सोमवार, 29 जून 2009

भूखों मर गया संगीत का शहंशाह

शोर-शराबा संगीत के बेताज बादशाह माइकल जैक्‍सन इतना लोकप्रिय अपने कैरियर के दौर में नहीं हुए जितना की अपनी मौत के बाद होते जा रहे हैं। माइकल को भूल चुके लोग तथा नई पीढी के बच्‍चे इस बात को सुनकर बेहद परेशान हैं कि संगीत का बेताज बादशाह भूखों मर गया। अमर होने की चाहत जब इंसान करने लगता है तो वह कुदरत की दी हुई जिंदगी भी पूरी नहीं जी पाता। जो भी प्रक्रति के साथ खिलवाड करता है वह कहीं का नहीं रहता। माइकल ने अपनी सफलता हासिल करते ही सबसे पहले यही काम किया। चेहरे को बंदर के आकार का बनाने के लिए प्‍लास्टिक सर्जरी का सहारा लिया। अपना सेक्‍स चेंज करवाने का प्रयत्‍न किया। जिस तरह से जिंदगी माइकल पर हावी हो रही थी वह अंधविश्‍वास से घिरता जा रहा था। पंडितों की बातों पर उसका विश्‍वास जम रहा था। तांत्रिकों की बातें उसे रास आने लगी थीं। उसे संसार अपनी मुटठी में दिख रहा था। उसे लगता था कि वह वो सबकुछ कर सकता है जो इस जगत में कोई और नहीं कर सका। पर जब माइकल की मौत हुई तो वह चिल्‍ला भी नहीं पाया बस बडे आराम से मौत की आगोश में सो गया। पर इसके बाद पूरी दूनिया में तहलका मच गया। यह होना स्‍वा‍भाविक भी था क्‍योंकि जो माइकल सैकडों साल जीने की ख्‍वाहिश रखता था वह अपनी जिंदगी की हाफ सेंचुरी ही लगाने में सफल हो पाया। अगर माइकल को दवाओं का सहारा नहीं होता तो वह कई साल पूर्व ही इस दुनिया को अलविदा कह जाता। क्‍योंकि बहुत समय पहले ही उसके पापों का घडा भर चुका था।
माइकल जैक्सन की लीक पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चलता है कि महान पॉप गायक पिछले कुछ समय से कुछ नहीं खा रहे थे और हड्डियों का ढांचा मात्र रह गए थे और जिस समय उनकी मौत हुई, उनके पेट में केवल गोलियां थीं। दी सन द्वारा प्रकाशित पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, जैक्सन गंजा हो चुका था, उसके शरीर पर खरोंच के निशान थे और उसकी पसलियां टूटी हुई थीं। जैक्सन के कूल्हों, जांघों और कंधों पर सुइयों के घाव थे, जिनके बारे में कहा गया है कि ये उन मादक दर्दनिवारक इंजेक्शनों का परिणाम रहे होंगे जो सालों से उन्हें दिन में तीन बार लगाए जाते थे। अभी भी दुनिया के कोने में मौजूद माइकल के प्रशंसक उन्‍हें महान बनाने में जुटे हुए हैं। पर सच्‍चाई में माइकल महान नहीं हैं क्‍योंकि अगर ऐसा हुआ तो महानता की परिभाषा बदल जाएगी। विवादों से गहरा नाता रखने वाला माइकल कभी भी किसी का नहीं हुआ उसने जो कुछ किया वह अपने स्‍वार्थ के लिए। अपनी अय़याशियों के लिए पैसे पानी की तरह बहाए। आज जब माइकल मरा तो वह कर्ज के बोझ तले दबा हुआ था। मैं नहीं मानता माइकल के जाने से संगीत जगत को कोई क्षति हुई है। पर इस घटना से मुझे एक बात समझ में आ गई है कि आदमी जितना बडा होता जाता है अंधविश्‍वास उसकी सबसे बडी दोस्‍त बनती जाती है जो बाद में बर्बादी का कारण बनती है। ईश्‍वर है बस यही सच है कोई भी इस जगत में ऐसा नहीं है जो तंत्र मंत्र के सहारे आपका कुछ बिगाड सकता है। अगर तुम अपने अंदर के ईश्‍वर को नहीं पहचानोगे तो जिंदगी इस बिखर जाएगी कि उसे समेटना मुश्किल हो जाएगा। सबसे बडा सत्‍य यही है कि संगीत का बेताज बादशाह भूखों मर गया। मरने के बाद उसने दुनिया में कमाया तो वह बदनामी और बडा सा कर्ज। अगर पुराणों की बातों पर भरोसा किया जाए तो जैक्‍सन को गधा बनकर यह कर्ज उतारना ही पडेगा। यह संसार है जो यहां आया है वह जाएगा।

शुक्रवार, 26 जून 2009

अमेरिका की खुली चमचागिरी है न्‍यूयॉर्क

इरफान खान के इस मूवी के डायलॉग हमेशा सही बताने में लगे रहे कि अमेरिका कितना अच्‍छा देश है। बीच-बीच संवादों को संतुलित करने के लिए उन्‍होंने यह बात भी स्‍वीकार की अमेरिका ने कई बडी गलतियां की हैं। पर इसके अलावा इस मूवी में एक बात ही समझ में आई कि इस मूवी का निर्माण आदित्‍य ने सिर्फ यह बताने के लिए किया कि अमेरिका में वर्ल्‍ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के बाद 12 सौ मुसलमानों पर एफबीआई ने जुर्म ढाए थे जिन पर सभी आरोप बाद में खारिज हो गए थे। यह ऐसी बात है जिसे इंटरनेट के माध्‍यम से हर कोई जानता है पर मूवी समाप्‍त होने पर यह संदेश दिखता है। इस मूवी में कहीं रोमांच दिखता हो यह याद नहीं आता क्‍योंकि सभी को पता था कि न्‍यूयॉर्क की एफबीआई बिल्डिंग को जान अब्राहम नहीं उडाएंगें। पर मुझे इस बात पर काफी गुस्‍सा आया कि जब जान यानी की समीर को गोली लगी तो निर्देशक कबीर खान साथ में कटरीना यानी की माया को क्‍यूं मरवा दिया। वो जिंदा रहती तो कम से कम दर्शक यह तो कह पाते चलो अच्‍छा हुआ नील नितिन मुकेश को उसका प्‍यार वापस मिल गया भले ही वह एक बच्‍चे के साथ मिला। पर मूवी के अंत में नील को ढेर सारे संघर्षों के बाद अपनी प्रेमिका का बच्‍चा मिलता है। इस मूवी को जिस वर्ग को ध्‍यान में रखकर बनाया गया है वह पढा लिखा तपका है इसलिए अंग्रेजी के संवादों की कमी नहीं है। हिंदी जानने वालों के लिए ट्रिकर का प्रयोग किया गया है पर वह उतना प्रभावशाली नहीं है। जान ने अपनी भूमिका को सजीव बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोडी है। नील और कटरीना की भूमिका औसत है। न्‍यूयार्क का कोई ऐसा संवाद नहीं जिस पर हंसी आती हो पर कहीं-कहीं हास्‍य के पुट डालने की कोशिश जरूर लगती है। उदाहरण के लिए जब इरफान नील को कुछ माइक्रोफोन देता है और नील उसे पटक देता है इस पर इरफान कहता है कि तुम इसे पटके बिना भी अपनी बात कह सकते थे। अगर संगीत की बात की जाए तो जुबान पर कोई गाना याद नहीं आता। जिस हाल में मैंने यह मूवी देखी वहां के दर्शक कलाकारों से अधिक प्रतिभाशाली थे। एक द्रष्‍य में जब इरफान को यह बताता है कि माया यानी की कटरीना की शादी हो गई है और उसके एक तीन साल का बच्‍चा भी है। इस पर दर्शकों की प्रतिक्रिया थी, साला मामू बन गया। अब मजे कर। कुल मिलाकर इस मूवी में ऐसा कुछ नहीं है जिसे दर्शक पसंद करें। अगर अमेरिका की बहादुरी देखनी है उसकी तारीफ सुननी है तो जरूर इस मूवी को देखें।

सोमवार, 22 जून 2009

गलत जवाब पर भी मिली नौकरी

15 नवंबर 2006 को दोपहर 1 बजे का समय था। मैंने एक तय अप्‍वांटमेंट के तहत अमर उजाला के संपादक शशि शेखर जी के दफतर में दस्‍तक दी। फार्मल परिचय के बाद सर ने पूछा जयशंकर प्रसाद ने कितने महाकाव्‍य लिखे थे ? मैंने जवाब दिया आठ महाकाव्‍य। इतना सुनते ही चेहरे का गंभीर भाव बनाते हुए सर ने कहा सामने वाले को तुम मूर्ख समझते हो। अगर तुमसे कोई सवाल कर रहा है इसका मतलब उसको जवाब जरूर पता होगा। अगर तुम ऐसे सवालों पर तुक्‍का लगाते हुए इसका मतलब हुआ कि तुम सामने वाले को मूर्ख समझते हो। जवाब न आना दूसरी बात है पर झूठ बोलना सबसे बुरी बात है अगर तुम्‍हें किसी सवाल का जवाब नहीं पता तो साफ मना कर सकते हो। वैसे भी नौकरी मिलने का मतलब ये नहीं होता कि आप पढना छोड दें। पुरानी चीजें दोहराने में कोई बुराई नहीं है। चलो कोई बात नहीं तुम्‍हें जब नौकरी ज्‍वाइन करनी होगी शंभूनाथ जी को बता देना वे तुम्‍हें तुम्‍हारा काम समझा देंगे। ये मेरा अमर उजाला का अनोखा साक्षात्‍कार है जिसमें मैंने किसी ऐसे व्‍यक्ति से मुलाकात की जिसे मैंने कई आदर्श पात्रों के रूप में किताबों में पढा था। इस घटना ने मुझे एक ऐसी सीख दी जिसे आजतक मैंने याद रखा है। मैंने पहली बार इंटरव्‍यू दिया और उसमें सवाल का गलत जवाब दिया और मुझे उस दिन परमानेंट नौकरी मिल गई।यहां पर मैं जागरण से आया था। जागरण में मैं पूरे ढाई साल रहा। वहां स्टिंगर था पर खुश था क्‍योंकि बहुत सारी बाईलाइन छपती थी।
अचानक वहां पर एक ऐसी घटना घटी जिसमें मेरे बास का ट्रांसफर हो गया। एक दूसरे बॉस का आगमन हुआ जो शक्‍ल से भले मालूम होते थे। पर नोएडा में ज्‍वाइन करते ही अपने असली रंग में आ गए। शराब से महोदय का गहरा नाता था। कार्यालय में उनके साथ काम करने वालों के लिए एक नया फार्मूला बनाया गया जिसमें हर सप्‍ताह एक बंदे को शराब का इंतजाम करना था। मुझे इससे परेशानी नहीं थी कि कोई शराब पीता है क्‍योंकि यह किसी की स्‍वतंत्रता हो सकती है। पर उनके इस नए प्रावधान का मैं जबरन शिकार होने लगा। मैं दारू नहीं पीता पर उनकी पार्टी में मुझे जबरदस्‍ती शिरकत करना था। मैंने इसका विरोध किया तो मेरी बीट चली गई। एक दिन महोदय ने मुझसे माफीनामा लिखने को कहा और मेरा धैर्य जवाब दे गया और मेरे मुंह से ऐसी बातें निकल गईं जिसे एक कार्यालय के लिए अच्‍छा नहीं समझा जाता। मैंने उनसे लडाई करके नौकरी छोड दी। उस शराबी ब्‍यूरो चीफ को अपना सबसे बडा दुश्‍मन समझने लगा। पर जब मुझे अमर उजाला में नौकरी मिली तो मुझे ऐसा लगा बुरा आदमी भी अगर कुछ करता है तो उससे भी आपका भला हो सकता है। आज मैं जिस मुकाम पर हूं इसमें एक शराबी का भी हाथ है मैं उस व्‍यक्ति को मिलकर धन्‍यवाद तो कहने नहीं जाउंगा पर हां उसके लिए मेरे दिल से कोटि-कोटि थैंक्‍स निकल रहा है।
मेरे कैरियर को अमर उजाला ने जो दिशा दी उसे मैं जिंदगी भर नहीं भूलूंगा क्‍योंकि यह ऐसा हिंदी संस्‍थान है जहां पर सच में काम करने का कारपोरेट माहौल है। अच्‍छा काम करो तो उसका फल जरूर मिलेगा। बास के पांव छूने की परंपरा नहीं है किसी को कोई समस्‍या हो तो वह सीधे शशि जी से संपर्क कर सकता है। जहां तक मैं जानता हूं संस्‍थान के 80 फीसदी लोग जब कुछ कहना होता है तो सीधे संपादक जी को मेल करते हैं। जून में सबका प्रमोशन हुआ तो मैंने सोचा मेरा पिफर कुछ नहीं हुआ। 8 को मैं अयोध्‍या से लौटा तो मेरी सेलरी का संदेश मेरे मोबाइल पर आया। सेलरी देखकर मैं चौंक गया और सीधे अपने बास के कमरे में गया। मैंने उनसे कहा सर गजब हो गया देखिए न मेरी सेलरी इस बार कितनी ज्‍यादा आई है। सर ने मुस्‍कराते हुए कहा अच्‍छा एक काम करो जितना ज्‍यादा आई है उसे मुझे दे दो। इतना कहकर वे हंसने लगे और बोले तुम्‍हारा प्रमोशन हो गया है साथ में इंक्रीमेंट भी मिला है। पर इसके साथ ही सर ने यह शर्त रख दी कि देखो तुम इसे किसी को बताना मत।
मैं सीनियर सब एडिटर/सीनियर रिपोर्टर बन गया और ये बात किसी को न बताउं ये मेरे लिए बहुत बडी बात थी। मैंने इस बात को कुछ वि‍श्‍वसनीय लोगों से शेयर किया। पर संस्‍थान में और किसी को पता नहीं चला। पर मैं इस बात को शब्‍दों में बयां नहीं कर सकता कि इस प्रमोशन ने मुझे कितनी खुशी दी। पर इस खुशी को सेलीब्रेट करने का मौका मुझे अधिक नहीं मिला। दूसरे दिन मुझे हिंदुस्‍तान से फोन आ गया जिसके लिए मैं कई महीनों से इंतजार कर रहा था। पर हिंदुस्‍तान को ज्‍वाइन करने से पहले मेरे साथ दो ऐसी घटनाएं घटीं जिसे मैं कभी भूल नहीं सकता। पहली बार जब हिंदुस्‍तान में मैं टेस्‍ट देकर लौट रहा था तो फोन पर बात करते हुए यातायात पुलिस ने मुझे पकड लिया। पर पत्रकार होने के नाते उन्‍होंने रेड लाइट तोडने का 100 रुपये का जुर्माना लगाकर छोड दिया। इसके कुछ महीने बाद जब एचटी से फाइनल काल आई तो मैं भजनपुरा के तरफ से हिंदुस्‍तान की ओर जा रहा था गाडी की स्‍पीड 80 से भी अधिक थी। पता नहीं किन ख्‍यालों में खोया हुआ था वहां पहले से तैनात पुलिस की स्‍पीड चेक करने वाली वैन में मैं रिकार्ड हो गया। आगे ट्रैफिक पुलिस से मेरा सामना हुआ। उन्‍होंने मेरी गलती बताते हुए अपनी चालान काटने की किताब निकाली। मैंने बिना कोई प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त किए हुए अपनी गलती का खामियाजा भुगता और चालान के रूप में एक हजार रुपये भरे।
मुझे हिंदुस्‍तान से 20 को आफर लेटर मिला। मैंने 30 जून 2009 को ज्‍वाइनिंग डेट तय की और इसकी सूचना अपने सर को दे दी। मैंने नोटिस दिया पर मुझे तुरंत कार्यमुक्‍त कर दिया गया। 21 तारीख को मैं आखिरी बार अपने प्‍यारे संस्‍थान अमर उजाला में गया। वहां से जब मैं निकला तो ऐसा लगा जैसे मैं कुछ ऐसा छोड रहा हूं जिसकी कमी मुझे जरूर खलेगी। नौकरी छोड दी यहां के अच्‍छे लोगों का साथ छूट गया। दूसरे दिन घर में बैठा हुआ ऐसा लग रहा था जैसे मैंने कुछ खो दिया है। पर एक नए चैलेंज को स्‍वीकार करते हुए मैंने यह कठोर फैसला लिया। मैंने अपने कैरियर को संवारने के लिए यह कदम उठाया। बहुत से लोगों ने मेरे इस कदम की खुलकर सराहना की। अमर उजाला में मेरा बुरा चाहने वाला या सोचने वाला कोई भी शख्‍श नहीं था। इस संस्‍थान ने मुझे सौरव, गौरव और महेश जैसे दोस्‍त दिए। ये ऐसे लोग हैं जो हमेशा मेरे साथ खडे रहते हैं। मैं बहुत नया हूं नौकरियां बदलने का मेरा कोई शौक नहीं रहा है पर अब तक जहां तक मैंने काम किया उसमें अमर उजाला को अव्‍वल पाया हर मामले में। चाहे कोई कारपोरेट कल्‍चर की बात करे या कर्मचारियों के हितों की। पर अब मैं एक ऐसी जगह पहुंच गया हूं जहां पर आने का सपना मैं कई सालों से देख रहा था। हिंदुस्‍तान के लिए मैंने बहुत सारी फ्रीलांसिंग की है। पर अब यहां की एडीटोरियल टीम का हिस्‍सा बनकर खुश हूं।

बुधवार, 17 जून 2009

दो पवित्र आत्‍माओं का ठरक्‍कपन है आधुनिक बलात्‍कार

एकदिन मैं एक घर में बैठा हुआ था। जिसके यहां पर मैं गया हुआ था उनके यहां एक पांच साल का बच्‍चा था। एक खिलौने के लिए वह बुरी तरह से नाराज हो गया हाथ पैर चलाने लगा उसके पिता उसे बहलाने की कोशिश कर रहे थे पर वे उसे उठा भी नहीं पा रहे रहे थे। उसके पैर की चोट से उसके पिता जी के नाक से खून निकलने लगा। इस घटना से मुझे एक बात पर संदेह हुआ कि जब एक पांच साल का बच्‍चा कोई अकेला आदमी संभाल नहीं सकता तो ऐसे में पांच फुट से भी लंबी लडकियों का एक आदमी भला कैसे बलात्‍कार कर लेता है। आजकल अभिनेता शाइनी आहूजा बलात्‍कार के केश में फंसे हुए हैं। पर यह केस अगर सही से देखा जाए तो इससे सिर्फ शाइनी की चरित्रहीनता ही साबित हो सकती है न कि उन्‍हें बलात्‍कारी करार दिया जाएगा।
एक लडकी ही सहमति के बिना उसके साथ सिर्फ एक व्‍यक्ति जबरदस्‍ती नहीं कर सकता। बलात्‍कार पांच लोग मिलकर या पिफर दो लोग करें तो यह बात हजम होती है। आजकल पुरुषों से कंधा मिलाने के चक्‍कर में लडकियां पहले सहमति से किसी के साथ संबंध बनाती हैं पर उसमें डबल मजा करने के लिए लडकी होने का फायदा उठाकर उस व्‍यक्ति को फंसा देती हैं। अब चाहे मोनिका लिंविस्‍की या पिफर शाइनी की नौकरानी की ही क्‍यों न हो। अगर प्‍यार की बात की जाए तो इसे दो आत्‍माओं का मिलन कहा जाता है लेकिन अगर इसे इस केस में डिफाइन किया जाए तो इसे दो आत्‍माओं का ठरक्‍पन कहा जाएगा। जिसमें लडकियों की पवित्र आत्‍माएं पुरुषों की ठरक्‍कपन भावनाओं की बलि चढा देती हैं। यह सब नाम रोशन करने और पैसा कमाने का रोचक जरिया है जिसमें गंभीर दिलचस्‍पी लेकर हमारे मीडिया और कानून वाले इसे लोगों के सामने आदर्श के रूप में प्रस्‍तुत कर रहे हैं जिससे और लडकियां बलात्‍कार का नाम लेकर कुछ धन अर्जित कर सकें। जब भी कोई मुझे कहेगा कि एक आदमी ने बलात्‍कार किया मैं उसे कतई नहीं मानूंगा क्‍योंकि एक आदमी द्वारा किया गया बलात्‍कार दो आत्‍माओं का पवित्र ठरक्‍कपन है। इसमें इससे ज्‍यादा और कुछ नहीं है। बलात्‍कार उस समय होता है जब किसी अबोध मासूम बच्‍ची को कोई दरिंदा हवस का शिकार बनाता है या पिफर एक से अधिक लोग मिलकर किसी अबला की इज्‍जत लूटते हैं।