सोमवार, 22 दिसंबर 2008

सीढ़ियों का शहर शिमला


दिल्ली से लगभग साढ़े चार सौ किलोमीटर दूर शिमला को मुझे देखने का मौका पहली बार 17 दिसंबर को मिला। मुझे यह शहर सच पूंछें तो बहुत अच्छा लगा। यहां के रहने वाले लोग कितने सय हैं उसका अंदाजा वहां की सफाई व्यवस्था को देखकर लग गया। पहाड़ पर बसे इस शहर को मैंने एक नाम दिया जिसे मेरे दोस्तों ने मान्यता भी दे दी। वह नाम है `सीढ़ियों का शहर´। हालांकि इस शहर को अगर भाभियों का शहर कहा जाए तो उसमें कुछ बुरा नहीं होगा क्योंकि अगर आप यहां शादी से पहले जाते हैं तो हर तरफ नए शादी शुदा जोड़े आपको देखने को मिलेंगे। तो मेरे दोस्त सौरव ने इस शहर को भाभियों केशहर का नाम भी दे दिया। इस शहर का और बॉलीवुड की पुरानी फिल्मों का गहरा नाता भी रहा है जिसकी कहानियों में अक्सर आपने देखा होगा कि एक कनüल की लड़की होती है और हीरो यह शहर घूमने आता है और उसे उस लड़की से प्यार हो जाता है। इस तरह से पूरी कहानी आगे बढ़ती है। इस कहानी का असर हम जैसे सैकड़ों युवाओं पर अब भी है जो इस शहर में सिर्फ इसलिए आते हैं कि कोई उन्हें कनüल की लड़की मिलेगी और प्यार हो जाएगा। पर ऐसा नहीं है क्योंकि अब ना वो कनüल रहे ना ही कनüल की लड़कियां। घूमना है अगर आपको इस शहर को तो बिना किसी उमीद के आइए मस्ती कीजिए और वापस चले जाइए। अगर शरीर का वजन अधिक है तो इस शहर में आकर कुछ महीने गुजारिए शर्तिया आपका वजन कम हो जाएगा।

मैं और मेरे दोस्त कालका के रेलवे स्टेशन पर। शिमला के ट्रेन के पास
मोटे अजगर के साथ वैसे मैं सांप से बहुत डरता हूँ लेकिन ये सौंप नही है लोगों से डरा हुआ अजगर है जो कुफरी में पैसा कमा के अपने मालिक को दे रहा है।
मैं ग्रीन वैली के सामने।
शिमला के हेलीपैड पर मैं फोटो के लिए बैठा हुआ। यह बहुत ही पुराना हेलीपैड है जहाँ पर आकर दिल खुश हो जाता है।
मैं अपने दोस्तों सौरव और गौरव के साथ शिमला नगरपालिका के सामने।
शिमला से १७ किलोमीटर दूर कुफरी में देवदार के पेड़ पर फोटो खिंचवाते हुए। इस पेड़ पर चढ़कर सच में बहुत मज़ा आया।
मैं ग्रीन वैली के सामने। ये वो जगह है जहाँ पर प्रतिदिन हजारों लोग घूमने आते हैं । तो अगर आपको भी मौका मिले तो यहाँ ज़रूर तसरीफ लायें।

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