बुधवार, 29 अक्तूबर 2008

वो जो उल्ले बैठे हैं ना....

आ जा बेटा खूब चिला और ये ले खाना पीना खा. ये सब खाना पीना सचिन तेंदुलकर के शतक के उपलक्ष में है आज वो ज़रूर शतक जमाएगा. और सुन गुडिया इधर आ वो देख जो कपडे वपड़े उतर के उल्ले साइड में बैठे हैं ना वो हैं ऑस्ट्रेलिया के प्लेयर और जो ओढे बेधे हैं और पल्ले साइड में हैं ये हैं अपने हिन्दुस्तान के खिलाडी. लेकिन पापा धोनी कौन है इसमे से? अरे बेटा वो यहाँ करेगा बाथरूम में बैठा कपडे धो रहा है. अब तू एक काम कर खूब ज़ोर ज़ोर से चिल्ला और मज़े कर मैं थोडी ड्यूटी करके आता हूँ नही तो फालतू लोग स्टेडियम में घुस आयेंगे. और देख इधर उधर मत जाना. ये सीन है बुधवार दोपहर १ बजे फिरोजशाह कोटला स्टेडियम डेल्ही का वेस्ट एंड स्टैंड गेट नो दो का. जहाँ पर ड्यूटी कर रहे एक डेल्ही पुलिस के सिपाही ने अपने परिवार के कुछ सदस्यों को मच के लिए बुलाया था और अपनी गुडिया से बात कर रहा था और उसे समझा रहा था. उस टाइम सचिन ६८ और गंभीर ६४ पर बैटिंग कर रहे थे. इसी बीच सचिन ने एक चौका लगाया. वो गेंद पवेलियन की और गयी. जहाँ पर लोगों को सहवाग के चेहरा नज़र आया. क्यूंकि सहवाग २९ अक्टूबर को खेले गए इस मच की पहली परी में सिर्फा १ रन ही बनाया इसलिए लोगों को थोडी निराशा हुयी थी. बस क्या सहवाग को देखते ही हर कोई चिल्ला उठा वीरू वीरू जब सब चुप हो गए तब एक पाँच साल का बछा बहुत ही बुलंद आवाज़ में बोलता है की ओये वीरू तेरी वसंती कहाँ है? उसकी ये बात सुनकर वहां मौजूद हर कोई हंस पड़ा. ये था मेरा मच का पहला दिन जिसमे ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पहले दिन २९६ रन बनाये तीन विकेट के नुकसान पर. गंभीर ने पहले दिन शतक जमाते हुए १४९ रन बनाये और ५४ रन बनाकर लाक्स्मन उनका साथ दे रहे थे. सचिन ने भी इस मच में ६८ रन की लाजवाब परी खेली. अमित द्विवेदी

शनिवार, 25 अक्तूबर 2008

बन सकते हो तो राज ठाकरे बनो

जब कोई बच्चा होता है तो उसे उसके परिवार वाले बड़े आदर्शों वाली कहानियाँ सुनते हैं और उसे वैसा आचरण करने के लिए और उसके जैसे बनने के लिए कहते हैं. पर मैंने जब से राज की दादागिरी मुंबई में देखी है तबसे मन कर रहा था कुछ लिखूं और आज मौका मिला तो लिख रहा हूँ. मैं आप सबसे कहना चाहता हूँ की अगर आप कुछ बनना चाहते हैं तो राज ठाकरें बनो. राज एक ऐसा नाम है जो कुछ भी कर सकता है. वो जेल के बाहर घूमने वाला गुंडा है. पर पुलिस उसके सामने कुछ भी नही किसी को वो मर सकता है किसी कोई पीट सकता है कुछ भी किसी कोई कह सकता है कानून और अदालत उसके सामने कोई मायने नही रखते. अब आप ही सोचिये अगर हम सब राज ठाकरे जैसा बन जायें तो देश से पुलिस और कानून की ज़रूरत ख़त्म हो जायेगी. क्यूंकि सरकार तो राज कोई चैलेन्ज कर नही सकती तो उसे कम से कम हम एक गुंडा संप्रदाय का प्रतिन्धित्व करने के कारन चैलेन्ज तो कर पाएंगे. भाई जिस बन्दे में इतनी ताकत है ऐसा बन कर हम भी देश का नाम रोशन करें. इसके बाद फिर हम राज ठाकरे से पंगा भी ले पाएंगे. तो भाइयों मैं आप सबसे अनुरोध करता हूँ की सामने आयें और नही ज्यादा तो एक राज ठाकरे बनकर दिखाएँ क्यूंकि ऐसा करने से ही आप इस देश के शसक्त नागरिक कहलावोगे. तो आवो आज हम सकल्प लें की इंडिया के हर प्रदेश और शहर पर अपनी क्षेत्रीय भाषावों का राग गाकर अपना बर्चस्व कायम करें.
जय राज ठाकरे का नारा लगावोए और देश में सैकडों राज बनावो

सोमवार, 13 अक्तूबर 2008

और वो यमुना me कूद गयी

बात रविवार के रात ११ बजकर १० मिनट की है। मैं अपने नॉएडा स्थित अपने ऑफिस से घर लौट रहा था। जैसे ही मैं नॉएडा टोल ब्रिज के यमुना पुल पर पहुँचा मैंने देखा एक लडकी यमुना के पुल के रेलिंग पर चढ़कर बिना कुछ कहे नीचे छलांग लगा गयी। उसके साथ दो व्यक्ति थे एक की उम्र लगभग २८ साल रही होगी और दूसरे की उम्र ३२ साल से ३६ साल के बीच में थी। ये लोग एक बड़ी गाडी में सवार थे। मैंने सोचा पहले कुछ करूँ पर मैंने उन दोनों बन्दों का रवैया देखकर उनके पास नही गया क्यूंकि उन लोगों ने वहां रुकने वाले लोगों के साथ बत्तमीजी की। मैं थोड़ा जाकर आगे रुक गया और वहां पर ५ मिनट में पोली की जिप्सियां आ गयीं और एक फायर बिग्रेड की गाडी भी आयी। मैंने जब उन लोगों से पुछा की माज़रा क्या है तो उन्होंने कहा की यमुना में कोई गाडी गिर गयी है। मैं उन पुलिस वालों के साथ घटनास्थल की और बढ़ा। मैंने देखा वो दोनों बन्दे एक दूसरे से गले लगकर कर रो रहे थे। मुझे देखते ही उसमे से एक बंद आगे बढ़ा और पूछता है आप कौन हो? मैंने कहा देखो मैं प्रेस से हूँ और मैंने यहाँ देखा कुछ हुआ सो रुक गया। तो उस बन्दे ने मुझसे कहा आप यहाँ से चले जाओ। जब मैं थोड़ा गुस्से में उनसे बात की तो वो बंद मेरे पैर पड़ने लगा और बिनती करने लगा की देखिये भाई साहब मैं पहले ही अपनी भाभी को खो चुका हूँ अब कोई और पंगा नही करना चाहता। यही कहकर वो रोने लगा मुझे उसपर दया आ गयी और मैं वहां से चला आया। एक बार सोचा लावोए अपने अख़बार के दफ्तर में फ़ोन कर दूँ। पर मैंने सोचा रहने दो बेचारे परेशान हैं और मैंने किसी को नही बताया हलाँकि दूसरे दिन अख़बारों में मैंने सिंगल कालम खबर देखि पर उसमे किसी का नाम नही दिया था सिर्फा इतनी इन्फोर्मेशन थी की कोई यमुना में कूद गया है। लगता है इस मामले में पुलिस भी गोलमाल रवैया अपना रही है। अब मुझे ये नही पता लगा की आख़िर वो लडकी यमुना के क्यूँ कूद गयीए। अब आप बताएं मैंने कुछ ग़लत तो नही किया। क्यूंकि मैंने किसी को इसकी ख़बर किसी भी नही दी।
अमित द्विवेदी

रविवार, 12 अक्तूबर 2008

और मैं पहुँचा 'लहरों का सरताज़' बनने

और मैं पहुँचा 'लहरों का सरताज़' बनने ११ अक्टूबर को मैं जब घर पहुँचा तो मैंने अपने मोबाइल में सुबह चार बजे का अलार्म फिट कर दिया क्यूंकि मुझे लहरों का सरताज बनने के लिए ऑडिशन देने जाना था. १२ अक्टूबर को सुबह सुबह मैं चाणक्य पुरी के नवल बाग़ में पहुँच गया. वहां पहले से ही करीबन ४०० लोग लाइन लगाये बैठे थे. मैंने एक भाई से पुछा की क्या यही लाइन है नेशनल जेओगार्फिक चैनल के शो 'लहरों के सरताज़' के ऑडिशन के लिए. उस व्यक्ति ने जवाब दिया जी बिल्कुल. मैंने अपनी गाडी साइड में पार्क की और और मैं भी उन्ही के साथ बैठ गया. जिन बन्दों के साथ मैं बैठा था वो सोनीपत से आए थे ऑडिशन देने. थोड़ी देर बाद हमारी बातचीत शुरू हो गई और हमने गप्पे लगना शुरू कर दिया. बातों बातों में कब सुबह हो गयी पता हेई नही चला. मैंने सुबह ६ बजे देखा तो मेरे पीछे लाइन इतनी लम्बी हो गयी थी की उसमे लोगों के सर के सिवा कुछ और नज़र ही नही आ रहा था. करीबन सात बजे प्रवेश शुरू हो गया और मैं भी सभी के साथ अन्दर पहुँच गया. वहां पर मुझे एक चेस्ट जैकेट दी गयी जिस पर नम्बर लिखा हुआ था. मेरा नम्बर था २४९. मैं वहां पर सबके साथ बैठ गया और आगे के प्रोग्राम् का वेट करने लगा. लगभग आधे घंटे बाद मेरे साथ के करीबन ५०० बन्दों को एक साथ खड़ा करके १६०० मीटर की दौड़ के लिए कहा गया. ये आर्डर हमें नेवी के कुछ अधिकरियों ने दिया. दौड़ शुरू हो गयी. शुरू में बहुत से बच्चे तेज़ी से भागे और सबसे आगे निकल गए पर थोड़ी देर में ही वो थककर या तो बैठ गए या फिर गिर गए. मैं अपने एक ले में दौड़ता रहा कोई जल्दबाजी नही की. जिसका परिणाम ये हुआ की मैं १३ वें नम्बर पर अपने लक्ष्य पर पहुँच गया. इस दौड़ में नियम के मुताबिक ६० लोगों को लेना था. मैंने ये दौड़ जीतकर मानो सारा जहाँ जीत लिया हो. जो जीता था ये रेस सब चिल्ला रहे थे. मैं भी सभी के साथ खुशियाँ मन रहा था. मैं इसलिए खुश था की जो लड़के मेरे साथ सोनीपत वाले लाइन में बहार थे वो भी रेस जीत चुके थे. और हम सब एक साथ मिलकर लंच खा रहे थे. लगभग एक घंटे बाद दूसरे राउंड की प्रक्रिया शुरू हुयी. जिसमे मैं बहार हो गया क्यूंकि उसमे बन्दर बनकर चलना था. वैसे मुझे अभी लगता है की मैं सही था और उन लोगों ने चीटिंग की नही तो मेरा दूसरा राउंड बन्दर वाला भी क्लेअर था. लेकिन ये भी हो सकता है की मैं बाहर हो गया और मन को दिलासा दिलाने के लिए ऐसा कह रहा हूँ. लेकिन जो भी रहा ये मेरी ज़िंदगी का सबसे अनोखा और रोमांचक पल था जिसमे मुझे ये पता चला की हजारों की भीड़ में कैसे कोई एक जीतता है. इस पर मैं इतना ही कहूंगा जय नेवी और जय जवान अमित द्विवेदी