन्दा हूँ पल दो पल मेरी कहानी है



रविवार, 13 जुलाई 2008

मुंबई ने किया करूणाकर के ज़ज्बे को सलाम

करूणाकर के मामले को अब मुंबई के एक प्रतिष्टित अखबार नवभारत टाईम्स ने उठाया है। जिसे पढ़कर बहुत से लोग करूणाकर से जुड़ गए हैं। और करूणाकर की तवियत के बारे में जाने की इच्छा जताई. मैं इसके लिए माफी चाहता हूँ की करूणाकर की कुशल चेम नही दे सका. पर आज मैं आपको सारी जानकारी दे देता हूँ. करूणाकर अब पूरी तरह से स्वस्थ महसूस कर रहा है. उसे भूख लग रही है तथा डॉक्टर साहब के दवाइयों को नियमित ले रहा है. अभी जब मैंने उसे फ़ोन किया तो नेटवर्क सही नही आ रहा था तो करूणाकर फ़ोन लेकर अपनी चाट पर लकडी के सीढियों से चढ़ गया मुझसे बात करने के लिए. वहां जब वो बात कर रहा था तो उसकी सांसें ऊपर नीचे हो रही थीं. मैंने उसे खूब दांत लगाई की अब आगे से ऐसा मत करना. दांत खाकर वो सॉरी बोल रहा था पर वो बात करते हुए पूरी तरह से खुश था. आज एक बार फिर से मुंबई में नवभारत टाईम्स के द्वारा ख़बर छपने से बहुत से लोगों ने करूणाकर की मदद को हाथ आगे बढ़ा दिया है. मुंबई के वार्ष्णेय ट्रस्ट के दिनेश वार्ष्णेय ने करूणाकर को २ हज़ार रूपये की मदद की है. जो की सोमवार तक उसके खाते में आ जायेगी. इसके साथ ही नॉएडा के सेक्टर १८ में कपड़े का शोरूम चलने वाले अमित गुप्ता ने ५०० रूपये तथा. अमर उजाला के सीनियर सब एडिटर गौरव त्यागी ने १००० हज़ार रूपया और अजय नथनी जी की अगवाई में उनके स्पोर्ट्स डेस्क ने भी १००० रूपये देने का वादा किया है. ये सभी लोग ये राशि सोमवार को करूणाकर के खाते में जामा करवा देंगे. वैसे आपको ये बताना ज़रूरी है की डॉक्टर रूपेश जिस तरह से उसकी मदद कर रहे हैं वैसा और कोई भी करूणाकर के लिए नही कर सकता था. क्यूंकि पैसा तो हर कोई दे सकता है पर इलाज़ तो एक डॉक्टर ही कर सकता है. अगर आप मुंबई के रहने वाले हैं तो करूणाकर की ख़बर पेज नम्बर पाँच पर नवभारत टाईम्स में ज़रूर देंखें. मैं अगली पोस्ट ज़ल्द लिखूंगा.
अमित द्विवेदी

शनिवार, 12 जुलाई 2008

राम राज्य में ऐसा भी

मेरे जिम में दो लडकियां आती हैं। वो जिम में व्यायाम करने कम बल्कि इसका पता लगाने आती हैं की जिम में उन्हें कितने लोगों से कमेन्ट मिलता हां। उनकी आदत ठीक एक नए ब्लोगर की तरह है जो अपने हर पोस्ट पर ये देखना चाहता है की उसे लोगों से कितने कमेन्ट मिले हैं. इसे जानने के लिए वो अपने ब्लॉग का सबसे अधिक विज़िट करने वाला होता है पर बाद में ये देखकर खुश हो जाता है की आज उसे इतने लोगों ने विज़िट किया भले ही उन विजिटर में उसकी ख़ुद की संख्या ९० फीसदी होती है. तो मैं उन लड़कियों की कहानी सूना रहा था. तो जिम का कोई भी ऐसा बन्दा नही है जो उनसे वाकिफ ना हो. तीन घंटे रोज़ जिम में बिताने के कारन एक मैडम तो सूख के मिनुस जेरो साइज़ में पहुँच गयी हैं. फिर भी वो रोज़ एब्स और लेग्स का व्यायाम करती हैं. वैसे मुझे वो क्या करती हैं इससे मतलब नही होना चाहिए पर इसे बताना इसलिए ज़रूरी थी क्यूंकि किसी और की कहानी में उनकी ये भूमिका देनी ज़रूरी थी ठीक सरस्वती बंदना की तरह. एक दिन मेरे पास एक लड़का आया जो की मुझसे रोज़ जिम में हेल्लो करने आता है. उसने उस लडकी का नाम लेकर उसे गलियाँ देने शुरू कर दीं और कहने लगा देख अमित उसने ख़ुद मुझे मिलने के लिए बुलाया और मेरी बेईज्ज़ती कर दी. बता मैं इस कु... का क्या करूं देखना ये कभी खुश नही रहेगी अपनी ज़िंदगी में. मैंने इसके बाद नोटिस करना शुरू किया की आख़िर माजरा क्या है जो लड़के इससे दो तीन सप्ताह तक तो बिना उससे हेल्लो ही किए बगैर व्यायाम नही शुरू करते थे. अब उसके पास भी नही जाते. तो मुझे बाद में पता चला की इस लडकी को ये सब करने में मज़ा आता है. जो उनकी जाल में फंसा उसकी बेईज्ज़ती पक्की. इसके बाद इनमे से कोई भी उनसे बात नही करता. वैसे मेरा जिम ऐसा है जो बहता पानी है हर रोज़ वहां नए बन्दे बॉडी बनाने आते हैं. और मैडम अपनी खावाहिस पूरी कर लेती हैं. अब सोच रहे होंगे की मैं उसके चक्कर में क्यूँ नही फंसा तो मैं आपको बता दूँ मैं भी नम्बर में था. पर उस लड़के ने मेरी आँखें खोल दी थीं जो उनके चक्कर में आ चुका था. पर यार ये देखने में बहुत अच्छा लग रहा है. और अब तो एक ही बात दिल से निकलती है की अच्छा जी राम राज्य में ऐसा भी होता है.
अमित द्विवेदी

कातिल बाप से बेगुनाह बाप तक की कहानी

मीडिया यानी की देश का चौथा स्तम्भ। इसकी कहाने ऐसी है जो कभी भी बदल सकती है. पिछले ५७ दिनों से चल रहे आरुषि के ड्रामे में मीडिया को जो रोल रहा वो बिल्कुल गैर जिम्मेदाराना रहा. सिर्फ़ एक्स्लूसिव ख़बर के चक्कर में जो खबरें मीडिया ने अपनी मर्जी से दिखाईं उसे भी सीबीआई ने बेगुनाह करार दे दिया. शुक्रवार को जब ये ख़बर सीबीआई के तरफ़ से आयी. बस मीडिया वालों का रंग बदल गया. फिर से एक नयी कहानी सबने शुरू कर दी. चैनलों ने ब्रेकिंग न्यूज़ में दिखाया की आख़िर क्या दोष था एक मासूम पिता का. क्यूँ उसे इतनी बड़ी सज़ा दीगयी. अब इन उल्लू के पाठों को कौन बताये की उस बाप को पुलिस से ज्यादा मीडिया ने कातिल ठहराया था. अपने कार्टून के ज़रिये ये सब दिखाया गया की किस तरह से डॉक्टर तलवार ने पहले अपनी बेटी को मारा इसके तुंरत बाद चाट पर ले जाकर नौकर को मर दिया. तकरीबन दो महीने तक मीडिया इस तरह से डॉक्टर तलवार के पीछे पडी रही और ये भी कहने से नही हिचकी की सीबीआई डॉक्टर को बचने की कोशिश कर रही है. अचानक सारा का सारा माहोल ही बदल गया है. अब डॉक्टर को मीडिया एक प्यार करने वाला पिटा बता रही है जिसकी ज़िंदगी का बस एक मकसद उसकी बेटी थी. एक चैनल ने आरुषि के स्विमिंग पूल के विडियो को दिखाकर उसमे ये संबाद बनने की कोशिश कर रहा था जिसमे डॉक्टर तलवार उस चैनल के अनुसार आरुषि को गहराई में ना जाने को बोल रहे थे. तथा आरुषि उन्हें बोल रही थी नही पापा मुझे तैरना आता है. अब आप ख़ुद अंदाजा लगाइए क्या ये वोही राम की धरती है जहाँ लोग रामराज्य में रहते थे. इन मीडिया वालों पर भी अब कोई कानून होना चाहिए जो इन्हे कुत्तों के तरह व्यवहार करने से रोक सके. नही तो ऐसे ही बेगुनाहों के ये जिंदगियां तबाह करते रहेंगे और इन्हे सरकार भी चौथा स्तम्भ कह कर इन पर कोई लगाम नही लगा पायेगी. अब आप ही सोचिये क्या मीडिया का मतलब कहीं से भी ये होता है. बिना तथ्यों को जांचे परखे प्रस्तुत करना खून करने भी बड़ा गुनाह होता है. ये भारतीय कानून नही बल्कि इंसानियत के कानून के अंतर्गत आता है. वैसे मैं आप को बता दूँ इस पर हमें ही शुरुआत करनी है तभी रामराज्य का सपना साकार हो पायेगा.
अमित द्विवेदी

शुक्रवार, 11 जुलाई 2008

यूँ आएगा रामराज्य

कथा चल रही थी बाबा ने कहा माया त्याग दो संसार के चक्करों से मुक्त हो जवोए यही ओ माया है जिसमे हम अपने इस 'बड़े भाग्य मानुष तन' को बर्बाद करते जा रहे हैं। आप ही सोचो क्या करोगे इस माया का जिसमे तुम्हे भगवान् का ध्यान ही न हो. तुम कभी पापा कभी मम्मी तो कभी चाचा के ही जंजाल में फंसे रह जावोगे. बाबा जी की बात को ध्यान से एक श्रोता सुन रहा था उसने वहीं से खड़े होकर आवाज़ लगाई बाबा जी इस माया का हम क्या करें. तभी बाबा के एक भक्त ने स्टेज पर खड़े होकर जवाब दिया वत्स इतना बड़ा हमने पंडाल लगा रखा है इसका लाखों का खर्चा है इसीलिये हर पोल के तरफ़ एक दान पत्र की भी व्यस्था है. दिल खोलकर माया त्यागो ये पत्र उसी के लिए हैं. ये मजाक नही हकीकत है जिसपर हमें कुछ करने की ज़रूरत है. आप ही सोचो वो कौन सा भगवान् है जिसे पैसे की ज़रूरत है. जो इस्वर आप में है उसकी तो हम पूजा करते नही. हाँ लोगों से इधर उधर दौड़कर ये ज़रूर पूछते रहते हैं भगवन कैसे मिलेगा. बाबा जी का भव्य पंडाल जो लगता है उसका खर्चा हर दिन लाखों में आता है जिसे आप स्वयं देते हैं. अगर यही पैसा आप अपने उत्थान में सकारात्मक ढंग से लगायें तो आप अपने साथ दूसरों की भी मदद कर सकते हैं. मुझे लगता है रामराज्य ऐसे ही आयेगा न की बाबा जी के चक्कर लगाने से.
जय श्री राम राम राज्य से

कुछ इस तरह से .....


करुनाकर की मदद को उठे सैकड़ों हाथ
करुनाकर की स्टोरी को पढ़कर सैकडों लोग उससे जुड़ गए हैं। डॉक्टर रुपेश ने करुनाकर के आयुर्वेदिक इलाज़ का ज़िम्मा उठाया है। जिसके लिए करुनाकर जल्द ही मुंबई रवाना होने वाला है। भड़ास ब्लॉग पर करुनाकर की स्टोरी देखकर कई प्रिंट मीडिया के लोग करुनाकर के गांव जीजीराम पुर पहुँच गए हैं। ग्रामीण इलाका होने के कारन आजकल बरसात से हर तरफ़ कीचड हो रहा है। जिसके चलते रिपोर्टर वहां तक करीबन १० किलोमीटर पैदल चलकर पहुंचे। वहां जाकर सबसे पहले ने करुनाकर के परिवार को ढाढस बंधाया। रिपोर्टर विनोद तिवारी ने वहां से सारी जानकारी लेकर मुझे बताया की किस तरह से एक निर्दोध व्यक्ति एक बुजुर्ग की सेवा करने का फल जेल में रहकर पा रहा है। विनोद तिवारी के अनुसार वसीयत का बैनामा पक्का होता है तो पुलिस ने खुश्की के आधार पर उन्हें ४२० कैसे ठहरवा दिया। इसका मतलब कोर्ट को ज़रूर कहीं ना कहीं से दिग्भ्रमित किया गया है। क्यूंकि जिस बन्दे ने उन पर ये आरोप लगाया है ४२० के केश में उसे अंदर होना चाहिए। लोगों के इस सहयोग sऐ ये उम्मीद बंध गयी है की अब करुनाकर के पित्ता की ज़मानत ज़ल्द हो जायेगी। फिलहाल करुनाकर को भी उम्मीद बाँध गयी है की उसे डॉक्टर रुपेश अच्छा कर देंगे। एक नौजवान के लिए मुझे नही लगता की इससे बढ़कर कुछ और हो सकता है। जो रिपोर्टर करुनाकर के गांव तक गए वो करुनाकर की असली स्थिति का जायजा ले चुके हैं। यशवंत जी जल्द ही एक पोस्ट करेंगे जिसमे हम करुनाकर के आर्थिक मदद के लिए धन कहा जामा करें इसका उल्लेख होगा। वैसे यशवंत जी चाहते हैं की वहां पर करुनाकर को अकाउंट पोस्ट कर दिया जाए जिसमे लोग अपने अनुसार मदद की रकम उसमे डालते रहें। आज सुबह करुनाकर अपनी फरीदाबाद किसी जानने वाले के यहाँ गया हुआ है। और वहां उसका मोबाइल काम नही कर रहा जिस वजह से उसकी मुम्बयी जाने वाली बात कन्वे नही हो पाई है। आगे जो भी प्रोग्रेस होगी उसकी रिपोर्ट हम आपको देंगे।अमित द्विवेदी
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Saturday, June 28, 2008

सबका धन्यबाद
मुझे लगा की मैं अकेला दुखी हूँ। इसलिए जो मन में आया लिखा पर अब खुश इसलिए हूँ क्यूंकि भड़ास के मध्यम से जिस तरह से लोगों ने करुनाकर को जो हिम्मत दी है उसे शायद ही कोई दे पता डॉक्टर रूपेश ने उससे बात करके उसका सारा दुःख ही दूर कर दिया। मुझसे हर कोई पूछ रहा है की अमित जी आप अकेले नही हैं हम आप की मदद करना चाहते हैं। पर बता दूँ आपका सहयोग और प्यार के जो बोल थे उन्होंने ही मुझे इतना आनंदित कर दिया है की किसी और मदद को मँगाने का दिल भी नही कर रहा है। मैं चाहता हूँ करुनाकर अपने पापा से मिल जाए और मेरी कोई इच्छा नही है। एक बार करुनाकर ने मुझे फ़ोन करके कहा था भैया देखना मैं कितना बड़ा आदमी बन जावूंगा। आपको ज़हाज़ का सफर करवाऊंगा। घुमाने ले चलूँगा। मुझे उसकी वो बात अभी भी नही भूली है। अब जब वो यहाँ तक पहुच गया है तो मैंने भी सोचा क्यूँ ना करुनाकर को ज़हाज़ का सफर करवा दिया जाए। हो सकता है की दो तीन दिन में मैं उसे लखनऊ भेजूं तो वो ज़हाज़ से ही जायेगा। आज यशवंत जी ने मुझे बोला की उसे मैं उनसे बात करके फिर लखनऊ का प्रोग्राम तैयार करूँ तो मुझे बस उनका इंतज़ार है। ओमप्रकाश तिवारी जी, महावीर सेठ जी विशाल शुक्ला जी, भाई शशि कान्त अवस्थी जी और रूपेश जी मुझे आप से सिर्फा एक मदद चाहिए अगर आप किसी को जानते हों तो किसी तरह से करुनाकर के पापा को रिहा करवाने का प्रयास करवा दीजिए। क्योंकि वो अपराधी नही हैं। मुझे लगता है करुनाकर उन्हें बहार देखकर अपनी उम्र में कुछ और दिन जोड़ लेगा। वैसे अब सारी जिम्मेदारी यशवंत भाई ने उठा ली है तो मुझे और कुछ नही कहना है। पर इस तरह से जो आप लोगों का सहयोग मिला उसका एहसान मैं कभी नही चुका सकता। मुझे पता है आप लोगों की मदद से करुनाकर को इतना खुश कर दूंगा की वो अपने अल्पकाल में ही कई सौ जिंदगियां जी लेगा।धनयबादअमित द्विवेदी
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अन्तिम पडाव पर आ गयी ज़िंदगी
आज सुबह जब मैं उससे मिला तो वो एक नयी कमीज़ और पन्त में था मुरझाई आँखों में एक आशा की नयी किरण नज़र आ रही थी। एम्स के ओपीडी के सामने वोह बैठा मेरा अखबार यानी की अमर उजाला पढ़ रहा था। मुझे देखते ही उसका चेहरा खुशी से खिल गया। मैंने कहा क्या बात है करुनाकर तुम तो एकदम हीरो लग रहे हो। देखो हमेशा खुश रहा करो। हम साथ साथ एम्स के एक्सरे डिपार्टमेन्ट की तरफ़ रूम नम्बर एक में गए। सुबह के यही कोई सवा आठ बजा रहा होगा। डॉक्टर ने सिटी स्कैन की रिपोर्ट और अन्य रिपोर्ट जामा करवा ली और बाहर वेट करने को कहा। हम बेसब्री से बाहर डॉक्टर का इंतज़ार कर रहे थे। अंदर से डॉक्टर अरविन्द लगभग १० बजे बाहर आए। उन्होंने हमारा नाम पुकारा। जब हम उनके पास गए तो उन्होंने मुझे बताया की सर्जरी नही हो सकती क्यूंकि दोनों तरफ़ का लुंग प्रभावित हो चुका है। आप एक काम करो डॉक्टर जुल्का से मिलो और उनसे कीमियो थेरेपी के लिए बात कर लो। बस यही एक अब इसका इलाज़ है। हम एम्स के रेड बिल्डिंग में गए तो पता चला की डॉक्टर जुल्का कुछ दिनों के लिए छुट्टी पर गए हुए हैं। रूम नम्बर चार में एक दूसरे डॉक्टर बैठे थे मैंने उनके पास पर्चा जामा करवा दिया। थोड़ी देर बाद में मुझे उन्होंने कॉल किया जब मैं गया की ये तुम्हारा क्या लगता है। मैंने बोला भाई। उन्होंने करुनाकर को रूम से बाहर भेज दिया और मुझे बताया की इसकी उम्र अब सिर्फ़ ६ या ७ महीने बची है। आप को इसके मम्मी पापा को ये बता देना चाहिए। यहाँ पर इसे भरती करवाने का कोई फायदा नही है। इसे अपने परिवार के पास रहना चाहिए। इसका इलाज़ जहाँ पहले करवाया था आप वहां ही करवाते रहें। और आगे भगवान् पर छोड़ दें। मैं जब बाहर निकला तो करुनाकर से बात नही की बस यही बोला की मैं गाडी लेकर आता हूँ। जब मैं आया तो उसने कहा भैया मुझे अब की दवा नही करवानी है कुछ दिन और जीकर क्या करूंगा। उसकी यह बात सुनकर मैं बहुत दुखी हुआ। मेरे आंखों से आंसू निकल पड़े। मैं उसे क्या बोल्लूँ समझ में नही रहा था। बस पूरे रस्ते एक बात सोचता रहा की भगवान् मुझे इसकी जगह मुझे क्यूँ नही अपने पास बुला लेता। उसके सारे सपने जो थे सब टूट गए। उसे इस बात की चिंता खाए जा रही है की उसके माँ बाप ने उसके लिए इतना किया पर बदले में उसने उन्हें क्या दिया। जब देने की बारी आयी तो मौत ने दस्तक दे दी। दिल को दहला देने वाला ऐसा वाक्या पहली बार मेरे साथ घटा है। मैं इतना दुखी अपने पूरे जीवन में नही हुआ था जितना की आज हूँ। किसी से बात करता हूँ तो आंसू टपकने लगते हैं। बस मैं एक चीज़ चाहता हूँ की किसी तरह उसके पापा जेल से बाहर आ जायें और उसकी बची हुयी ज़िंदगी में उसका साथ दें। मैं चाहता हूँ की कोई एक कदम इसके लिए बढाये जिससे इस दर्दनाक स्टोरी में कुछ तो गम दूर हों। किसी को यह पता चल जाए की उसकी ज़िंदगी बस इतने दिन और बची है इसका दर्द क्या होता है इसे एक बार सोचकर भी महसूस किया जा सकता है। ................ अभी भी बाकी है ये कहानी अमित द्विवेदी
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Friday, June 27, 2008

एक कहानी ऐसी भी जो जारी है
मैं ऑरकुट का मेंबर बना तो कई ऐसे दोस्त मुझे मिल गए जिन्हें मैं भूल चुका था। अचानक इसी कडी में एक तकनीकी शिखा ग्रहण कर रहे एक बन्दे का मुझे स्क्रैप मिला उसने मुझे बताया की वोह भी बस्ती का रहने वाला है । आजकल नॉएडा के एक ingeeneering कॉलेज से पढाई कर रहा है। मैंने उसे अपना दोस्त मान लिए एक दिन उसने मेरा नम्बर माँगा जब मैंने उसे अपना नम्बर दिया और उसका कॉल मुझे आया तो पता चला की वो मेरे गांव के पड़ोस का रहने वाला है। मुझे उससे बात करके अच्छा लगा क्यूंकि वो एक बहुत ही अच्छा लड़का था। दिन रात मेहनत करके वो पढाई करता था उसके पिता जी उसकी हर एजूकेशन को दिलवाने के लिए कृतसंकल्प थे। मैंने एक बार जब गांव गया तो पुछा अंकल आप अपने बच्चों को इतना पढा कैसे रहे ही जब आपके पास इतना पैसा नही है तो उन्होंने जवाब दिया की बेटा अगर वो गानों में रहते तो खेती बड़ी करते जब मैंने देखा की वो पढ़ना चाहता है तो उसे मैंने शहर भेज दिया की जावो कुछ बनकर दिखावो। उसके लिए मैंने अपने कुछ खेत बेंच दिए। अब मुझे अच्छा लग रहा है की वो अच्छा कर रहा है।पर जो ऊपर वाला बैठा है उसकी परीक्षा इतनी कठिन है की शायद ही उसे कोई पास कर पाए। २००४ में करुनाकर नाम के उस होनहार बच्चे ने तुमेर के चलते अपना दाहिना पैर गंवा दिया। फिर भी उसने हिम्मत नही हरी। इतना कुछ होने के बवोजूद उसने अपने मुकाम को पाने के लिए मेहनत जारी रक्खी और नॉएडा के एक अच्छे से तकनीकी कॉलेज में उसे प्रवेश भी मिल गया। अच्छे मार्क्स से उसने अपने सारे सेमेस्टर क्लीअर किए बाद में जब उसका अन्तिम साल रहा गया तो इस होनहार बहादुर छात्र को सीने में दर्द उठा और खांसी आयी। जब उसने इसे डॉक्टर को दिखाया तो पता चला की उसके फेफडे में कैंसर हो गया है। उसका इलाज़ ठीक तरीके से नही हो सका क्युकी उसके पिता जी को गांव के कुछ लोगों ने जमीन के एक मामले में जेल भिजवा दिया। और इसमें सबसे बड़ी दिलचस्प बात ये है की छोटे से ज़मीन के मामले में पैसे वाली पार्टी ने पुलिस को घूस देकर उन्हें अन्दर करवाया है। जिसमे कोर्ट उन्हें जमानत देने में झिझक रही है जैसे वो बड़े क्रिमिनल हों कोई। करुनाकर ने एक दिन मुझे फ़ोन किया और उस समय जब वो बिल्कुल टूट चुका था। कोई उसके पास नही था। दिल्ली के करोल्बाघ के यूनानी मेडिकल कॉलेज में वो भरती हो चुका था। मैं उससे मिलने गया तो वो ऐसे टूट गया था जैसे उसके लिए दुनिया में कुछ रहा ही नही। पूरी दुनिया को देखने का सपना देखने वाला बहादुर लड़का बीमारी से हार गया था। यह ऐसा हॉस्पिटल था जहाँ उसका कोई इलाज़ नही था। घर का उसके साथ कोई नही था। क्यूंकि हर कोई उसके पापा की ज़मानत के लिए चक्कर लगा रहा है। जेब में उतने पैसे नही थे जिससे किसी अच्छे हॉस्पिटल में दवा कराई जा सके। मैंने उसकी हालत देखी तो रो पडा। भइया कहकर मुझे जब भी वो पुकारता मुझे अपने पर शर्म आती क्यूंकि मेरे हाथ में उसके करने के लिए कुछ नही था। मैंने एम्स में उसके लिए बात करनी शुरू की। तीन दिन बाद किसी तरह से सर्जरी डिपार्टमेन्ट में डॉक्टर अरविन्द को उसे दिखने में सफल रहा। पर डॉक्टर अरविन्द ने उसकी एक्सरे रिपोर्ट देखकर जो जवाब दिया उसने मुझे हिला दिया। उन्होंने कहा की इन्फेक्शन फेफडे में दोनों तरफ़ फ़ैल गया है। आप इसका सिटी स्कैन करवाकर शनिवार मोर्निंग में यानी की २८ जून को मिलिए फिर हम आपको बताएँगे की हम इसे सही कर पाएंगे या नही। अभी कल सुबह आने में १२ घंटे हैं पर मैं बहुत दुखी हूँ की एक बाप ने अपने बेटे पर वो सारी पूंजी लगा दी जिससे उसने उम्मीद की थी की एकदिन वो कुछ बन जायेगा पर बेटा लायक होते हुए भी अपने बीमारी से हरता जा रहा है। उसे अपने पापा के जेल से बाहर आने का इंतज़ार है। उसे अब कुछ नही सिर्फा अपने पापा चाहिए। पर इस घूसखोर प्रथा में मुझे नही लगता की एक बाप ज़िंदगी मौत से जूझ रहे अपने बेटे तक पहुँच पायेगा। मुझे पता है इस भडास से बहुत से पत्रकार जुड़े हैं अगर किसी की पहुच हो तो चाहूंगा की एक बेटे की आख़िर खवाहिश पूरी करने में कुछ कर सकें तो करके दिखाएँ। यह कहानी नही असलियत है और मैं तब तक लिखता रहूँगा जब तक एक इक्कीस साल के नौजवान को ठीक ना करवा लूँ। उससे मेरा कोई रिश्ता नही है पर हाँ आज की डेट में मेरे लिए वो सबसे बढ़कर है जिसके लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ। ......... ये कहानी जारी रहेगी यूँ ही।
Posted by amit dwivedi at 7:44 AM 0 comments
Wednesday, June 25, 2008

कैसे हो समाधान
वो भी कोई संपादक है न तो किसी ख़बर की समझ ना ही सलीका मालूम बस जुगाड़ से बन गए संपादक दुखी कर रखा है। इससे अछा तो वोह संस्थान है जहाँ काम की क़द्र तो करते हैं वो लोग। यह बातें हैं एक सउब एडिटर की जो की एक प्रिंट मीडिया के साथ जुदा हुआ है। पर उसे बहुत सी परेशानियाँ हैं उसे लगता है की उसकी क़द्र नही हो रही है। भगवन की उस पर ख़ास दया हुयी उसका ट्रान्सफर एक दूसरे संस्थान में हो गया। पैसे भी अच्छे मिल गए। दो महीने तक जब तक उनको संस्थान में कोई नही जनता था तब महोदय खुश रहे पर जैसे ही उनकी इस संस्थान में जान पहचान बढ़ी उनकी समस्या फिर बढ़ने लगी। वहां का संपादक मूर्ख नज़र आने लगा। वातावरण में ज़हर घुलता दिखायी पड़ने लगा। पर पत्रकार महोदय की टोन यहाँ बदल गयी। अब उनका क्या कहना है ज़रा ध्यान से सुनिए इससे अच्छा तो वो पुराना संस्थान था जहाँ पर कम से कम कोई कुछ कहता तो नही मेरे काम में कोई टांग तो नही अटकाता था। मैंने यहाँ आकर बहुत बड़ी गलती की।आज के दौर का पत्रकार इन चीज़ों से रोजाना दो चार हो रहा है। वह युव है सबकुछ अपने अनुसार करना चाहता है जब चीज़ें उसके अनुरूप नही घटती तो वह dukhi hone lagta hai. main is aalekh ke madhyam se yah batana chahta hoon ki bahut kuch cheezen aisee hee chaltee rahengee issse naraaz hone se kuch nahee hone wala. AMIT DWIVEDI
Posted by amit dwivedi at 11:44 PM 2 comments
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Monday, June 23, 2008

मेरी पहली कविता
अतीत में उतर कर देखा घने तिमिर में,एक दीप प्रज्वलित था अन्धकार के शिविर में
Posted by amit dwivedi at 11:53 PM 0 comments

रविवार, 6 जुलाई 2008

रामराज्य की अवधारणा के बारे में

हर स्थान पर एक आदर्श स्थिति को ही पैमाना मान कर परिस्थितियों को मूल्यांकित करा जाता है। भारत में आदर्श समाज के संदर्भ में "रामराज्य" को आदर्श माना जाता है इस लिये मैंने इसे आधार मान कर आज के समाज और सामाजिकता का मूल्यांकन अपने नजरिये से करना प्रारंभ करा है। कई बार हो सकता है कि लगेगा कि मैं किन्ही विशेष पूर्वाग्रहों से ग्रस्त हूं या मेरी सोच कुंठित है तो आप अपना नजरिया बताने से पीछे मत हटियेगा ताकि हम मिल कर आज की सामाजिक विषमताओं से ऊपर उठ कर एक सुगठित समाज को बल दे सकें।