शनिवार, 31 जनवरी 2009

क्या यही प्यार है????

मुझे एक लड़की की घटना याद आती है जिसे मैं बहुत अच्छी तरह जानता था। जब वह छोटी थी तो उसकी मां उसे पहाड़ से लेकर दिल्ली में झाड़å पोंछा जैसे काम की तलाश में अपनी जीविका चलाने केलिए आ गई थी। वह लड़की बहुत ही क्यूट थी दो साल की बच्ची ने जिसके यहां उसकी मां काम करती थी उनका मन मोह लिया। उसकी मां की मालकिन ने उसकी बेटी को अपनी बेटी की तरह पाला और अच्छे स्कूल में उसका दाखिला करवा दिया। पढ़ने में तेज और देखने मे सुंदर उस लड़की ने अंग्रेजी मीडियम में पढ़ाई करके लेडीज श्रीराम कॉलेज में एडमीशन ले लिया ग्रेजुएशन करने के लिए। पहला साल उसने मेहनत करकेपढ़ाई की। पर उसका मन प्रेम में पड़ गया और वह सिर्फ एक लड़के केतरफ नहीं बल्कि दो-दो लड़कों को पसंद करने लगी। उसे अब अपनी मां की मालकिन का घर निराशा का केंद्र लगने लगा वह बोर होने लगी। अचानक एकदिन वह अपने एक पुरुष मित्र केसाथ मालकिन के घर से भाग गई। पर जिसकेसाथ वह भागी उसकेपास भी नहीं रही उससे अधिक अच्छा दिखने वाला और अच्छी पढ़ाई करने वाले दूसरे केपास चली गई। पहले वाला लड़का उसे टूट केप्यार करता था तरह-तरह के उसके लिए सपने संजोए थे। इस घटना से उसकी मां जैसी मालकिन का दिल टूट गया। पर उन्होंने उसकी असली मां को सारी बात बताकर अपना किनारा कर लिया। वह लड़का भी कई दिनों तक इस सवाल का जवाब ढ़åढता रहा कि आखिर में ऐसा क्या हुआ था जो उसने मेरा दिल तोड़ दिया। पर अंत में उसे वह भूल गया। इसके तीन चार महीने बाद दूसरे लड़केका मन भी उस लड़की से भर गया और उसने उसे बीमारी की हालत में छोड़कर अपनी राह पकड़ ली। पर इसके बाद जो कुछ हुआ वह बहुत दिलचस्प था। लड़की को अपनी गलती का अहसास हो गया और उसे सत्य का ज्ञान हो गया। उसने भगवान केचरणों में अपना ध्यान लगाना शुरू करके अपना अतीत भूल गई।
मुझे प्रेम का यह अनोखा रूप लगा जिसे आपसे शेयर किया क्योंकि आजकल फिजाओं में फिजा की प्रेम कहानी केचर्चे हैं। चांद छुप गया है क्योंकि उसे अपनी गलती का अहसास होने लगा है अब वह अपनी पहली पत्नी केपास पहुंच गया है। तो वहीं दूसरी ओर अपने प्यार को इतिहास बनाने की कस्में खाने वाली अनुराधा को भी इस सच पर अब यकीन होने लगा है। यह आधुनिक समाज केप्यार की दूषित परिभाषाएं हैं जिसमें प्यार एक महीने भी नहीं चल पाता। ऐसे प्यार पर मुझे जो कहना था वह कह दिया अब आप क्या कहेंगे? उसका मुझे इंतजार है।

शुक्रवार, 23 जनवरी 2009

मैं और कल्याण सिंह 1997 में


बात सन 1997 की है। मैं उस समय अयोध्या में था और महाराजा इंटर कालेज में दसवीं का छात्र था। क्योंकि 1996 में मैं 10 वीं में फेल हो गया था इसीलिए मुझे दोबारा उस कक्षा में पढ़ना पड़ रहा था। सुबह नौ बजे मैं अपने घर(किराए के मकान) से वासुदेव घाट से स्कूल के लिए निकला। अचानक रास्ते में मैंने बहुत बड़ी गाçड़यों का काफिला देखा तो ठहर गया और एक रिक्शे वाले से पूछा भैया यह क्या हो रहा है? उसने जवाब दिया अरे कल्याण सिंह आए हैं उत्तर प्रदेश के मुयमंत्री मैंने कहा अच्छा। पुलिस का हर ओर जमावड़ा था मेरे हाथ में सिर्फ दो किताबें थीं क्योंकि उस दिन कुछ खास था जो कि मुझे याद नहीं आ रहा है। इसलिए मैं ज्यादा किताब नहीं ले जा रहा था। मैं मणिराम छावनी यानी की छोटी छावनी में ही रुक गया। और जिस तरफ नेता और पुलिस वाले जा रहे थे उन्हीं के भीड़ में मैं भी चलता रहा। हालांकि उस टोली में किसी को जाने नहीं दिया जा रहा था पर मुझे किसी ने मना नहीं किया क्योंकि उनकी नजर मुझपर नहीं पड़ी। बाल्मीकि मंदिर परिसर के दाहिने हाथ पर हनुमान जी का मंदिर उस समय नया-नया बना था कल्याण सिंह को उसी में जाना था। वहां कुछ पूजा अर्चना करनी थी बाबा रामचंद्र दास परमहंस और नृत्य गोपाल दास केसाथ-साथ अयोध्या केसभी बड़े संत उपस्थित थे। हर कोई कल्याण सिंह के गुणगान में लगे थे। मैं जैसे मंदिर की सीढ़ियों पर पहुंचा विनय कटियार केसाथ-साथ वहां के बाबाओं ने मुझे धक्का देना शुरू कर दिया क्योंकि अंदर मिठाई बंट रही थी और हर नेता एक मिठाई डिŽबा प्रसाद स्वरूप झटकने में लगा था। मैं यह मौका कैसे गंवाता मैंने देखा कि विनय कटियार किसी से बात करने में लगे हैं तो मैंने बाबा को बोल दिया मैं विनय चाचा केसाथ आया हूं। बस क्या था बाबा जी ने मुझे ना सिर्फ खूब मिठाई बल्कि अंदर ले जाकर आराम से बिठा दिया जहां मैंने कल्याण सिंह केसाथ पेट भरकर मिठाई खाई और उनसे भाजपा की ना जाने कितनी अच्छाइयां सुनीं। पूरे भाषण केदौरान आडवाणी अटल हर कोई उनकेलिए आदर्श बना हुआ था। उस कल्याण को देखकर जब आज उनके पार्टी छोड़ने के फैसले को देखा तो पता चला कि इंसान कितना स्वार्थी होता है। यह तो पार्टी की बाद थी वह तो अपने फायदे के लिए परिवार तक को नहीं छोड़ता। अब मैं आप पर छोड़ता हूं कि ऐसे नेता जो अपने पुत्र-पौत्र के लिए मरे जा रहे हैं वह आपका या फिर देश का क्या कल्याण करेंगे? मैं किसी पार्टी का नहीं हूं पर एकता देखना मुझे पसंद है कम से कम अपनी पार्टी में तो जमे रहो नेताओं। नहीं तो तुम पर कौन भरोसा करेगा।

गुरुवार, 22 जनवरी 2009

बिना बैंकों के मिलीभगत के संभव नहीं था सत्यम घोटाला

अगर अभी तक सत्यम के मसले पर काेई आलस्य भरा कदम उठा रहा है तो वह है रिजर्व बैंक आफ इंडिया। जबकि आरबीआई हर बैंक पर वाचडाग (रखवाली करने वाला कुत्ता) की तरह नजर रखता रहा है। इसने बैंकों से यह चेक करने के लिए कहा है कि कहीं उन्होंने अपना अधिक पैसा सत्मय या फिर राजू के परिवार की कंपनी मेटस में तो नहीं लगा रखा है। हां एसबीआई का पैसा मेटस में लगा हुआ है। पर अभी तक जो मुय काण्ड है वहां तक कोई नहीं पहुंच पाया है। जो सारा का सारा घपला हुआ है वह पैसे को लेकर हुआ है जो कि बैंकों में नहीं मिला। ऐसे में आरबीआई यह बहाना नहीं बना सकती है कि यह उसकी समस्या नहीं है।
इसमें किसी को कोई गलती नहीं करनी चाहिए क्योंकि कहीं भी जब कोई ऐसा घोटाला होता है तो उसमें बैंक की धांधली भी सामने आती है। जब पैसा इसमें शामिल है तो बैंक अपना पल्ला कैसे झाड़ सकते हैं। क्99ख् में जब हर्षद मेहता नाम के एक बड़े ठग ने जब भारत में एक बड़ा घोटाला किया था तब भी वह देश को हिला देने वाली धांधली में भी बैंक धोखाधड़ी शामिल थी। बैंक उस समय अपकर्ष की ओर चल पड़े थे जब उनके साथ एक बड़ा छल हुआ। जो कि उनके बांड पोर्टफोलियो पर दिखाई पड़ा क्योंकि उन पर Žयाज दरें बढ़ाने का दबाव था। क्योंकि उन्हें कहीं से लाभ दिखाना था। उस समय भी भारत सरकार ने बैंकों को लोन देने में पारदर्शिता बरतने के लिए कहा था। जिसके चलते बैंकों पर अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव आ गया था। मेहता ने बैंकों को लाभ दिखाने में मदद की और अपने आप को उसमें शामिल करके करोड़ों रुपये प्रोसेस में डाले। हर्षत मेहता कांड में बैंक बबाüदी के कागार पर पहुंच गए थे इसमें कोई दो राय नहीं थी। मेहता और उनके अन्य ठग दोस्त बैंकों को अपने हिसाब से चला रहे थे। जिसमें उनकी पहुंच बैंक के सिक्योरिटी डिपार्टमेंट तक थी। उन बैंकों में स्टेट बैंक आफ इंडिया, स्टैंडर्ड चार्टर्ड, केनारा बैंक आदि शामिल थे। उस समय इस तरह से बैंकों को एक कड़वा घूंट पीने का अनुभव हुआ था।
केतन पारेख घपला भी स्टाक माकेüट का ही घोटाला माना गया था। उस समय भी इस घटना के केंद्र में दो बैंकों का नाम सामने आया था जिसमें बैंक आफ इंडिया और मधेपुरा बैंक शामिल थे। उस कांड में ये बैंक दोषी माने गए थे। उस समय आईपीओ में उछाल लाने के लिए उसकी कीमत बढ़ाने के लिए एक ही व्यक्ति ने ढेर सारे डीमेट अकाउंट का प्रयोग किया था जिसमें उनकी मंशा अधिक से अधिक शेयर अपने नाम अलाट करवाने की थी। इसको भी हम एक बैंक स्कैम ही कहेंगे। बाद में सेबी ने इसकी जांच करके इन बातों का खुलासा किया था। उस दौरान कई बैंकों पर रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने नो योर कस्टमर(अपने ग्राहक को भली भांति से जानो)के मानक पर खरा ना उतरने के कारण जुर्माना भी लगाया था। उन बैंकों में एडीएफसी, आईसीआईसीआई, सिटी बैंक और स्टैंडर्ड चार्टर्ड शामिल थे। इसमें इन बैंकों ने डीमेट अकाउंट के दौरान कोताही बरती थी। हर्षद मेहता के घटना के बाद भी सिटी और स्टैंडर्ड चार्टर्ड ने उसकी पुनरावृçत्त दोबारा की। क्योंकि अक्सर अच्छे बैंक अपने आपको बहुत स्मार्ट समझते हैं पर यह भी सच है कि ऐसे बैंक भी देर सवेर जाल में फंस ही जाते हैं।
सत्यम कांड में भी अगर आप अच्छे तरीके से देखेंगें तो आपको बैंकों की मिलीभगत नजर आएगी। जब राजू रामलिंगा सबके सामने आकर यह स्वीकार करते हैं कि उन्होंने कंपनी की नकदी को बढ़चढ़कर दिखाया तो ऐसा कैसे हो सकता है कि उसमें बैंकों की मिलीभगत ना हो। यह सोचने वाली बात है। आप ही सोचिए क्या यह एक कंपनी के लिए संभव है कि वह जो पैसा बैंक में है नहीं उसके बारे में भी अपने आडिटर्स के माध्यम से कंपनी रिकार्ड में रख सकते हैं? जब तक कि उन्हें बैंक द्वारा फिग लीफ सार्टीफिकेट बैंक ना दे दे। मेरा दावा है कि अगर वह सार्टीफिकेट असली हैं तो उसमें बैंक की मिलीभगत है। अगर यह गलत है तो बैंकों को सामने आकर यह पता लगाना चाहिए कि उनका नाम मिसयूज क्यों किया जा रहा है। अगर यह कुछ भी नहीं था तो बैंकों को परेशान होने की क्या जरूरत है? इन सभी चीजों का सही से पता लगाने के लिए सेबी को तेजी से कदम उठाना चाहिए तथा आरबीआई को इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए। जिससे भविष्य में कोई भी बैंक ऐसे बड़े घोटालों का हिस्सा ना बने। यह बहुत ही गंभीर मामला है जिस पर हर किसी को गंभीर होने की जरूरत है।

रविवार, 18 जनवरी 2009

गुरुवार, 8 जनवरी 2009

क्यूँ नही चलता कालका स्टेशन पर फ़ोन चार्ज करने का प्लग?

मैं और मेरे दो दोस्त सौरभ और गौरव शिमला घूमकर वापस लौट रहे थे। हमारी ट्रेन कालका मेल रात में ११ बजे थी. हम वहां पर शाम को चार बजे ही पहुँच गए. क्यूंकि और कोई काम नही था इसीलिये हमने वहीं बैठकर गप्पे लड़ाने का कार्यक्रम बनाया. इसी दौरान हमें पता चला की हमारे फ़ोन की बैट्री पूरी तरह से जा चुकी है. कालका स्टेशन पर ढेर सारे बोर्ड बन्दे हुए थे. तो हमने उसमे अपना चार्जर लगा दिया. पर फ़ोन चार्ज होना नही शुरू हुआ. हमने उस स्टेशन के वेटिंग रूम से लेकर स्टेशन मास्टर तक के कमरे की ख़ाक चान ली लेकिन बिजली होने के बावजूद हमें कोई ऐसा बोर्ड नही मिला जहाँ से हम अपना फ़ोन चार्ज कर सकें. थक हर कर हमने अपनी बात स्टेशन मास्टर तक राखी तो महोदय ने जवाब दिया बेटा हमारा आदमी इसे ठीक कर रहा होगा आप थोड़ा वेट कर लो. हमने एक घंटा इंतज़ार किया लेकिन कुछ भी नही हुआ. तो फिर हम इसकी शिकायत करने कहीं नही गए. वहां टिकेट काट रही एक महिला से हमने कहाँ की हमारा फ़ोन काम नही कर रहा है. इसलिए अगर कोई बोर्ड काम कर रहा हो तो हमारा मोबाइल लगवा दीजिये. उन्होंने हमारी बात सुन ली और अपने ही केबिन में फ़ोन चार्ज होने के लिए लगवा दिया. जब हम अपना फ़ोन वहां लगवा रहे थे तो इस बारे में उनसे पुछा की मैं यहाँ के चार्जिंग बोर्ड काम क्यूँ नही कर रहे हैं. इस पर उन्होंने हमें कहा इसके बारे में आप हमारे स्टेशन मास्टर से बात कीजिए. हमे इस रहस्य के बारे में किसी ने कुछ नही बताया. इसके बाद हम जब खाना खाने गए तो इस बात का हमें पता लगा की वहां का बोर्ड काम क्यूँ नही करता. वहां पर रेस्तराँ के मालिक ने हमें बताया की यहाँ पर पिछले दिनों ऐसे घटनाएँ घटीं जिसके चलते यहाँ के कर्मचारियों का जीना दूभर हो गया था. इसी वजह से यहाँ के सभी बोर्ड के कनेक्शन काट दिए गए हैं. यहाँ पर अक्सर लोग मंहगे फ़ोन चार्ज होने के लिए लगते थे और भूल जाते थे. इस बीच उनका फ़ोन कोई उठाकर ले जाता था. जब उनका फ़ोन गायब होता तो वो लोग पुलिस बुला लेते थे. दो महीने में यहाँ पर इस तरह की इतनी घटनाएँ घटीं की इन बोर्ड का कनेक्शन काटना पड़ा. अब लोग न अपना फ़ोन लगते हैं ना ही यहाँ के स्टाफ को दुखी होना पड़ता है. अगर आप भी कालका स्टेशन जायें तो वहां पर फ़ोन चार्ज करने का अरमान मत रखियेगा. नही तो निराशा ही मिलेगी.
अमित द्विवेदी