मंगलवार, 30 दिसंबर 2008

भुलाए नहीं भूलेगा बीता वर्ष

जब मैं छोटा था और स्कूल में पढ़ा करता था उस समय बड़े-बूढ़े हमेशा यह सीख दिया करते थे कि बेटे कोई भी मुकाम मेहनत करके धीरे-धीरे हासिल करने से उसका असर दीघüकालिक होता है। अगर कोई सफलता बिना किसी मेहनत के चमत्कार केरूप में आती है उसका असर भी थोड़े दिन बाद समाप्त हो जाता है। इस बात को यहां पर मैं इसलिए बता रहा हूूं क्योंकि यह अपनी अर्थव्यवस्था से जुड़ा हुआ है। बात बहुत पुरानी नहीं है 2007 में हमने सेंसेक्स की ऊंचे छलांग लगाते ढ़ेरों रिकार्ड देखे। उसकी सफलता को देख हर कोई इस बात पर चर्चा करना भूल गया कि आखिर सेंसेक्स इतना तेजी से क्यों बढ़ रहा है। जब सेंसेक्स 21 हजार के स्तर पर पहुंचा तो हमारे बाजार के जानकारों ने बिना सोचे समझे भविष्यवाणी कर दी कि अब सेंसेक्स की पकड़ से 25 हजार भी दूर नहीं है। पर एक ऐसी आंधी आई कि सेंसेक्स का कोई स्तर ही नहीं रहा जनवरी 2008 से गिरावट का शुरू हुआ ये क्रम कब खत्म होगा इसकी कोई गारंटी नहीं ले रहा है। पिछले एक साल में जितने पूर्वानुमान लगाए गए वह बुरी तरह से लाप शो ही साबित हुए हैं। 8 जनवरी 2008 को सेंसेक्स की सबसे लंबी छलांग उस समय देखने को मिली जब वह 21 हजार के रिकार्ड स्तर पर पहुंचा। 6 जुलाई 2007 में जब सेंसेक्स ने 15 हजार की ऊंचाई छुई थी उस समय किसी ने यह अंदाजा नहीं लगाया था कि इस साल के बाकी बचे महीने भी सेंसेक्स की ऊंचाई के रिकार्ड बनाने जा रहे हैं। 11 फरवरी 2000 को सेंसेक्स ने 6000 की ऊंचाई पर कदम रखा था। इसके बाद उसे 7000 तक पहुंचने में लगभग पांच वर्ष लग गए और 11 जून 2005 को वह दिन आया जब सेंसेक्स सात हजार के पार हुआ। पर 2007 के कुछ महीनों में ही सेंसेक्स ने 6 हजार प्वाइंट कमाकर 21 हजार का उच्च स्तर छू लिया। पर हुआ वही जो नैतिक शिक्षा में पढ़ाया गया है कि धीरे-धीरे मिली सफलता ही अधिक दिनों तक कायम रहती है। 21 जनवरी 2008 को सेंसेक्स में ऐसी आंधी है जिसके चलते सभी भविष्यवक्ताओं और बाजार के जानकारों का पूर्वानुमान चकनाचूर हो गया और बाजार 1400 प्वाइंट गिरकर 17,605 पर आ गया। इसकेपहले गिरावट शुरू हुई थी पर वह बहुत छोटी थी। पर इसके बाद इस गिरावट ने थमने का नाम नहीं लिया और निचले स्तर की ओर लगातार बढ़ता गया। इसी बीच ग्लोबल क्राइसिस का प्रभाव शुरू हुआ और सारा असर सेंसेक्स पर दिखा। पर इसके बाद भी बाजार के विशेषज्ञों ने अपने पूर्वानुमान को लगाने का काम नहीं छोड़ा और यहां तक भविष्यवाणी कर दी कि माकेüट छह हजार का निचला स्तर छुएगा। 26 नवंबर को मुंबई आतंकी हमलों के बाद एक और पूर्वानुमान समाचारों के माध्यम से लोगों तक आया कि इस हमले से सेंसेक्स में रिकार्ड गिरावट आएगी। पर इन सभी पूर्वानुमानों के विपरीत बाजार उन हमलों के बाद से अधिक मजबूत स्थिति में कारोबार कर रहा है। भारत की तेरह साल की सबसे महंगाई की दर अगस्त के 13 प्रतिशत से गिरकर मध्य दिसंबर तक 8 के भी नीचे आ गई है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के रंग को देखकर अब तक हर कोई हैरान है। किसी साल में पहली बार अब तक ऐसा हुआ है कि कच्चे तेल की कीमत जुलाई में 147 डालर प्रति बैरल तक पहुंच गई और दिसंबर 2008 के मध्य तक हमने 37 डालर प्रति बैरल का इसका निचला स्तर देखा। इस तरह का उतार-चढ़ाव पहली बार देखने को मिल रहा है। कच्चे तेल की कीमतों में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कमी को देखते हुए सरकार इसका फायदा आम लोगों को देने का कार्यक्रम बना रही हैं। इसे देखकर अब 2008 को गाली दें इसका शुक्रिया अदा करें यह समझ में नहीं आ रहा है। क्योंकि तेल की कीमतों के कम होने से लोगों को बड़ी राहत मिली है और आगे और भी मिलने जा रही है। मैं कोई पूर्वानुमान करने में भरोसा नहीं करता पर हां जिस तरह से कुछ और भविष्यवाणियां की जा रही हैं उसके मुताबिक अभी हम मंदी के दौर से नहीं गुजरने में पूरा का पूरा 2009 लेंगे। क्योंकि अभी पूरी दुनिया मंदी के चपेट में है। पर मंदी से सबसे अधिक मुझे जो भारत में प्रभावित लगता है वह है यहां का निर्यातक कारोबार, आज की तिथि में हमारे देश के कपड़े और गहने विश्व के उत्पादों का मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं। क्योंकि हमारे अधिकतर उत्पादों की खपत दुनिया के विकासशील देशों में होती है और वहां केलोगों ने अपने खर्चे सीमित कर लिए हैं। अधिकतर लोग अब कपड़े और गहने पर खर्च करने के बजाय अपने खाने और बच्चों की पढ़ाई पर खर्च कर रहे हैं। 2008 वर्ष केइसी रंग को हम नहीं भुला पाएंगे क्योंकि इसे हम ना बुरा कह सकते हैं ना भला कह सकते हैं न ही इसमें किसी अध्ययन के बाद किया गया पूर्वानुमान ही सही निकला।

सोमवार, 22 दिसंबर 2008

सीढ़ियों का शहर शिमला


दिल्ली से लगभग साढ़े चार सौ किलोमीटर दूर शिमला को मुझे देखने का मौका पहली बार 17 दिसंबर को मिला। मुझे यह शहर सच पूंछें तो बहुत अच्छा लगा। यहां के रहने वाले लोग कितने सय हैं उसका अंदाजा वहां की सफाई व्यवस्था को देखकर लग गया। पहाड़ पर बसे इस शहर को मैंने एक नाम दिया जिसे मेरे दोस्तों ने मान्यता भी दे दी। वह नाम है `सीढ़ियों का शहर´। हालांकि इस शहर को अगर भाभियों का शहर कहा जाए तो उसमें कुछ बुरा नहीं होगा क्योंकि अगर आप यहां शादी से पहले जाते हैं तो हर तरफ नए शादी शुदा जोड़े आपको देखने को मिलेंगे। तो मेरे दोस्त सौरव ने इस शहर को भाभियों केशहर का नाम भी दे दिया। इस शहर का और बॉलीवुड की पुरानी फिल्मों का गहरा नाता भी रहा है जिसकी कहानियों में अक्सर आपने देखा होगा कि एक कनüल की लड़की होती है और हीरो यह शहर घूमने आता है और उसे उस लड़की से प्यार हो जाता है। इस तरह से पूरी कहानी आगे बढ़ती है। इस कहानी का असर हम जैसे सैकड़ों युवाओं पर अब भी है जो इस शहर में सिर्फ इसलिए आते हैं कि कोई उन्हें कनüल की लड़की मिलेगी और प्यार हो जाएगा। पर ऐसा नहीं है क्योंकि अब ना वो कनüल रहे ना ही कनüल की लड़कियां। घूमना है अगर आपको इस शहर को तो बिना किसी उमीद के आइए मस्ती कीजिए और वापस चले जाइए। अगर शरीर का वजन अधिक है तो इस शहर में आकर कुछ महीने गुजारिए शर्तिया आपका वजन कम हो जाएगा।

मैं और मेरे दोस्त कालका के रेलवे स्टेशन पर। शिमला के ट्रेन के पास
मोटे अजगर के साथ वैसे मैं सांप से बहुत डरता हूँ लेकिन ये सौंप नही है लोगों से डरा हुआ अजगर है जो कुफरी में पैसा कमा के अपने मालिक को दे रहा है।
मैं ग्रीन वैली के सामने।
शिमला के हेलीपैड पर मैं फोटो के लिए बैठा हुआ। यह बहुत ही पुराना हेलीपैड है जहाँ पर आकर दिल खुश हो जाता है।
मैं अपने दोस्तों सौरव और गौरव के साथ शिमला नगरपालिका के सामने।
शिमला से १७ किलोमीटर दूर कुफरी में देवदार के पेड़ पर फोटो खिंचवाते हुए। इस पेड़ पर चढ़कर सच में बहुत मज़ा आया।
मैं ग्रीन वैली के सामने। ये वो जगह है जहाँ पर प्रतिदिन हजारों लोग घूमने आते हैं । तो अगर आपको भी मौका मिले तो यहाँ ज़रूर तसरीफ लायें।

मंगलवार, 9 दिसंबर 2008

युवाओं की अनोखी पहल



kuch aisa karne ki zaroorat hai hamen ab waqt aa gaya hai ki hum kuch kar guzaren. to aap bheee hamare saath aa jayen................

शनिवार, 29 नवंबर 2008

ये सफलता हमारे जवानों की है ना कि कब्र में पैर लटकाए नेताओं की


26 नवंबर 2008 बुधवार को शुरू हुए मुंबई के आतंकी हमलों से निपटने केलिए बिना देरी किए दिल्ली के 200 एनएसजी कमांडो को रवाना किया गया। देश केलिए मर मिटने को तैयार रहने वाले इन स्पेशल कमांडो मुंबई पहुंचते ही मोर्चा संभाल लिया। पर किसी ने नहीं सोचा था कि हमारे बीच से दो जाबांज मेजर संदीप और कमांडो गजेंद्र चले जाएंगे। 60 घंटे तक चला आपरेशन जब पूरा हुआ तो हमारे बीच ये दुखद खबर भी आई कि अब ये जाबांज सिपाही हमारे बीच नहीं रहे। उनकी इस कुरबानी को देखकर लता जी का गाया गाना ऐ मेरे वतन केलोगों जरा आंख में भर लो पानी..., जेहन में गूंजने लगा। इसकेसाथ ही मुंबई के एटीएस प्रमुख हेमंत किरकरे और अशोक काटे जैसे सच्चे सिपाहियों की शहादत दिल को कचोटने लगी।
देश केलिए अपनी कुरबानी देने वाले ये जवान तो चले गए पर इसकेपीछे राजनीति की रोटी सेंकने वालों को पीछे छोड़ गए। जब मुंबई जल रही थी, हर तरफ आतंक फैला हुआ था तब राज ठाकरे का ना तो कोई बयान आया ना ही उनका मराठा मानुष इस सीमापार आतंकियों से लोहा लेने केलिए सामने आया। इस मुश्किल की घड़ी सबसे पहले अगर कोई दिखा तो वह था पूरे देश का जज्बा जो अपनी मुंबई को खतरे में देख सजग हो गया था और हर जगह उसकी सलामती केलिए दुआएं मांग रहा था। पूरे साठ घंटे चले आपरेशन को लोग टीवी पर देखते रहे। हमारे सैनिकों ने तो अपना काम कर दिया अपनी बहादुरी से दुश्मन केदांत खट्टे कर दिए। कायरों की तरह वार करके आतंकियों ने जहां लगभग 200 मासूमों की बलि चढ़ाई तथा 300 से भी अधिक लोगों को घायल कर दिया। तो हमारे शेरों ने इस्लाम के नाम को कलंकित कर रहे इन आतंकियों को सामने से वार करकेउनके अंजाम तक पहुंचा दिया।
आतंक फैलाकर अपनी जान देने वाले इन युवा आतंकियों जैसे और हजारों आतंकियों को इससे तो एक सबक लेना ही चाहिए कि जब वे मरते हैं तो लोग उनकी लाशों पर थू-थू करते हैं तथा जब हमारे देश केसैनिक उनको मारते हुए शहीद होते हैं तो उनकी याद में हमारे देश की करोड़ों जनता की आंखें नम हो जाती हैं। लोगों को बचाने के लिए जिन लोगों ने अपनी कुरबानी दी है उनका नाम हमेशा इस जहां में अमर रहेगा। सीमा पार आतंकियों को इससे एक चीज तो सीख ही लेनी चाहिए कि वे जितनी भी हमारी देश की अखंडता को तोड़ने की कोशिश करेंगे उससे लोग और एक दूसरे से जुड़ जाएंगे। आतंकी सिर्फ अपने कमीनेपन को उजागर मासूम लोगों को मारकर कर सकते हैं पर जब बहादुरों से उनका सामना होगा तो उनकी रूह कांप उठेगी।
अगर मुंबई केइस आपरेशन पर कोई भी पार्टी में बाद मेंं बयानबाजी करके एक दूसरे पर आरोप मढ़ने की कोशिश करेगी तो उससे हमारे शहीदों को बहुत दुख पहुंचेगा। पर इन नेताओं को कौन समझाए घटिया संस्कारों में पले बढ़े ये देश केभाग्यविधाता अपनी हरकतों से बाज नहीं आएंगे। अब आपरेशन खत्म हुआ है और अतीत की बातों पर भरोसा करें तो इस पर सियासत कल से ही शुरू हो जाएगी। केंद्र सरकार आने वाले चुनाओं में इन जाबांजों की मेहनत को अपनी कुशलता बताकर लोगों से अपने पक्ष में वोट करने को कहेगी तो विपक्षी पार्टी उन पर दूसरे तरह से वार करके इसमें मरने वाले लोगों का जिमेदार केंद्र को ठहराएगी। पर जो सच्चाई है वह पूरी दुनिया ने देखी है और सब जानते हैं कि मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी, अमर सिंह, लाल कृष्ण आडवाणी, राज ठाकरे एक मच्छर भी मारने की ताकत नहीं रखते तो ऐसे में आतंकियों से अगर उनका सामना हो जाए तो वे क्या करेंगे इसकी आप कल्पना कर सकते हैं। यह जीत हमारे जाबांजो की है और उनकी सफलता का श्रेय कोई भी तुच्छ पार्टी नहीं ले सकती।
जय भारत और जय जवान
अमित द्विवेदी

सोमवार, 24 नवंबर 2008

क्या यही प्यार है...

तुम मुझे भूल तो नहीं जाओगे? किसी और से बात मत करना प्लीज और मेरा इंतजार करना समय से खाना खा लेना और सुबह उठते ही पहले मेरा संदेश पढ़ना। अब मैं आपको रोज सुबह जगाया करूंगी तभी उठना। चलो अब सो जाओ। यह डॉयलाग सभी केसाथ उस समय घटता है जब वह प्यार के अपने पहले या दूसरे दिन में होते हैं और बात आई लव यू तक पहुंच जाती है। दुनिया हसीन लगने लगती है हर तरफ सिर्फ एक प्यारा सा संसार दिखाई देता है जिसमें सब अच्छे लगते हैं। कुल मिलाकर जिंदगी मोबाइल फोन और इंटरनेट केइर्द-गिर्द घिरकर रह जाती है। उसका इंतजार रहता है जिसके साथ चार दिन में चार सौ साल तक जीने तक केसपने देख लिए जाते हैं।
पर जैसे-जैसे दिन बीतते हैं बस प्यार में शिकायतें दस्तक देती हैं। डायलॉग बदल जाता है। प्यारा सा अहसास दिलाने वाली सारी बातें समय केसाथ धूमिल हो जाती हैं। फिर कुछ इस तरह से डायलॉग बनने लगते हैं।
मैंने तुहें फोन किया था। तुहारा फोन व्यस्त जा रहा था तुम किससे बात कर रहे थे। वह जरूर कोई लड़की या लड़का रहा होगा। तुम मुझे भूल रहे हो? आज तुमने पूरे दिन में मुझे एक बार भी याद नहीं किया। आखिर इतने जल्दी ऐसा क्या हो गया कि तुहें मेरी परवाह नहीं रही। इस तरह से चलते-चलते एक दिन ऐसा आता है कि शिकायतों और गुस्से के बवंडर में फंसकर पहले दिन के किए गए वादे और सारे प्यारे अहसास दुश्मनी में बदल जाते हैं। इसके बाद में जब प्यार का अंत होता है तो उसकी शुरुआत और भी भयानक होती है। जो कुछ सप्ताह पहले एकदूसरे के बगैर जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता था वह अब अपने दोस्तों में बैठकर अपने प्यार को जलील कर रहा है। उसकी गलतियां गिना रहा है। ये अंश जो मैंने लिखे हैं आज के प्यार की वास्तविकता है अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप इसे क्या नाम देंगे। क्या यह सच में वही वाला प्यार है जिसे लैला-मजनू और हीर रांझा ने किया था। या फिर अब जरूरतों वाला प्यार है जिसमें एक इनफैचुएशन केसिवा कुछ और नहीं है। हर कोई किसी को चाहता है पर उसकेप्रति कितना गंभीर रहना चाहता है इसका वादा वह ना खुद से करता है ना ही उसका आभास अपने साथी को होने देता है। इस तरह से कुल मिलाकर कहा जा सकता है यह एक तरह की बीमारी है जिसमें बहुत से लोग एक दूसरे को मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं। जिसका उदाहरण मुझे देने की जरूरत नहीं है अखबार समाज का आइना हैं उसमें हर दिन ऐसी खबरें प्रकाशित होती हैंं जिसमें प्यार के अंत का बेहतर उदाहरण दिया जाता है। पर मैंने अब तक जो देखा है वह मैंने बताया। अब आगे आप क्या सोचते हैं वह मुझे बताएं। और आधुनिक समाज के प्यार की एक परिभाषा देने में मुझे मदद करें जिसे मैं अपने अगले किसी पोस्ट में प्रयोग कर सकूं।

रविवार, 16 नवंबर 2008

आओ करें 12 ज्योर्तिलिंगों के दर्शन







अभी तक मैं जहां-जहां गया उन जगहों के बारे में आपको विस्तार से बताया और कुछ अपनी वहां की तस्वीरें भी दिखाईं। पर इन यात्राओं के दौरान मैंने कई पवित्र तीर्थस्थलों को भी देखा। अचानक मेरे मन में विचार आया कि क्यों ना मैं अपने इस ब्लॉग के माध्यम से आपको भगवान शंकर के 12 पवित्र ज्योर्तिलिंगों के दर्शन अपने शब्दों और वहां ली गई तस्वीरों के माध्यम से करवा दूं। मैं धीरे-धीरे इन सभी ज्योर्तिलिंगों के दर्शन कर रहा हूं। 16 नवंबर तक मैंने तीन ज्योर्तिलिंगों देखे जिनमें से सभी महाराष्ट्र में स्थित हैं। उनमें से मैं आपको त्र्यम्बकेश्वर , भीमा शंकर और घुश्नेश्वर के बारे में विस्तार से बताऊंगा। पर सबसे पहले मैं त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंगों से अपनी शुरुआत करूंगा। अपनी इस धार्मिक यात्रा में मैं आपको वहां के इतिहास के साथ-साथ मौजूदा स्थिति को भी बताऊंगा। तो आइए चलते हैं

त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग:-
मैंने इस ज्योर्तिलिंग का दर्शन 6 जनवरी 2007 को किया। मैं जब यहां पहुंचा तो उस समय बहुत अधिक भीड़ नहीं थी क्योंकि उस समय कोई खास धार्मिक पर्व नहीं चल रहा था। मैं नासिक के ज्युपिटर होटल में रुका हुआ था जहां से पवित्र स्थल 30 किलोमीटर दूर है। सुबह नौ बजे मैं अपनी मां के साथ यहां पहुंचा। उस समय मन में श्रद्धा के भाव भरे हुए थे। पर जैसे ही हमने इस तीर्थ में प्रवेश किया तो ढेर सारे पंडित और पुजारी हमारे पीछे लग गए कि आप इतना रुपया हमें दे दीजिए हम आपको जल्दी से और आराम से दर्शन करवा देंगे। उसके लिए आपको सिर्फ 800 रुपये खर्चने होंगे। थोड़ा सा आराम से दर्शन करने के लिए हमने बागेüनिंग शुरू की पर पंडित जी 500 रुपये से नीचे नहीं आए और हमने अपने आप ही भगवान का दर्शन करने का फैसला किया। जब हमने इस जयोतिलिZग के परिसर में प्रवेश किया तो वहां की गंदगी देखकर दंग रह गए। जिस ज्योर्तिलिंग के दर्शन करने लोग देश-विदेश के कोने-कोने से आते हैं वहां पर इतनी गंदगी हो सकती थी ये मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। लाइन में लगकर जब हम मुयद्वार पर पहुंचे तो वहां पर किसी व्यक्ति ने मल त्याग कर रखा था जहां मखियाँ भिनभिना रही थीं और लोग पवित्र भाव से उस पर पैर रखते हुए गंदगी मंदिर में लेकर जा रहे थे। उस गंदगी को देखकर मैंने सोचा कि इसकी शिकायत किसी मंदिर के प्रमुख पुजारी से की जाए पर वहां पर मुझे कोई नहीं मिला और जो मिला भी वह भक्तों की तलाश में पड़ा था जिससे उसे कुछ पैसे मिलते। उस गंदगी के बीच से निकलते हुए अंतत: हमने दर्शन कर लिया और होटल वापस आ गए।
धार्मिक पृष्ठभूमि:- गोदावरी के तट पर स्थित इस ज्योर्तिलिंग की गणना भगवान शिव के बारह ज्योतिलिZगों में से होती है। यहां के निकटवतीü ब्रहमगिरी नामक पर्वत से पूत सलिला गोदावरी नदी निकलती हैं। गोदावरी का महत्व दक्षिण भारत में ठीक उत्तर भारत की गंगा की तरह है। गोदावरी नदी ऋषि गौतम की घोर तपस्या का फल है। भगवान आशुतोष ने खुश गौतम को यह नदी वरदान के रूप में प्रदान की थी। जिस समय गौतम मुनि यहां के ब्रह्मगिरि पर तपस्या कर रहे थे उन्हें इस दौरान अनेक सिद्धियां प्राप्त हुईं। पर उनके प्रताप से जलेभुने कुछ संतों ने उन पर गोहत्या का आरोप लगा दिया और उसके प्रायश्चित के लिए उन्हें यहां पर गंगा जी को लाने को कहा। गौतम मुनि ने इस झूठे पाप से मुक्ति पाने के लिए एक करोड़ शिवलिंगों की पूजा की जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव शिवा के साथ प्रकट हुए। पर जब जब ऋषि ने वरदान मांगा तो गंगा यहां आने को तैयार नहीं हुईं। उनका कहना था कि जब तक शिव यहां प्रतिष्ठित नहीं होते वे वहां नहीं आएंगी। गंगा के इस आग्रह पर भगवान शिव ज्योतिलिZग के रूप में वहां प्रतिष्ठित हुए और गंगा गौतमी के रूप में वहां उतरीं। इसके बाद सभी देवताओं ने प्रकट होकर यहां पर गंगा का अभिषेक किया। तभी से जब गुरू सिंह राशि पर रहते हैं तब सभी तीर्थ गौतमी या गोदावरी के किनारे उपस्थित हो जाते हैं।
कैसे पहुंचे:- नासिक रेलवे स्टेशन से बहुत सी छोटी-छोटी गाçड़यां यहां के लिए चलती हैं। यहां पर पहुंचकर आप धर्मशालाओं में भी शरण ले सकते हैं। जब कभी भी आप यहां आएं तो कम से कम तीन दिन का समय लेकर आएं क्योंकि यहां के आसपास कई ऐसी धार्मिक जगहें हैं जिनकी रमणीकता देखकर आपका मन प्रसन्न हो उठेगा। ब्रहमगिरि, नीलगिरि और ब्रृह्मद्वार देखने जरूर जाएं।

शनिवार, 15 नवंबर 2008

दिल्ली के रेडलाइट पर भिखारियों की जगह हिजड़े

आजकल दिल्ली केरेड लाइट वाले चौराहों पर एक नया बदलाव देखा जा सकता है। यहां से पारंपरिक भिखारियों की संया अचानक कम हो गई है। उनकी जगह हिजड़ों ने ले ली है। हिजड़ों को आजकल हर रेड लाइट से अच्छी भली रकम मिल जाती है जिसे देखकर ऐसा लग रहा है कि भिख मांगने का काम करवाने वाले आकाओं का यह आइडिया पूरी तरह से सफल हो रहा है।दो महीने पूर्व शनिवार को मैं अंसल प्लाजा केपास से निकलकर नोएडा केलिए रिंग रोड पर आने के लिए रेड लाइट पर खड़ा हुआ तभी मैंने वहां देखा कि कई औरतें साड़ी में खड़ी हैं। पर जब वे मेरे पास आईं तो पता चला कि वो हिजड़ा लोग हैं जो यहां पर लोगोंं से पैसे मांग रहे हैं। मुझे लगा कि सिर्फ ये हिजड़े यहीं केचौराहे पर होंगे। पर बाद में मैंने दो महीने के अपने दिल्ली के विभिन्न इलाकों का भ्रमण करने केबाद ये निष्कर्ष निकाला कि ये हिजड़े तो अब दिल्ली केहर चौराहे पर पहुंच चुके हैं। मैंने इस बारे में दिल्ली केकुछ लोगों से बात करकेये जानने की कोशिश की तो ये पता चला कि ये हिजड़े वास्तव में रेवेन्यू कम हो जाने के कारण यहां पर लाए गए हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि मैं किस रेवेन्यू की बात कर रहा हूं। भाई ये वही रेवेन्यू है जो दिल्ली केसभी चौराहों से भिखारियों द्वारा वसूला जाता है। ये सारा पैसा उनकेआकाओं तक पहुंचकर कई तरफ से बंटता हुआ इन भिखारियोंं को उसका कुछ अंश तनवाह के रूप मे मिलता है। पर पिछले कुछ सालों में लोगों ने भीख देना लगभग बंद सा कर दिया। इससे इस धंधे को काफी नुकसान होने लगा। इस नुकसान की भरपाई केलिए पूरे दिल्ली में लाखोंं हिजड़ों को चौराहोंं पर तैनात किया गया है। ये लोगों केसाथ बत्तमीजी करके कुछ ना कुछ सभी लोगोें से निकलवा ही लेते हैं। लोग इनसे बचने केलिए दस पांच रुपये देकर अपना पिंड छुड़ा लेते हैं। चौराहों पर जो हिजड़े आजकल भीख मांगते नजर आ रहे हैं वास्तव में उनमें से कई लोग सामान्य पुरुष हैं पर पैसा कमाने के लिए उन्होंने यह रूप धरा हुआ है। अब जब आप किसी चौराहे से दिल्ली के निकलें तो इस बदलाव को ध्यान से जरूर देखिएगा। वैसे भी दिल्ली केसभी चौराहों से अब गंदे-गंदे भिखारी कम हो गए हैं तथा शनिदेव केनाम पर उगाही करने वाले भी अब इस धंधे से धीरे-धीरे दूर हो रहे हैं। यह भी हमारेआजाद देश का ही एक रूप है जो आए दिन अपना रंग बदल रहा है। मैनेजमेंट केइस युग में भला भिखारियों का धंधा कब तक नुकसान में चल सकता था। इसलिए भिखारियों केसरादार ने इस धंधे में नई जान फूंक दी और इसे दोबारा मुनाफे में ला दिया।

मंगलवार, 4 नवंबर 2008

मैं और मेरा ऑफिस

मैं हर एक पल का शायर हूँ हर एक पल मेरी जवानी है हर एक पल मेरी मस्ती है हर एक पल मेरी कहानी है।
मैं और मेरा ऑफिस आपास में अक्सर ये बातें किया करते हैं की मैं वहां होता तो कैसा होता मैं वहां होता तो कैसा होता। लेकिन ये यात्रा किसी को नही पता की कहाँ जाने वाली है मुझे भी। देखते हैं मैं और मेरी ये उड़ने की जिज्ञासा मुझे कहाँ ले जातीं हैं।

शादी होते ही चमक गयी किस्मत


कहते हैं की हर सफल व्यक्ति की पीछे एक महिला का हाथ होता है। मैं इस कहावत पर ज्यादा भरोसा नही करता था लेकिन मेरे ऑफिस में एक ऐसी घटना घटी जिसने मुझे ये भरोसा दिला दिया की हाँ ये सच है. तो हुआ यूँ की मेरे ऑफिस में स्पोर्ट्स डेस्क पर एक अजय नथानी जी थे. प्रतिभा तो उनसे लिपटी पडी थी. पर उनकी ही एक परेशानी थी जो की हर पत्रकार के साथ होती है वो थी की उनकी प्रतिभा को कोई समझ नही रहा था. नथानी जी शादी के योग्य बहुत पहले हो गए थे पर जीवन के झंझावातों में फंसकर वो उसे साकार रूप नही दे पाए थे. लेकिन जब उन्हें ऑफिस में परेशानी ज्यादा होने लगी तो उन्होंने शादी कर ली बस क्या था नथानी जी की किस्मत चमक गयी. शादी होने के एक महीने में ही उन्हें सहारा से ऑफर आया और वो चले चीफ सुब बनकर सहारा. उन्हें हमारे ऑफिस में हर कोई मिस करता है. लेकिन नथानी जी अभी तक किसी से नही मिलने आए उनके इस व्यवहार से ये लग रहा है की ये यहाँ पर कितने परेशान थे. पर जो भी हो देर में ही शादी की नथानी भाई ने लेकिन उनकी पत्नी तो किसी लक्ष्मी से कम नही निकली. अगर आप भी परेशान हैं और उम्र बढ़ रही है तो निडर होकर शादी कर लें तरक्की आपके कदम चूमेगी. और इसे पढ़कर नथनी जी को शुक्रिया कहना ना भूलें मैं इसीलिए उनकी फोटो भी प्रकाशित कर रहा हूँ.

जय हो नथानी भाई हमेशा खुश रहो और तरक्की करो ढेर सारी आपको बधाई

बुधवार, 29 अक्तूबर 2008

वो जो उल्ले बैठे हैं ना....

आ जा बेटा खूब चिला और ये ले खाना पीना खा. ये सब खाना पीना सचिन तेंदुलकर के शतक के उपलक्ष में है आज वो ज़रूर शतक जमाएगा. और सुन गुडिया इधर आ वो देख जो कपडे वपड़े उतर के उल्ले साइड में बैठे हैं ना वो हैं ऑस्ट्रेलिया के प्लेयर और जो ओढे बेधे हैं और पल्ले साइड में हैं ये हैं अपने हिन्दुस्तान के खिलाडी. लेकिन पापा धोनी कौन है इसमे से? अरे बेटा वो यहाँ करेगा बाथरूम में बैठा कपडे धो रहा है. अब तू एक काम कर खूब ज़ोर ज़ोर से चिल्ला और मज़े कर मैं थोडी ड्यूटी करके आता हूँ नही तो फालतू लोग स्टेडियम में घुस आयेंगे. और देख इधर उधर मत जाना. ये सीन है बुधवार दोपहर १ बजे फिरोजशाह कोटला स्टेडियम डेल्ही का वेस्ट एंड स्टैंड गेट नो दो का. जहाँ पर ड्यूटी कर रहे एक डेल्ही पुलिस के सिपाही ने अपने परिवार के कुछ सदस्यों को मच के लिए बुलाया था और अपनी गुडिया से बात कर रहा था और उसे समझा रहा था. उस टाइम सचिन ६८ और गंभीर ६४ पर बैटिंग कर रहे थे. इसी बीच सचिन ने एक चौका लगाया. वो गेंद पवेलियन की और गयी. जहाँ पर लोगों को सहवाग के चेहरा नज़र आया. क्यूंकि सहवाग २९ अक्टूबर को खेले गए इस मच की पहली परी में सिर्फा १ रन ही बनाया इसलिए लोगों को थोडी निराशा हुयी थी. बस क्या सहवाग को देखते ही हर कोई चिल्ला उठा वीरू वीरू जब सब चुप हो गए तब एक पाँच साल का बछा बहुत ही बुलंद आवाज़ में बोलता है की ओये वीरू तेरी वसंती कहाँ है? उसकी ये बात सुनकर वहां मौजूद हर कोई हंस पड़ा. ये था मेरा मच का पहला दिन जिसमे ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पहले दिन २९६ रन बनाये तीन विकेट के नुकसान पर. गंभीर ने पहले दिन शतक जमाते हुए १४९ रन बनाये और ५४ रन बनाकर लाक्स्मन उनका साथ दे रहे थे. सचिन ने भी इस मच में ६८ रन की लाजवाब परी खेली. अमित द्विवेदी

शनिवार, 25 अक्तूबर 2008

बन सकते हो तो राज ठाकरे बनो

जब कोई बच्चा होता है तो उसे उसके परिवार वाले बड़े आदर्शों वाली कहानियाँ सुनते हैं और उसे वैसा आचरण करने के लिए और उसके जैसे बनने के लिए कहते हैं. पर मैंने जब से राज की दादागिरी मुंबई में देखी है तबसे मन कर रहा था कुछ लिखूं और आज मौका मिला तो लिख रहा हूँ. मैं आप सबसे कहना चाहता हूँ की अगर आप कुछ बनना चाहते हैं तो राज ठाकरें बनो. राज एक ऐसा नाम है जो कुछ भी कर सकता है. वो जेल के बाहर घूमने वाला गुंडा है. पर पुलिस उसके सामने कुछ भी नही किसी को वो मर सकता है किसी कोई पीट सकता है कुछ भी किसी कोई कह सकता है कानून और अदालत उसके सामने कोई मायने नही रखते. अब आप ही सोचिये अगर हम सब राज ठाकरे जैसा बन जायें तो देश से पुलिस और कानून की ज़रूरत ख़त्म हो जायेगी. क्यूंकि सरकार तो राज कोई चैलेन्ज कर नही सकती तो उसे कम से कम हम एक गुंडा संप्रदाय का प्रतिन्धित्व करने के कारन चैलेन्ज तो कर पाएंगे. भाई जिस बन्दे में इतनी ताकत है ऐसा बन कर हम भी देश का नाम रोशन करें. इसके बाद फिर हम राज ठाकरे से पंगा भी ले पाएंगे. तो भाइयों मैं आप सबसे अनुरोध करता हूँ की सामने आयें और नही ज्यादा तो एक राज ठाकरे बनकर दिखाएँ क्यूंकि ऐसा करने से ही आप इस देश के शसक्त नागरिक कहलावोगे. तो आवो आज हम सकल्प लें की इंडिया के हर प्रदेश और शहर पर अपनी क्षेत्रीय भाषावों का राग गाकर अपना बर्चस्व कायम करें.
जय राज ठाकरे का नारा लगावोए और देश में सैकडों राज बनावो

सोमवार, 13 अक्तूबर 2008

और वो यमुना me कूद गयी

बात रविवार के रात ११ बजकर १० मिनट की है। मैं अपने नॉएडा स्थित अपने ऑफिस से घर लौट रहा था। जैसे ही मैं नॉएडा टोल ब्रिज के यमुना पुल पर पहुँचा मैंने देखा एक लडकी यमुना के पुल के रेलिंग पर चढ़कर बिना कुछ कहे नीचे छलांग लगा गयी। उसके साथ दो व्यक्ति थे एक की उम्र लगभग २८ साल रही होगी और दूसरे की उम्र ३२ साल से ३६ साल के बीच में थी। ये लोग एक बड़ी गाडी में सवार थे। मैंने सोचा पहले कुछ करूँ पर मैंने उन दोनों बन्दों का रवैया देखकर उनके पास नही गया क्यूंकि उन लोगों ने वहां रुकने वाले लोगों के साथ बत्तमीजी की। मैं थोड़ा जाकर आगे रुक गया और वहां पर ५ मिनट में पोली की जिप्सियां आ गयीं और एक फायर बिग्रेड की गाडी भी आयी। मैंने जब उन लोगों से पुछा की माज़रा क्या है तो उन्होंने कहा की यमुना में कोई गाडी गिर गयी है। मैं उन पुलिस वालों के साथ घटनास्थल की और बढ़ा। मैंने देखा वो दोनों बन्दे एक दूसरे से गले लगकर कर रो रहे थे। मुझे देखते ही उसमे से एक बंद आगे बढ़ा और पूछता है आप कौन हो? मैंने कहा देखो मैं प्रेस से हूँ और मैंने यहाँ देखा कुछ हुआ सो रुक गया। तो उस बन्दे ने मुझसे कहा आप यहाँ से चले जाओ। जब मैं थोड़ा गुस्से में उनसे बात की तो वो बंद मेरे पैर पड़ने लगा और बिनती करने लगा की देखिये भाई साहब मैं पहले ही अपनी भाभी को खो चुका हूँ अब कोई और पंगा नही करना चाहता। यही कहकर वो रोने लगा मुझे उसपर दया आ गयी और मैं वहां से चला आया। एक बार सोचा लावोए अपने अख़बार के दफ्तर में फ़ोन कर दूँ। पर मैंने सोचा रहने दो बेचारे परेशान हैं और मैंने किसी को नही बताया हलाँकि दूसरे दिन अख़बारों में मैंने सिंगल कालम खबर देखि पर उसमे किसी का नाम नही दिया था सिर्फा इतनी इन्फोर्मेशन थी की कोई यमुना में कूद गया है। लगता है इस मामले में पुलिस भी गोलमाल रवैया अपना रही है। अब मुझे ये नही पता लगा की आख़िर वो लडकी यमुना के क्यूँ कूद गयीए। अब आप बताएं मैंने कुछ ग़लत तो नही किया। क्यूंकि मैंने किसी को इसकी ख़बर किसी भी नही दी।
अमित द्विवेदी

रविवार, 12 अक्तूबर 2008

और मैं पहुँचा 'लहरों का सरताज़' बनने

और मैं पहुँचा 'लहरों का सरताज़' बनने ११ अक्टूबर को मैं जब घर पहुँचा तो मैंने अपने मोबाइल में सुबह चार बजे का अलार्म फिट कर दिया क्यूंकि मुझे लहरों का सरताज बनने के लिए ऑडिशन देने जाना था. १२ अक्टूबर को सुबह सुबह मैं चाणक्य पुरी के नवल बाग़ में पहुँच गया. वहां पहले से ही करीबन ४०० लोग लाइन लगाये बैठे थे. मैंने एक भाई से पुछा की क्या यही लाइन है नेशनल जेओगार्फिक चैनल के शो 'लहरों के सरताज़' के ऑडिशन के लिए. उस व्यक्ति ने जवाब दिया जी बिल्कुल. मैंने अपनी गाडी साइड में पार्क की और और मैं भी उन्ही के साथ बैठ गया. जिन बन्दों के साथ मैं बैठा था वो सोनीपत से आए थे ऑडिशन देने. थोड़ी देर बाद हमारी बातचीत शुरू हो गई और हमने गप्पे लगना शुरू कर दिया. बातों बातों में कब सुबह हो गयी पता हेई नही चला. मैंने सुबह ६ बजे देखा तो मेरे पीछे लाइन इतनी लम्बी हो गयी थी की उसमे लोगों के सर के सिवा कुछ और नज़र ही नही आ रहा था. करीबन सात बजे प्रवेश शुरू हो गया और मैं भी सभी के साथ अन्दर पहुँच गया. वहां पर मुझे एक चेस्ट जैकेट दी गयी जिस पर नम्बर लिखा हुआ था. मेरा नम्बर था २४९. मैं वहां पर सबके साथ बैठ गया और आगे के प्रोग्राम् का वेट करने लगा. लगभग आधे घंटे बाद मेरे साथ के करीबन ५०० बन्दों को एक साथ खड़ा करके १६०० मीटर की दौड़ के लिए कहा गया. ये आर्डर हमें नेवी के कुछ अधिकरियों ने दिया. दौड़ शुरू हो गयी. शुरू में बहुत से बच्चे तेज़ी से भागे और सबसे आगे निकल गए पर थोड़ी देर में ही वो थककर या तो बैठ गए या फिर गिर गए. मैं अपने एक ले में दौड़ता रहा कोई जल्दबाजी नही की. जिसका परिणाम ये हुआ की मैं १३ वें नम्बर पर अपने लक्ष्य पर पहुँच गया. इस दौड़ में नियम के मुताबिक ६० लोगों को लेना था. मैंने ये दौड़ जीतकर मानो सारा जहाँ जीत लिया हो. जो जीता था ये रेस सब चिल्ला रहे थे. मैं भी सभी के साथ खुशियाँ मन रहा था. मैं इसलिए खुश था की जो लड़के मेरे साथ सोनीपत वाले लाइन में बहार थे वो भी रेस जीत चुके थे. और हम सब एक साथ मिलकर लंच खा रहे थे. लगभग एक घंटे बाद दूसरे राउंड की प्रक्रिया शुरू हुयी. जिसमे मैं बहार हो गया क्यूंकि उसमे बन्दर बनकर चलना था. वैसे मुझे अभी लगता है की मैं सही था और उन लोगों ने चीटिंग की नही तो मेरा दूसरा राउंड बन्दर वाला भी क्लेअर था. लेकिन ये भी हो सकता है की मैं बाहर हो गया और मन को दिलासा दिलाने के लिए ऐसा कह रहा हूँ. लेकिन जो भी रहा ये मेरी ज़िंदगी का सबसे अनोखा और रोमांचक पल था जिसमे मुझे ये पता चला की हजारों की भीड़ में कैसे कोई एक जीतता है. इस पर मैं इतना ही कहूंगा जय नेवी और जय जवान अमित द्विवेदी

मंगलवार, 16 सितंबर 2008

आवो चलें शिरडी वाले बाबा के पास

मस्त बहारों का मैं आशिक जो मैं चाहूं यार करूँ ।
मेरी गाडी जो मुझे शिरडी तक ले गयी।

नासिक से २६ किलोमीटर दूर इस घाट पर जाने का आनंद ही अलग है।


मैं जब यहाँ से गुजरा तो ये सुहाना दृश्य देखकर गाडी पर ब्रेक लगा दिया। इस गांव का नाम खोपडी गांव है।








आजकल बरसात का मौसम है। नासिक के आसपास खूब बरसात हो रही है जब से मैं यहाँ आया हूँ भगवान सूर्या के दर्शन नही हुए हैं। शिरडी से ४० किलोमीटर पहले खोपडी गांव के पास एक ऐसी ही अनुपम छठा देखने को मिलती है। अगर आप भक्त होने के साथ प्रकृति प्रेमी हैं तो देर किस बात की ज़ल्दी कीजिये पता नही कब ये बरसात का मौसम चला जाए।

सोमवार, 15 सितंबर 2008

ये कैसा प्यार है?

एक व्यक्ति था वो काफी बुद्धिमान था उसे अपने ऊपर पूरा कांफिडेंस था। जो चाहता था भगवन की दया से उसे सबकुछ मिल जाता था। उसके पिता जी मध्य प्रदेस में एक सरकारी फर्म में चीफ engeener थे। पर उनकी डेथ सिर्फ़ ३९ साल की उम्र में ही हो गयी थी। उस समय वो व्यक्ति १४ साल का था। पर हर चीज़ में अवल रहने वाले उस व्यक्ति ने माँ के पालन पोषण में अपना एक पक्ष कमजोर कर लिया। वो पक्ष था उसकी लड़कियों के प्रति कमजोरी। ठीक समय पर उसकी शादी हो गयी। कुछ सालों बाद उसे एक बेटा भी हुआ। पर पाँच साल बाद उसने अपनी बेवी को तलाक दे दिया उसका क्या कारन था उसका ठीक से मुझे पता नही है। वो औरत अपने बच्चे को छोड़कर चली गयी। उसे तलाक देने के बाद वो व्यक्ति कुछ दिनों तक अकेला रहा। पर अचानक एक दिन उसकी मुलाकात एअरपोर्ट जेट ऐर्वाय्स के लिए काम करने वाली औरत से हो जाती है। ठीक उसी समय उसे उससे प्यार हो गया। बस क्या था कुछ महीने बाद उस लडकी से एक मन्दिर में जाकर महोदय ने गंधर्ब विवाह कर लिया। इस बीवी से महोदय को एक बच्चे हुयी। अपनी इस बीवी के साथ महोदय तीन साल तक रहे। इसके बाद उन्होंने अपनी इस बीवी को इसलिए छोड़ दिया क्यूंकि उन्हें इस बार एक २५ साल की मॉडल से प्यार हो गया कुछ महीने पहले अपनी माँ को साक्षी मानकर उससे विवाह कर लिया। थोड़े दिन उस लडकी ने जिस लिए शादी की थी वो पैसा वैसा बटोर के चलती बनी। जिस व्यक्ति की मैं बात कर रहा हूँ उसके तीन फाइव स्टार होलेल हैं इंडिया में। कई देशों में उसके ब्रान्चेस हैं। दो दिन पहले की बात है लगभग ४५ साल का ये व्यक्ति अपनी नयी बीवी के घर पहुँच गया। जहाँ पर उस नयी बीवी ने उसके साथ रहने से मना कर दिया। बस क्या था महोदय ने अपनी पिस्टल निकाल कर कहा तुम्हारे वगैर मैं नही रह सकता। यही कहकर उन्होंने गोली रविवार को अपने सीने में दाग लिया। गोली उनके दिल की थोड़ी से दूर रहती हुयी पार हो गयी। मुंबई के एक बड़े हॉस्पिटल में वो ज़िंदगी मौत से लड़ रहे हैं। अब आप ही बताएं एक बन्दा जिसके पास इतना सारा पैसा है उसने आपके साथ ऐसा क्यूँ किया। दुनिया की सबसे महँगी गाडियां उस बन्दे के पास हैं। वो मेरा बहुत खास है इसलिए अजीब लग रहा है। पर ये कौन सा प्यार है गलती किसकी है इसमे ये समझ नही आ रहा। इसलिए मैंने सोचा क्यूँ ना आज भड़ास निकला जाए। ये मसालेदार ख़बर नही है एक हकीकत है।
अमित द्विवेदी नासिक से

गुरुवार, 31 जुलाई 2008

जय भोले और ये दे मारा

किस पुराण में लिखा है की किसी को सताकर भी आप भक्ति कर सकते हैं. सिर्फ़ हरिद्वार जाने से ही वहां का गंगाजल पैदल चलकर लाने से ही भगवान् खुश नही हो जाते. अभी मैंने कंवाद के मेले में जो देखा उसका जिक्र यहाँ कर रहा हूँ जो आप सुनकर दंग रह जायेंगे. मैं अपने घर वापस जा रहा था आश्रम के पास से डाक कांवड़ वाले जा रहे थे एक आदमी गंगाजल लेकर दौड़ रहा था और एक मिनी ट्रक में १५ के लगभग लोग भगवे रंग के ड्रेस में बैठे हुए थे. इस ट्रक के आगे ६ लोग मोटर साइकिल पर सवार थे जिनके हाथ में मज़बूत हान्कियाँ थीं. ये लोग रास्ता खाली करवाने का काम कर रहे थे. मैंने अपनी आंखों से देखा की जय भोले के नाम का नारा लगते ये लोग रास्ता खाली करवाने के लिए तीन चार गाड़ियों के शीशे तोड़ दिए. एक बार मेरा मन हुआ की लावो मैं इन्हे भोले की महिमा बता दूँ पर चुप रहा क्यूँकी ये आस्था का सवाल था. अब हमारे देश में आडम्बर के नाम पर इस तरह से अपने ही लोगों के लिए मुसीबतें खादी कर रहे हैं जो किस हद तक जायज़ है ये सोचने वाली बात है. अब जी गाड़ियों के शीशे टूटे थे वो कहीं इसकी शिकायत भी नही कर सकते क्यूंकि ये आस्था का सवाल था. अब आप ही सोचिये क्या ऐसे दोषियों को सज़ा देने का प्रावधान हमें नही बनाना चाहिए. पता नही क्यूँ जब इस तरह के भोले बने लोगों को मैं देखता हूँ ज़ल भुन जाता हूँ. अरे भइया किसी के लिए कुछ न कर सको तो कम से कम उनका बुरा तो मत करो. भोले सबकी रक्षा के लिए जाने जाते हैं सिर्फ़ आग लगाने के लिए और दंगा फैलाने के लिए नही. अमित द्विवेदी

शनिवार, 26 जुलाई 2008

राफ्टिंग का रोमांचक सफर, जिंदगी में ये भी ज़रूरी है

मैंने पैदल के साथ राफ्ट के साथ।
मैं सबके साथ

एक पिद्दी सा झरना था इसका पानी बहुत मीठा था।


मेरी अब तक सबसे रोमांचक फोटो जिसे मेरे गाइड ने उस समय क्लिक किया जब मैं पहाडी से कूद रहा था। मुझे अब भी भरोसा नही होता की मैं वहां से कूदा कैसे।



मेरी टीम जिसमे कुछ लोग मुंबई और कुछ लोग इस्राइल के थे।




मेरी राफ्टिंग टीम जिसके साथ मैंने राफ्टिंग के कुछ किलोमीटर गुजारे।





गंगा की पावन धारा जिसकी लहरों पर राफ्टिंग करके ज़िंदगी का सबसे अनोखा अनुभव मिलता है।






राफ्टिंग के लिए मेरा राफ्ट तैयार करता मेरा गाइड।







शिवपुरी में बना राफ्टिंग का कैंप यहाँ पर रात में लोग जो राफ्टिंग करते हैं ठहरते हैं। प्रकृति के करीब बना ये कैंप सच में अनूठा है जिसमे रहकर लोग प्रकृति का पूरा आनंद उठाते हैं।








ये लेख मैंने ऋषिकेश से लौटकर लिखा था जिसमे मैंने राफ्टिंग के रोमांचक अनुभवों को बताया था।









शुक्रवार, 25 जुलाई 2008

नासिक की वर्षों पुरानी पांडव गुफा

ये गुफा कुछ यूँ दिखती है बाहर से यहाँ पर नासिक के लोग छुट्टी के दिनों में मस्ती करने के लिए आते हैं। अगर आप भी यहाँ जाना चाहते हैं तो जा सकते हैं
पांडव गुफा की ये मूर्तियाँ कुछ कहती हैं। पर मेरे ड्राईवर अरुण ने जो मुझे बताया उसके अनुसार यहाँ पर पांडवों ने अपना १२ साल का वनवास छुपकर काटा था।

कुछ इस तरह की प्राचीन काल की मूर्तियाँ हैं जिन्हें दखकर लगता है की वर्षों पहले इन्हे ये आकर्षक रूप दिया गया हो।


ज़िंदगी में इन पलों का आना भी उत्सव जैसा होता है.



रास्ता कठिन है पांडव गुफा में जाने का पर मुश्किल नही इस गुफा में जाने के लिए एक किलोमीटर की पहाडी चढ़नी पड़ती है। यहाँ जाने के लिए एक रास्ता बनाया गया है। अगर आप यंग हैं तो पहाडी के चढाई उन भी चढ़ सकते हैं जैसे की मैं चढ़ा।




रविवार, 20 जुलाई 2008

देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान्

एक थे नेता जी वो ग़लत काम करते थे। आतंकियों को मॉल देना उन्हें शरण देना उनकी दिनचर्या में शामिल था. एक दिन एक युवक को जोश आया और उसने नेता जी को मार डाला बस क्या था नेता जी अमर हो गए. और सौभाग्य बस नेता जी जब मूर्ती गांव में लगी और उनके आत्मशांति के लिए गांव वाले एकत्रित हुए तो उस युवक को ही उन्हें माल्यार्पण करने का मौका मिला. पता है उस युवक ने क्या किया. नेता जी को माला पहनते हुए कहा की ये जनता है इसकी यादास्त कमज़ोर है. आज माला पहनते हुए सब ताली बजा रहे हैं. पर कल आपकी इस प्रतिमा पर चिडिया और कबूतर अपना डेरा ज़मायेंगे और इस मूर्ती का इस्तेमाल अपने टॉयलेट के लिए करेंगे. यही नही तब कोई इस जनता के बीच से निकलकर इसकी सफाई करने नही आयेगा. आपको बता दूँ ये कहानी मैंने एक फ़िल्म में घटती देखी है. पर अब समझ में आ रहा है की ये नेता और जनता का नाता कितना पुराना है. कोई रैली हुयी तो जनता कुकुरमुत्ते की तरह किसी शहर की व्यवस्था चौपट करने पहुँच जाती है. उसे भी पता है की नेता जी किसी विपक्ष के नेता को गली देंगे और उस पर ताली बजाना है. मूंगफली वाले की मूंगफली छीनकर खाते हैं किसी फल वाले को पीटकर उसका फल खा जाते हैं और नेता जी की रैली को सफल बनाकर घर वापस आ जाते हैं. ये है हमारे देश की राजनीति जिसमे १०० भ्रस्ट नेता चुनाव ने खड़े होते हैं जनता को उसमे से एक सबसे अच्छे भ्रस्ट नेता को चुनना होता है. यहाँ के लचर कानून के कारन बहुत से नेता जी तो जेल में ही रहकर चुनाव जीत जाते हैं. सभी को पता है इनसे देश का उद्वार नही होने वाला पर किसे इसकी परवाह है. किसी भी तरह से पैसे बनने के लिए देश को गर्त में धकेलते जा रहे हैं. अब आज कल चल रहे राजनीतिक उठापठक को ही देख लीजिये जनता द्वारा देश की विकास के लिए तैयार नेता जी लोग संसद में अपनी मंदी लगाये बैठे हैं और अपनी कीमत फिक्स करने के बजाय जितना अधिक मिल जाए उसके आसरे बैठे हैं. मुझे तो लगता है की क्यूँ ना हम एक बार देश की तकदीर बदलने के लिए सामने आयें इस बिकावू राजनीति को दूर करके स्वस्थ भारत का निर्माण करें क्यूंकि युवा ताकत ही ऐसा कर सकती है, अब कब तक भगवान के पास जाने को तैयार ख़त्म हो चुके निर्बल लोग इस देश का भविष्य तय करेंगे. अमित द्विवेदी

गुरुवार, 17 जुलाई 2008

ज़िंदगी एक सफर है सुहाना....

कुछ ऐसे भी पल आए थे जिसपर अब यादों के साये हैं
कुछ पल भी ऐसे आए थे मैं खडा रहा खामोश, तस्वीर बनी अब यहाँ टंगी कुछ कहना नही सुनना नही

कुछ ऐसा मौसम आया था हर तरफ़ तूफ़ान सा छाया था, आयी थी जोरों की आंधी पर माँ ने मुझे बचाया था


मैं पल दो पल का बन्दा हूँ पल दो पल मेरी कहानी है



रविवार, 13 जुलाई 2008

मुंबई ने किया करूणाकर के ज़ज्बे को सलाम

करूणाकर के मामले को अब मुंबई के एक प्रतिष्टित अखबार नवभारत टाईम्स ने उठाया है। जिसे पढ़कर बहुत से लोग करूणाकर से जुड़ गए हैं। और करूणाकर की तवियत के बारे में जाने की इच्छा जताई. मैं इसके लिए माफी चाहता हूँ की करूणाकर की कुशल चेम नही दे सका. पर आज मैं आपको सारी जानकारी दे देता हूँ. करूणाकर अब पूरी तरह से स्वस्थ महसूस कर रहा है. उसे भूख लग रही है तथा डॉक्टर साहब के दवाइयों को नियमित ले रहा है. अभी जब मैंने उसे फ़ोन किया तो नेटवर्क सही नही आ रहा था तो करूणाकर फ़ोन लेकर अपनी चाट पर लकडी के सीढियों से चढ़ गया मुझसे बात करने के लिए. वहां जब वो बात कर रहा था तो उसकी सांसें ऊपर नीचे हो रही थीं. मैंने उसे खूब दांत लगाई की अब आगे से ऐसा मत करना. दांत खाकर वो सॉरी बोल रहा था पर वो बात करते हुए पूरी तरह से खुश था. आज एक बार फिर से मुंबई में नवभारत टाईम्स के द्वारा ख़बर छपने से बहुत से लोगों ने करूणाकर की मदद को हाथ आगे बढ़ा दिया है. मुंबई के वार्ष्णेय ट्रस्ट के दिनेश वार्ष्णेय ने करूणाकर को २ हज़ार रूपये की मदद की है. जो की सोमवार तक उसके खाते में आ जायेगी. इसके साथ ही नॉएडा के सेक्टर १८ में कपड़े का शोरूम चलने वाले अमित गुप्ता ने ५०० रूपये तथा. अमर उजाला के सीनियर सब एडिटर गौरव त्यागी ने १००० हज़ार रूपया और अजय नथनी जी की अगवाई में उनके स्पोर्ट्स डेस्क ने भी १००० रूपये देने का वादा किया है. ये सभी लोग ये राशि सोमवार को करूणाकर के खाते में जामा करवा देंगे. वैसे आपको ये बताना ज़रूरी है की डॉक्टर रूपेश जिस तरह से उसकी मदद कर रहे हैं वैसा और कोई भी करूणाकर के लिए नही कर सकता था. क्यूंकि पैसा तो हर कोई दे सकता है पर इलाज़ तो एक डॉक्टर ही कर सकता है. अगर आप मुंबई के रहने वाले हैं तो करूणाकर की ख़बर पेज नम्बर पाँच पर नवभारत टाईम्स में ज़रूर देंखें. मैं अगली पोस्ट ज़ल्द लिखूंगा.
अमित द्विवेदी

शनिवार, 12 जुलाई 2008

राम राज्य में ऐसा भी

मेरे जिम में दो लडकियां आती हैं। वो जिम में व्यायाम करने कम बल्कि इसका पता लगाने आती हैं की जिम में उन्हें कितने लोगों से कमेन्ट मिलता हां। उनकी आदत ठीक एक नए ब्लोगर की तरह है जो अपने हर पोस्ट पर ये देखना चाहता है की उसे लोगों से कितने कमेन्ट मिले हैं. इसे जानने के लिए वो अपने ब्लॉग का सबसे अधिक विज़िट करने वाला होता है पर बाद में ये देखकर खुश हो जाता है की आज उसे इतने लोगों ने विज़िट किया भले ही उन विजिटर में उसकी ख़ुद की संख्या ९० फीसदी होती है. तो मैं उन लड़कियों की कहानी सूना रहा था. तो जिम का कोई भी ऐसा बन्दा नही है जो उनसे वाकिफ ना हो. तीन घंटे रोज़ जिम में बिताने के कारन एक मैडम तो सूख के मिनुस जेरो साइज़ में पहुँच गयी हैं. फिर भी वो रोज़ एब्स और लेग्स का व्यायाम करती हैं. वैसे मुझे वो क्या करती हैं इससे मतलब नही होना चाहिए पर इसे बताना इसलिए ज़रूरी थी क्यूंकि किसी और की कहानी में उनकी ये भूमिका देनी ज़रूरी थी ठीक सरस्वती बंदना की तरह. एक दिन मेरे पास एक लड़का आया जो की मुझसे रोज़ जिम में हेल्लो करने आता है. उसने उस लडकी का नाम लेकर उसे गलियाँ देने शुरू कर दीं और कहने लगा देख अमित उसने ख़ुद मुझे मिलने के लिए बुलाया और मेरी बेईज्ज़ती कर दी. बता मैं इस कु... का क्या करूं देखना ये कभी खुश नही रहेगी अपनी ज़िंदगी में. मैंने इसके बाद नोटिस करना शुरू किया की आख़िर माजरा क्या है जो लड़के इससे दो तीन सप्ताह तक तो बिना उससे हेल्लो ही किए बगैर व्यायाम नही शुरू करते थे. अब उसके पास भी नही जाते. तो मुझे बाद में पता चला की इस लडकी को ये सब करने में मज़ा आता है. जो उनकी जाल में फंसा उसकी बेईज्ज़ती पक्की. इसके बाद इनमे से कोई भी उनसे बात नही करता. वैसे मेरा जिम ऐसा है जो बहता पानी है हर रोज़ वहां नए बन्दे बॉडी बनाने आते हैं. और मैडम अपनी खावाहिस पूरी कर लेती हैं. अब सोच रहे होंगे की मैं उसके चक्कर में क्यूँ नही फंसा तो मैं आपको बता दूँ मैं भी नम्बर में था. पर उस लड़के ने मेरी आँखें खोल दी थीं जो उनके चक्कर में आ चुका था. पर यार ये देखने में बहुत अच्छा लग रहा है. और अब तो एक ही बात दिल से निकलती है की अच्छा जी राम राज्य में ऐसा भी होता है.
अमित द्विवेदी

कातिल बाप से बेगुनाह बाप तक की कहानी

मीडिया यानी की देश का चौथा स्तम्भ। इसकी कहाने ऐसी है जो कभी भी बदल सकती है. पिछले ५७ दिनों से चल रहे आरुषि के ड्रामे में मीडिया को जो रोल रहा वो बिल्कुल गैर जिम्मेदाराना रहा. सिर्फ़ एक्स्लूसिव ख़बर के चक्कर में जो खबरें मीडिया ने अपनी मर्जी से दिखाईं उसे भी सीबीआई ने बेगुनाह करार दे दिया. शुक्रवार को जब ये ख़बर सीबीआई के तरफ़ से आयी. बस मीडिया वालों का रंग बदल गया. फिर से एक नयी कहानी सबने शुरू कर दी. चैनलों ने ब्रेकिंग न्यूज़ में दिखाया की आख़िर क्या दोष था एक मासूम पिता का. क्यूँ उसे इतनी बड़ी सज़ा दीगयी. अब इन उल्लू के पाठों को कौन बताये की उस बाप को पुलिस से ज्यादा मीडिया ने कातिल ठहराया था. अपने कार्टून के ज़रिये ये सब दिखाया गया की किस तरह से डॉक्टर तलवार ने पहले अपनी बेटी को मारा इसके तुंरत बाद चाट पर ले जाकर नौकर को मर दिया. तकरीबन दो महीने तक मीडिया इस तरह से डॉक्टर तलवार के पीछे पडी रही और ये भी कहने से नही हिचकी की सीबीआई डॉक्टर को बचने की कोशिश कर रही है. अचानक सारा का सारा माहोल ही बदल गया है. अब डॉक्टर को मीडिया एक प्यार करने वाला पिटा बता रही है जिसकी ज़िंदगी का बस एक मकसद उसकी बेटी थी. एक चैनल ने आरुषि के स्विमिंग पूल के विडियो को दिखाकर उसमे ये संबाद बनने की कोशिश कर रहा था जिसमे डॉक्टर तलवार उस चैनल के अनुसार आरुषि को गहराई में ना जाने को बोल रहे थे. तथा आरुषि उन्हें बोल रही थी नही पापा मुझे तैरना आता है. अब आप ख़ुद अंदाजा लगाइए क्या ये वोही राम की धरती है जहाँ लोग रामराज्य में रहते थे. इन मीडिया वालों पर भी अब कोई कानून होना चाहिए जो इन्हे कुत्तों के तरह व्यवहार करने से रोक सके. नही तो ऐसे ही बेगुनाहों के ये जिंदगियां तबाह करते रहेंगे और इन्हे सरकार भी चौथा स्तम्भ कह कर इन पर कोई लगाम नही लगा पायेगी. अब आप ही सोचिये क्या मीडिया का मतलब कहीं से भी ये होता है. बिना तथ्यों को जांचे परखे प्रस्तुत करना खून करने भी बड़ा गुनाह होता है. ये भारतीय कानून नही बल्कि इंसानियत के कानून के अंतर्गत आता है. वैसे मैं आप को बता दूँ इस पर हमें ही शुरुआत करनी है तभी रामराज्य का सपना साकार हो पायेगा.
अमित द्विवेदी

शुक्रवार, 11 जुलाई 2008

यूँ आएगा रामराज्य

कथा चल रही थी बाबा ने कहा माया त्याग दो संसार के चक्करों से मुक्त हो जवोए यही ओ माया है जिसमे हम अपने इस 'बड़े भाग्य मानुष तन' को बर्बाद करते जा रहे हैं। आप ही सोचो क्या करोगे इस माया का जिसमे तुम्हे भगवान् का ध्यान ही न हो. तुम कभी पापा कभी मम्मी तो कभी चाचा के ही जंजाल में फंसे रह जावोगे. बाबा जी की बात को ध्यान से एक श्रोता सुन रहा था उसने वहीं से खड़े होकर आवाज़ लगाई बाबा जी इस माया का हम क्या करें. तभी बाबा के एक भक्त ने स्टेज पर खड़े होकर जवाब दिया वत्स इतना बड़ा हमने पंडाल लगा रखा है इसका लाखों का खर्चा है इसीलिये हर पोल के तरफ़ एक दान पत्र की भी व्यस्था है. दिल खोलकर माया त्यागो ये पत्र उसी के लिए हैं. ये मजाक नही हकीकत है जिसपर हमें कुछ करने की ज़रूरत है. आप ही सोचो वो कौन सा भगवान् है जिसे पैसे की ज़रूरत है. जो इस्वर आप में है उसकी तो हम पूजा करते नही. हाँ लोगों से इधर उधर दौड़कर ये ज़रूर पूछते रहते हैं भगवन कैसे मिलेगा. बाबा जी का भव्य पंडाल जो लगता है उसका खर्चा हर दिन लाखों में आता है जिसे आप स्वयं देते हैं. अगर यही पैसा आप अपने उत्थान में सकारात्मक ढंग से लगायें तो आप अपने साथ दूसरों की भी मदद कर सकते हैं. मुझे लगता है रामराज्य ऐसे ही आयेगा न की बाबा जी के चक्कर लगाने से.
जय श्री राम राम राज्य से

कुछ इस तरह से .....


करुनाकर की मदद को उठे सैकड़ों हाथ
करुनाकर की स्टोरी को पढ़कर सैकडों लोग उससे जुड़ गए हैं। डॉक्टर रुपेश ने करुनाकर के आयुर्वेदिक इलाज़ का ज़िम्मा उठाया है। जिसके लिए करुनाकर जल्द ही मुंबई रवाना होने वाला है। भड़ास ब्लॉग पर करुनाकर की स्टोरी देखकर कई प्रिंट मीडिया के लोग करुनाकर के गांव जीजीराम पुर पहुँच गए हैं। ग्रामीण इलाका होने के कारन आजकल बरसात से हर तरफ़ कीचड हो रहा है। जिसके चलते रिपोर्टर वहां तक करीबन १० किलोमीटर पैदल चलकर पहुंचे। वहां जाकर सबसे पहले ने करुनाकर के परिवार को ढाढस बंधाया। रिपोर्टर विनोद तिवारी ने वहां से सारी जानकारी लेकर मुझे बताया की किस तरह से एक निर्दोध व्यक्ति एक बुजुर्ग की सेवा करने का फल जेल में रहकर पा रहा है। विनोद तिवारी के अनुसार वसीयत का बैनामा पक्का होता है तो पुलिस ने खुश्की के आधार पर उन्हें ४२० कैसे ठहरवा दिया। इसका मतलब कोर्ट को ज़रूर कहीं ना कहीं से दिग्भ्रमित किया गया है। क्यूंकि जिस बन्दे ने उन पर ये आरोप लगाया है ४२० के केश में उसे अंदर होना चाहिए। लोगों के इस सहयोग sऐ ये उम्मीद बंध गयी है की अब करुनाकर के पित्ता की ज़मानत ज़ल्द हो जायेगी। फिलहाल करुनाकर को भी उम्मीद बाँध गयी है की उसे डॉक्टर रुपेश अच्छा कर देंगे। एक नौजवान के लिए मुझे नही लगता की इससे बढ़कर कुछ और हो सकता है। जो रिपोर्टर करुनाकर के गांव तक गए वो करुनाकर की असली स्थिति का जायजा ले चुके हैं। यशवंत जी जल्द ही एक पोस्ट करेंगे जिसमे हम करुनाकर के आर्थिक मदद के लिए धन कहा जामा करें इसका उल्लेख होगा। वैसे यशवंत जी चाहते हैं की वहां पर करुनाकर को अकाउंट पोस्ट कर दिया जाए जिसमे लोग अपने अनुसार मदद की रकम उसमे डालते रहें। आज सुबह करुनाकर अपनी फरीदाबाद किसी जानने वाले के यहाँ गया हुआ है। और वहां उसका मोबाइल काम नही कर रहा जिस वजह से उसकी मुम्बयी जाने वाली बात कन्वे नही हो पाई है। आगे जो भी प्रोग्रेस होगी उसकी रिपोर्ट हम आपको देंगे।अमित द्विवेदी
Posted by amit dwivedi at 11:43 PM 0 comments
Labels:
Saturday, June 28, 2008

सबका धन्यबाद
मुझे लगा की मैं अकेला दुखी हूँ। इसलिए जो मन में आया लिखा पर अब खुश इसलिए हूँ क्यूंकि भड़ास के मध्यम से जिस तरह से लोगों ने करुनाकर को जो हिम्मत दी है उसे शायद ही कोई दे पता डॉक्टर रूपेश ने उससे बात करके उसका सारा दुःख ही दूर कर दिया। मुझसे हर कोई पूछ रहा है की अमित जी आप अकेले नही हैं हम आप की मदद करना चाहते हैं। पर बता दूँ आपका सहयोग और प्यार के जो बोल थे उन्होंने ही मुझे इतना आनंदित कर दिया है की किसी और मदद को मँगाने का दिल भी नही कर रहा है। मैं चाहता हूँ करुनाकर अपने पापा से मिल जाए और मेरी कोई इच्छा नही है। एक बार करुनाकर ने मुझे फ़ोन करके कहा था भैया देखना मैं कितना बड़ा आदमी बन जावूंगा। आपको ज़हाज़ का सफर करवाऊंगा। घुमाने ले चलूँगा। मुझे उसकी वो बात अभी भी नही भूली है। अब जब वो यहाँ तक पहुच गया है तो मैंने भी सोचा क्यूँ ना करुनाकर को ज़हाज़ का सफर करवा दिया जाए। हो सकता है की दो तीन दिन में मैं उसे लखनऊ भेजूं तो वो ज़हाज़ से ही जायेगा। आज यशवंत जी ने मुझे बोला की उसे मैं उनसे बात करके फिर लखनऊ का प्रोग्राम तैयार करूँ तो मुझे बस उनका इंतज़ार है। ओमप्रकाश तिवारी जी, महावीर सेठ जी विशाल शुक्ला जी, भाई शशि कान्त अवस्थी जी और रूपेश जी मुझे आप से सिर्फा एक मदद चाहिए अगर आप किसी को जानते हों तो किसी तरह से करुनाकर के पापा को रिहा करवाने का प्रयास करवा दीजिए। क्योंकि वो अपराधी नही हैं। मुझे लगता है करुनाकर उन्हें बहार देखकर अपनी उम्र में कुछ और दिन जोड़ लेगा। वैसे अब सारी जिम्मेदारी यशवंत भाई ने उठा ली है तो मुझे और कुछ नही कहना है। पर इस तरह से जो आप लोगों का सहयोग मिला उसका एहसान मैं कभी नही चुका सकता। मुझे पता है आप लोगों की मदद से करुनाकर को इतना खुश कर दूंगा की वो अपने अल्पकाल में ही कई सौ जिंदगियां जी लेगा।धनयबादअमित द्विवेदी
Posted by amit dwivedi at 10:58 AM 0 comments

अन्तिम पडाव पर आ गयी ज़िंदगी
आज सुबह जब मैं उससे मिला तो वो एक नयी कमीज़ और पन्त में था मुरझाई आँखों में एक आशा की नयी किरण नज़र आ रही थी। एम्स के ओपीडी के सामने वोह बैठा मेरा अखबार यानी की अमर उजाला पढ़ रहा था। मुझे देखते ही उसका चेहरा खुशी से खिल गया। मैंने कहा क्या बात है करुनाकर तुम तो एकदम हीरो लग रहे हो। देखो हमेशा खुश रहा करो। हम साथ साथ एम्स के एक्सरे डिपार्टमेन्ट की तरफ़ रूम नम्बर एक में गए। सुबह के यही कोई सवा आठ बजा रहा होगा। डॉक्टर ने सिटी स्कैन की रिपोर्ट और अन्य रिपोर्ट जामा करवा ली और बाहर वेट करने को कहा। हम बेसब्री से बाहर डॉक्टर का इंतज़ार कर रहे थे। अंदर से डॉक्टर अरविन्द लगभग १० बजे बाहर आए। उन्होंने हमारा नाम पुकारा। जब हम उनके पास गए तो उन्होंने मुझे बताया की सर्जरी नही हो सकती क्यूंकि दोनों तरफ़ का लुंग प्रभावित हो चुका है। आप एक काम करो डॉक्टर जुल्का से मिलो और उनसे कीमियो थेरेपी के लिए बात कर लो। बस यही एक अब इसका इलाज़ है। हम एम्स के रेड बिल्डिंग में गए तो पता चला की डॉक्टर जुल्का कुछ दिनों के लिए छुट्टी पर गए हुए हैं। रूम नम्बर चार में एक दूसरे डॉक्टर बैठे थे मैंने उनके पास पर्चा जामा करवा दिया। थोड़ी देर बाद में मुझे उन्होंने कॉल किया जब मैं गया की ये तुम्हारा क्या लगता है। मैंने बोला भाई। उन्होंने करुनाकर को रूम से बाहर भेज दिया और मुझे बताया की इसकी उम्र अब सिर्फ़ ६ या ७ महीने बची है। आप को इसके मम्मी पापा को ये बता देना चाहिए। यहाँ पर इसे भरती करवाने का कोई फायदा नही है। इसे अपने परिवार के पास रहना चाहिए। इसका इलाज़ जहाँ पहले करवाया था आप वहां ही करवाते रहें। और आगे भगवान् पर छोड़ दें। मैं जब बाहर निकला तो करुनाकर से बात नही की बस यही बोला की मैं गाडी लेकर आता हूँ। जब मैं आया तो उसने कहा भैया मुझे अब की दवा नही करवानी है कुछ दिन और जीकर क्या करूंगा। उसकी यह बात सुनकर मैं बहुत दुखी हुआ। मेरे आंखों से आंसू निकल पड़े। मैं उसे क्या बोल्लूँ समझ में नही रहा था। बस पूरे रस्ते एक बात सोचता रहा की भगवान् मुझे इसकी जगह मुझे क्यूँ नही अपने पास बुला लेता। उसके सारे सपने जो थे सब टूट गए। उसे इस बात की चिंता खाए जा रही है की उसके माँ बाप ने उसके लिए इतना किया पर बदले में उसने उन्हें क्या दिया। जब देने की बारी आयी तो मौत ने दस्तक दे दी। दिल को दहला देने वाला ऐसा वाक्या पहली बार मेरे साथ घटा है। मैं इतना दुखी अपने पूरे जीवन में नही हुआ था जितना की आज हूँ। किसी से बात करता हूँ तो आंसू टपकने लगते हैं। बस मैं एक चीज़ चाहता हूँ की किसी तरह उसके पापा जेल से बाहर आ जायें और उसकी बची हुयी ज़िंदगी में उसका साथ दें। मैं चाहता हूँ की कोई एक कदम इसके लिए बढाये जिससे इस दर्दनाक स्टोरी में कुछ तो गम दूर हों। किसी को यह पता चल जाए की उसकी ज़िंदगी बस इतने दिन और बची है इसका दर्द क्या होता है इसे एक बार सोचकर भी महसूस किया जा सकता है। ................ अभी भी बाकी है ये कहानी अमित द्विवेदी
Posted by amit dwivedi at 1:16 AM 0 comments
Friday, June 27, 2008

एक कहानी ऐसी भी जो जारी है
मैं ऑरकुट का मेंबर बना तो कई ऐसे दोस्त मुझे मिल गए जिन्हें मैं भूल चुका था। अचानक इसी कडी में एक तकनीकी शिखा ग्रहण कर रहे एक बन्दे का मुझे स्क्रैप मिला उसने मुझे बताया की वोह भी बस्ती का रहने वाला है । आजकल नॉएडा के एक ingeeneering कॉलेज से पढाई कर रहा है। मैंने उसे अपना दोस्त मान लिए एक दिन उसने मेरा नम्बर माँगा जब मैंने उसे अपना नम्बर दिया और उसका कॉल मुझे आया तो पता चला की वो मेरे गांव के पड़ोस का रहने वाला है। मुझे उससे बात करके अच्छा लगा क्यूंकि वो एक बहुत ही अच्छा लड़का था। दिन रात मेहनत करके वो पढाई करता था उसके पिता जी उसकी हर एजूकेशन को दिलवाने के लिए कृतसंकल्प थे। मैंने एक बार जब गांव गया तो पुछा अंकल आप अपने बच्चों को इतना पढा कैसे रहे ही जब आपके पास इतना पैसा नही है तो उन्होंने जवाब दिया की बेटा अगर वो गानों में रहते तो खेती बड़ी करते जब मैंने देखा की वो पढ़ना चाहता है तो उसे मैंने शहर भेज दिया की जावो कुछ बनकर दिखावो। उसके लिए मैंने अपने कुछ खेत बेंच दिए। अब मुझे अच्छा लग रहा है की वो अच्छा कर रहा है।पर जो ऊपर वाला बैठा है उसकी परीक्षा इतनी कठिन है की शायद ही उसे कोई पास कर पाए। २००४ में करुनाकर नाम के उस होनहार बच्चे ने तुमेर के चलते अपना दाहिना पैर गंवा दिया। फिर भी उसने हिम्मत नही हरी। इतना कुछ होने के बवोजूद उसने अपने मुकाम को पाने के लिए मेहनत जारी रक्खी और नॉएडा के एक अच्छे से तकनीकी कॉलेज में उसे प्रवेश भी मिल गया। अच्छे मार्क्स से उसने अपने सारे सेमेस्टर क्लीअर किए बाद में जब उसका अन्तिम साल रहा गया तो इस होनहार बहादुर छात्र को सीने में दर्द उठा और खांसी आयी। जब उसने इसे डॉक्टर को दिखाया तो पता चला की उसके फेफडे में कैंसर हो गया है। उसका इलाज़ ठीक तरीके से नही हो सका क्युकी उसके पिता जी को गांव के कुछ लोगों ने जमीन के एक मामले में जेल भिजवा दिया। और इसमें सबसे बड़ी दिलचस्प बात ये है की छोटे से ज़मीन के मामले में पैसे वाली पार्टी ने पुलिस को घूस देकर उन्हें अन्दर करवाया है। जिसमे कोर्ट उन्हें जमानत देने में झिझक रही है जैसे वो बड़े क्रिमिनल हों कोई। करुनाकर ने एक दिन मुझे फ़ोन किया और उस समय जब वो बिल्कुल टूट चुका था। कोई उसके पास नही था। दिल्ली के करोल्बाघ के यूनानी मेडिकल कॉलेज में वो भरती हो चुका था। मैं उससे मिलने गया तो वो ऐसे टूट गया था जैसे उसके लिए दुनिया में कुछ रहा ही नही। पूरी दुनिया को देखने का सपना देखने वाला बहादुर लड़का बीमारी से हार गया था। यह ऐसा हॉस्पिटल था जहाँ उसका कोई इलाज़ नही था। घर का उसके साथ कोई नही था। क्यूंकि हर कोई उसके पापा की ज़मानत के लिए चक्कर लगा रहा है। जेब में उतने पैसे नही थे जिससे किसी अच्छे हॉस्पिटल में दवा कराई जा सके। मैंने उसकी हालत देखी तो रो पडा। भइया कहकर मुझे जब भी वो पुकारता मुझे अपने पर शर्म आती क्यूंकि मेरे हाथ में उसके करने के लिए कुछ नही था। मैंने एम्स में उसके लिए बात करनी शुरू की। तीन दिन बाद किसी तरह से सर्जरी डिपार्टमेन्ट में डॉक्टर अरविन्द को उसे दिखने में सफल रहा। पर डॉक्टर अरविन्द ने उसकी एक्सरे रिपोर्ट देखकर जो जवाब दिया उसने मुझे हिला दिया। उन्होंने कहा की इन्फेक्शन फेफडे में दोनों तरफ़ फ़ैल गया है। आप इसका सिटी स्कैन करवाकर शनिवार मोर्निंग में यानी की २८ जून को मिलिए फिर हम आपको बताएँगे की हम इसे सही कर पाएंगे या नही। अभी कल सुबह आने में १२ घंटे हैं पर मैं बहुत दुखी हूँ की एक बाप ने अपने बेटे पर वो सारी पूंजी लगा दी जिससे उसने उम्मीद की थी की एकदिन वो कुछ बन जायेगा पर बेटा लायक होते हुए भी अपने बीमारी से हरता जा रहा है। उसे अपने पापा के जेल से बाहर आने का इंतज़ार है। उसे अब कुछ नही सिर्फा अपने पापा चाहिए। पर इस घूसखोर प्रथा में मुझे नही लगता की एक बाप ज़िंदगी मौत से जूझ रहे अपने बेटे तक पहुँच पायेगा। मुझे पता है इस भडास से बहुत से पत्रकार जुड़े हैं अगर किसी की पहुच हो तो चाहूंगा की एक बेटे की आख़िर खवाहिश पूरी करने में कुछ कर सकें तो करके दिखाएँ। यह कहानी नही असलियत है और मैं तब तक लिखता रहूँगा जब तक एक इक्कीस साल के नौजवान को ठीक ना करवा लूँ। उससे मेरा कोई रिश्ता नही है पर हाँ आज की डेट में मेरे लिए वो सबसे बढ़कर है जिसके लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ। ......... ये कहानी जारी रहेगी यूँ ही।
Posted by amit dwivedi at 7:44 AM 0 comments
Wednesday, June 25, 2008

कैसे हो समाधान
वो भी कोई संपादक है न तो किसी ख़बर की समझ ना ही सलीका मालूम बस जुगाड़ से बन गए संपादक दुखी कर रखा है। इससे अछा तो वोह संस्थान है जहाँ काम की क़द्र तो करते हैं वो लोग। यह बातें हैं एक सउब एडिटर की जो की एक प्रिंट मीडिया के साथ जुदा हुआ है। पर उसे बहुत सी परेशानियाँ हैं उसे लगता है की उसकी क़द्र नही हो रही है। भगवन की उस पर ख़ास दया हुयी उसका ट्रान्सफर एक दूसरे संस्थान में हो गया। पैसे भी अच्छे मिल गए। दो महीने तक जब तक उनको संस्थान में कोई नही जनता था तब महोदय खुश रहे पर जैसे ही उनकी इस संस्थान में जान पहचान बढ़ी उनकी समस्या फिर बढ़ने लगी। वहां का संपादक मूर्ख नज़र आने लगा। वातावरण में ज़हर घुलता दिखायी पड़ने लगा। पर पत्रकार महोदय की टोन यहाँ बदल गयी। अब उनका क्या कहना है ज़रा ध्यान से सुनिए इससे अच्छा तो वो पुराना संस्थान था जहाँ पर कम से कम कोई कुछ कहता तो नही मेरे काम में कोई टांग तो नही अटकाता था। मैंने यहाँ आकर बहुत बड़ी गलती की।आज के दौर का पत्रकार इन चीज़ों से रोजाना दो चार हो रहा है। वह युव है सबकुछ अपने अनुसार करना चाहता है जब चीज़ें उसके अनुरूप नही घटती तो वह dukhi hone lagta hai. main is aalekh ke madhyam se yah batana chahta hoon ki bahut kuch cheezen aisee hee chaltee rahengee issse naraaz hone se kuch nahee hone wala. AMIT DWIVEDI
Posted by amit dwivedi at 11:44 PM 2 comments
Labels:
Monday, June 23, 2008

मेरी पहली कविता
अतीत में उतर कर देखा घने तिमिर में,एक दीप प्रज्वलित था अन्धकार के शिविर में
Posted by amit dwivedi at 11:53 PM 0 comments

रविवार, 6 जुलाई 2008

रामराज्य की अवधारणा के बारे में

हर स्थान पर एक आदर्श स्थिति को ही पैमाना मान कर परिस्थितियों को मूल्यांकित करा जाता है। भारत में आदर्श समाज के संदर्भ में "रामराज्य" को आदर्श माना जाता है इस लिये मैंने इसे आधार मान कर आज के समाज और सामाजिकता का मूल्यांकन अपने नजरिये से करना प्रारंभ करा है। कई बार हो सकता है कि लगेगा कि मैं किन्ही विशेष पूर्वाग्रहों से ग्रस्त हूं या मेरी सोच कुंठित है तो आप अपना नजरिया बताने से पीछे मत हटियेगा ताकि हम मिल कर आज की सामाजिक विषमताओं से ऊपर उठ कर एक सुगठित समाज को बल दे सकें।