रविवार, 27 सितंबर 2009
सोमवार, 21 सितंबर 2009
जब अतीत बना हकीकत
कॉलेज से निकलकर मैंने पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के लिए एडमिशन लिया था। पर दोपहर के बाद पढ़ाई होने की वजह से मैं पार्टटाइम में कुछ काम किया करता था। वह काम मेरे परिवार के प्रोफेशन से जुड़ा हुआ था। मैं पूजा पाठ करवाया करता था। बहुत अच्छे तरीके से तो याद नहीं है पर हां मैंने कई शादियां भी करवाई हैं। लोग कम ार्चे में शादी करने के लिए मंदिरों में शादी कर लेते थे। एेसे लोगों की शादियों का मैं एक दो बार नहीं कई बार गवाह बना। हालांकि मेरे मंत्रोच्चारण के बाद उनकी शादी कितनी कामयाब है यह मुझे नहीं पता। मैंने उच्च वर्गीय परिवारों में हवन पूजा करवाई थी। मैं वह दिन कभी नहीं भूल सकता जब पृथ्वीराज रोड पर मैं साहिब सिंह बर्मा के सरकारी आवास पर हवन करवा रहा रहा था। यह बात उस समय की है जब इसके पहले के लोकसभा चुनाव हुए थे और साहिब सिंह जी दक्षिणी दिल्ली के लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे। उनको इस बात का अहसास था कि वे चुनाव हारने जा रहे हैं पर अपने मन की शांति के लिए कुछ करीबी लोगों के बहकावे में आकर उन्होंने घर में बंग्लामु ाी का हवन करवाया था। बर्मा जी के वे करीबी मुझे जानते थे सो वे मुझे ही पकड़ ले गए। रात के समय फोन कॉल्स से बुरी तरह से व्यस्त बर्मा जी ने किसी तरह से समय निकाला और हवन में आकर बैठ गए। रात के बारह बजे चुके थे। हवन करते कराते काफी समय हो गया। अपने दिल की तसल्ली के लिए वर्मा जी ने मेरे से पूछा पंडित जी आपको क्या लगता है मैं चुनाव जीतूंगा? मैंने भी एक पंडित के व्यावसायिक धर्म को निभाते हुए कह दिया हां आप जीतने जा रहे हैं इसके अलावा मैं और कोई जवाब नहीं देता इसका अंदाजा आप भी लगा सकते हैं। मैं जिसके लालच में वहां गया था वह मिल गया मुझे 1१ सौ रुपये की दक्षिणा साहिब सिंह जी ने मेरा पैर छूकर दी। दूसरे दिन रिजल्ट आया बर्मा जी हार गए। मुझे बहुत दु ा हुआ एेसा लगा जैसे यह काम सिर्फ पैसे के लिए करना अच्छी बात नहीं है। मुझे थोड़े दिन बाद जागरण में नौकरी मिल गई मैंने यह काम छोड़ दिया। पर अचानक 20 सिंतबर को कुछ एेसा घटा कि मुझे यह घटना ताजा हो गई। मेरे एक दोस्त जेपी यादव जो कि मेरे साथ ही हिंदुस्तान में नौकरी करते हैं उन्होंने गाजियाबाद के वसुंधरा में एक घर ारीदा। 20 को मुझे उन्होंने गृह प्रवेश पर आमंत्रित किया था। घर में सब मेहमान इकट्ठा हो गए पर पंडित जी ने उन्हें अंतिम क्षणों में धो ाा दे दिया। जेपी को संकट में पड़ा दे ा मेरा पंडित्व जागृत हो गया और मैंने पंडिताई का जि मा संभाला। मंत्र याद नहीं थे इसलिए मैंने अपने चाचा को फोन मिलाया जो कि चिराग दिल्ली के एक मंदिर में पंडित जी हैं वे मंत्र बोलते गए मैंने फोन स्पीकर ऑन कर दिया। सारे काम विधि-विधान से हो गए। मेरे ऊपर सभी हंस रहे थे पर मुझे बुरा नहीं लगा क्योंकि मेरे बुरे दिनों में आर्थिक कमाई का पंडिताई ही जरिया था। पर मोबाइल से पूजा करवाकर मुझे बहुत मजा आया। जेपी ने ाुश होकर मुझे मोटी दक्षिणा भी दी। क्योंकि अब मैं इस काम को छोड़ चुका हूं इसलिए सारा का सारा पैसा मैंने अपने चाचा को दे दिया। पर आप मेरी ाुशी का अंदाजा नहीं लगा सकते। इस घटना ने मुझे मेरा बीता हुुआ अतीत याद दिला दिया। यार मैं वैसा भी था, अब एेसा हूं तो क्या हुआ आ िारकार मैं एक पंडित हूं। तो आई बात समझ जरूरत हो याद करना पूजा पाठ करवाने के लिए। हा हा हा!!!!!!!
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जब अतीत बना हकीकत
शुक्रवार, 18 सितंबर 2009
बुधवार, 16 सितंबर 2009
रविवार, 6 सितंबर 2009
बालाचढी इतिहास का अनोखा पन्ना
हिटलर के सताए पोलिश बच्चे जब समुद्र में बहती हुई जहाज में अपनी जिंदगी बचाकर जब जामनगर से 35 किलोमीटर दूर बालाचढी केसमुद्र तट पर लगे। उस समय अलग दुनिया पाकर वे बच्चे जब जिंदा निकले भी तो उनके लिए सबकुछ नया था। यह वाकया आज सेलगभग 67साल पहले की है। द्वितीय विश्वयुद्व के दौरान हिटलर ने निर्दयता का परिचय देते हुए लगभग दो हजार पोलिश बच्चों को एक जहाज में डालकर समुद्र में छोड दिया था। वह जहाज कई महीने बाद बालाचढी के पास समुद्र के किनारे जामनगर के राजा को दिखा। राजा ने अपने सिपाहियों को आदेश दिया कि वह जहाज वहां से किनारे लाया जाए। सिपाहियों ने जब जहाज में जाकर देखा तो उसमें बहुत से बच्चों की मौत हो चुकी थी पर कुछ बच्चे जिंदा थे। राजा ने उन बच्चों के लिए वहां पर स्थान बनवाया स्कूल बनवाया जहां पर ये बच्चे 1942 से लेकर 1946 तक रहे। जो बच्चे मर गए थे राजा ने उनकी समाधि भी यहां बनवाई। उस दौर को देखने वाले लोग बताते हैं कि उस घटना ने आसपास के लोगों को हिलाकर रख दिया था। हमेशा शांत रहने वाली इस जगह पर समुद्र की तेज लहरों से ऐसा लग रहा था जैसे वह इस घटना से दुखी होकर मानो प्रलय मचाने वाला है। पर जामनगर के राजा ने जो किया उसके लिए उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा। आज वह स्कूल सैनिक स्कूल के नाम से मशहूर है भारत के सभी सैनिक स्कूलों में बालाचढी के इस सैनिक स्कूल को सबसे अधिक धनी माना जाता है। वे बच्चे आज भी इस स्कूल को अपनी जिंदगी का अहम हिस्सा मानते हैं। स्कूल के मुख्य गेट पर लगा ममतामयी स्टेचू और उस पर लिखे शब्द इस बात की गवाही देते हैं कि वे बच्चे इस भूमि से कितना अटैच हैं। इस जगह स्थित यह स्कूल सिर्फ स्कूल नहीं है बल्कि मेहमाननवाजी का मिसाल है। अगर कभी मौका मिले तो यहां आकर देखियेगा पता चलेगा कि शांति किसे कहते हैं और शांति की खोज कैसे की जाती है। यहां दिखने वाले हर आदमी से बात करने का मन करता है क्योंकि वहां लोग हैं ही नहीं।
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