मंगलवार, 31 मार्च 2009

ये वही शमशाद बेगम हैं


तेरी महफिल में किस्मत आजमाकर हम भी देखेंगे...., सइयां दिल में आना रे..., बूझ मेरा क्या नाम रे...., मेरे पिया गए रंगून किया है वहां टेलीफून...., एक दो तीन आज मौसम है रंगीन...., बूझ मेरा क्या नाम रे..., कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना....। इन गीतों केये अमर बोल पढ़कर आपने यह अंदाजा लगा लिया होगा कि मैं किसकी बात कर रहा हूं। हां आप एकदम सही सोच रहे हैं मैं बात कर रहा हूं महान गायिका शमशाद बेगम की। जैसे ही इन गीतों को मैं सुनता हूं मुझे उनके बारे में याल आने लगता है। अचानक आज(31 मार्च 2009) जब मैंने अपने आफिस में न्यूज प्रो आन करकेतस्वीरें चेक करनी शुरू की तो मुझे शमशाद बेगम की व्हील चेयर पर बैठे पुरस्कार लेते हुए एक तस्वीर दिखाई दी। इस तस्वीर को देखकर मैं खुश हो गया क्योंकि मैं इस गायिका के बारे मे न जाने कितने लोगों से सवाल कर चुका हूं पर किसी ने भी मुझे उनकेबारे में कोई जानकारी नहीं दी। मैं कई बार मुंबई गया और इस महान गायिका का साक्षात्कार करना चाहा पर मुझे कोई क्लू नहीं मिला। पर आज इस गायिका को रास्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल के हाथों समानित होते देखना काफी अच्छा लगा। शमशाद बेगम को 2009 का पद्म भूषण समान दिया गया है। मैं ऐसे बहुत से पुराने कलाकारों के बारे में जानने की वाहिश रखता हूं जो अभी इस दुनिया मे हैं पर मुझे लगता है कि बहुत से कलाकार धीरे-धीरे गुमनामी केअंधेरे में खो गए हैं। पर ये जानकर अच्छा लगा कि चलो सरकार अभी इस महान गायिका को भूली नहीं है। मुझे सबसे अधिक उस समय लगा जब 2007 में महान भजन गायक श्री हरिओम शरण जी का निधन हो गया उनकी इस खबर का पता भी नहींं चला। अखबारों ने उनकी सिंगल कालम खबर तक नहीं छापी न ही टेलीवीजन चैनलों ने उसे कवर किया। पर हां किसी भलेमानुष ने उनका 5 सेकंड का वीडियो अंतिम यात्रा का यू ट्यूब पर जरूर पोस्ट कर दिया जिससे बहुत से लोगों को धीरे-धीरे यह पता चल रहा है कि एक हरिओम जी अब हमारे बीच नहीं रहे। आखिर कलाकारों के प्रति ऐसी उदासीनता क्यों?

रविवार, 22 मार्च 2009

एक थी जेड गुडी.....


रियालिटी टीवी शो कलाकार के रूप में प्रसिद्ध पाने जेड गुडी को मौत की सच्चाई का आभास उस समय हुआ जब उन्हें पता चला कि वह कैंसर से जूझ रही हैं। पर गुडी ने अपनी बीमारी के दौरान वह सबकुछ जी लिया जिसे वह चाहती थीं। हर किसी की तरह वह मरना नहीं चाहती थीं पर मौत थी कि वह उनसे अपना रिश्ता बनाने को बेकरार थी। मरना हर किसी को है यह सच्चाई है पर मौत जब बताकर आती है तो वह कितनी कारुणिक होती है उसका अंदाजा गुडी की मौत को देखकर लगाया जा सकता है। गुडी की पंक्तियाँ जो उन्होंने अपने मौत के लिए कहीं थीं वह लोग एक सूक्ति बचन के रूप में हमेशा याद करेंगे। गुडी ने मरने से पहले कहा,`इतने कम उम्र में मर रही हूं इसका मुझे अफसोस है पर कम जिंदगी में मैंने इतना कुछ पा लिया इसका मुझे गर्व है।' मरने से पहले गुडी ने शादी रचाई, जिसके लिए बुरा सोचा तथा जिससे लड़ाई की थी उन सभी से माफी मांगकर सभी के दिलों पर छा गईं। शिल्पा के साथ उन्होंने जो किया था उसके लिए चलकर भारत आईं और यहां के हिंदी के एक शो में पूरे भारत को अपना सकारात्मक पहलू दिखाना चाहती थीं। पर कुदरत को कुछ और ही मंजूर था और बिग बॉस उनकी जिंदगी का आखिरी रियालिटी शो बन गया। बिग बॉस का बुलावा आया तो गुडी कंफेशन रूप में गईं पर वह बुलावा बिग बॉस का नहीं बल्कि भगवान का था जिसने गुडी को चेतावनी दे दी कि अब तुम्हारे पास कुछ महीने बचे हैं जितना जीना है जी लो। शायद गुडी की अंतर्रात्मा ने उसे बता दिया था कि अब उसकी कहानी में सिर्फ एक दुखद अंत के सिवा कुछ और नहीं है। गुडी ने एक मां का रोल निभाते हुए बच्चों के भविष्य को बेहतर बनाने का प्रयास करती रहीं। जब डाक्टरों ने कहा कि उनकी जिंदगी में अब सिर्फ कुछ घंटे शेष हैं तो वह अस्पताल से अपने घर चली गईं और वहीं पर अंतिम सांस ली। खबरों के मुताबिक अपनी अंतिम सांस लेने से पहले तक गुडी अपने बच्चों से बात करती रहीं। इसी बीच उनकी सांसे रुक गईं और माहौल आंसुओं में डूब गया। गुडी के प्रवक्ता मैक्स ने इस खबर की पुष्टि की। दो बच्चों की मां 27 साल की गुडी ने दक्षिणी इंग्लैंड में स्थित अपशायर के अपने पैत्रिक गांव में अंतिम सांस ली। अंतिम समय में उनके पति जैक ट्वीड, मां जैकी बडेन और पारिवारिक दोस्त केविन उनके साथ थे। गुडी की मां ने कहा,`मेरी खूबसूरत बेटी हमेशा के लिए शो गई।' फोर्ड ने कहा कि यह कितना विचित्र संयोग है कि गुडी की मौत `मदर्स डें के दिन हुई। एक मां के तौर पर गुडी ने अपने दो बच्चों-पांच साल के बॉबी और चार साल के फ्रेडी के बेहतर भविष्य के लिए अपनी शादी के लाइव प्रसारण तथा अपने परिवार के चित्रों के प्रकाशन के लिए मीडिया के साथ लाखों डॉलर का करार किया था। फोर्ड ने कहा, ``मेरे हिसाब से गुडी को मजबूत दिल वाली युवा लड़की के तौर पर याद किया जाएगा। वह बहुत बहादुर थीं। उन्होंने मौत का ठीक उसी तरह सामना किया, जिस तरह उन्होंने अपना बहादुरी भरा जीवन जिया था।' इसी के साथ गुडी और टीवी के बीच जो अटूट रिश्ता बना था, वह उनकी मौत तक कायम रहा। रिएलिटी शो कार्यक्रमों के माध्यम से लोकप्रियता हासिल करने के बाद गुडी ने अपने साथी कलाकार जेफ बैरिजर से शादी की। दो बच्चों की मां गुडी ने कई फिटनेस डीवीडी जारी किए। उन्होंने न सिर्फ अपना सैलून खोला, बल्कि अपनी जीवनी-`जेड-माइ ऑटोग्राफीं भी लिखी। उनकी जीवनी भी प्रकाशित हुई थी। इसके बाद गुडी ने अपने नाम पर परफ्यूम जारी किया। उन्होंने इसे `शश..जेड गुडीं नाम दिया। वर्ष 2007 में गुडी अपने करियर के सबसे बड़े विवाद में उलझीं, जब उन्होंने `सेलीब्रेटी बिग ब्रदरं कार्यक्रम के दौरान शिल्पा के खिलाफ नस्लीय टिप्पणी की थी।इसके बाद हालांकि गुडी ने शिल्पा के साथ संबंध सुधारने के कई प्रयास किए। भारत जाकर गरीब बच्चों की मदद करना उनके इसी प्रयास के तहत उठाया गया एक कदम था। पिछले साल वह `बिग बॉसं कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए भारत गई थीं लेकिन कैंसर का पता चलने के बाद वह इलाज के लिए स्वदेश लौट आई थीं। यह उनके करियर का अंतिम रिएलिटी कार्यक्रम था। भारत में रहने के दौरान गुडी ने हिंदी सीखने के अलावा भारतीय नृत्य शैली सीखे की कोशिश की। `बिग बॉसं कार्यक्रम के दौरान उन्हें `गुडिया की संज्ञा दी गई थी। पिछले महीने ही गुडी ने अपने बचपन के प्रेमी जैक ट्वीड से शादी रचाई थी।

शनिवार, 14 मार्च 2009

बुढ़ापे का प्यार ठरक्पन नहीं है क्या???

आज(शनिवार 14 मार्च) जब मैंने अपना जीमेल का अकाउंट लागिन किया तो उसमें एक बड़े भाई केचैट स्टेटस में कुछ इस तरह की लाइनें नजर आ रही थीं(मेरे टूटे हुए दिल से, कोई ये आज तो पूछे कि तेरा हाल क्या है, कि तेरा हाल क्या है...)। मैंने उनको बोला भाई इस उम्र में आपका ये हाल किसने किया? इस पर उन्होंने जवाब दिया कि प्यार की कोई उम्र नहीं होती। भाई साहब शादी शुदा हैं उनको मैं करीब से जानता हूं लड़कियों में कोई खास दिलचस्पी नहीं रखते फिर भी मेरे से इस बात पर उलझ पड़े कि प्यार की कोई उम्र नहीं होती। आपने अक्सर इस वाक्य को सैकड़ों अधेड़ या फिर बुजुर्ग लोगों के मुंह से सुन रखा होगा। मैंने जवाब दिया नहीं प्यार की उम्र होती है कि अगर सही समय में 25, 30 साल की अवस्था तक आपको प्यार नहीं हुआ और इसकेबाद आप प्यार सिर्फ ये बात सोचकर करना चाहते हो कि प्यार की कोई उम्र नहीं होती तो मुझे ये गलत लगता है। मेरा मानना है कि एक उम्र के बाद होने वाला प्यार सिर्फ ठरक्पन है। अब उदाहरण के तौर पर कई नामों को गिनाया जा सकता है पर मैं मौजूदा परिप्रेक्ष्य में चांद मोहमद और फिजा मोहमद केठरकी प्यार की ही बात यहां पर करूंगा। प्यार की उम्र होती है यह बात इनकी ऊलजुलूल कहानी से पता चलता है। आफिस में एक लड़की अपने बूढ़े या अधेड़ बास से सिर्फ प्रमोशन केलिए दोस्ती करती है। हिंदी मीडिया में इसे हर जगह कोई भी देख सकता है लड़की देखी बास की सारी जवानी की तमन्नाएं जवां हो गईं। कोई उनका जानने वाला मिला तो चाय केसमय पर यह बात भी कहना नहीं भूले कि प्यार की कोई उम्र नहीं होती। घर में उसी उम्र की लड़की है जिससे महोदय प्यार की पीगें लड़ाने की कोशिश कर रहे होते हैं। जो लड़कियां समझौतरा नहीं करतीं वे या तो संस्थान से विदा हो जाती हैं या फिर उन्हें बदनाम करके निकाल दिया जाता है। ये सिर्फ इसलिए कि प्यार की कोई उम्र नहीं होती। मैं दुनिया का सबसे बड़ा ठरकी आदमी सलमान रुश्दी को मानता हूं उनकेसाहित्य में क्या दम है सिर्फ इसलिए नहीं पढ़ना चाहता कि जिसका आचरण इतना घिनौना है तो उस व्यçक्त की लेखन शैली कितनी घटिया होगी। `प्यार की कोई उम्र नहीं होती´ इस वाक्य केनाम पर प्यार को बदनाम करने वालों की दुनिया में कमी नहीं है। पर आपको एक चीज बता दूं ये निशŽद वाला प्यार सिर्फ उसी समय साकार रूप लेता है जब बूढ़ा बंदा पैसे वाला होता है या फिर उसके हाथ में पावर होती है। इस उदाहरण में चाहे सलमान रुश्दी को देख लो या फिर मटुक नाथ या चांद मोहमद की उदाहरण ले लो। ऐसे में मैं आप से जानना चाहता हूं कि क्या सच में प्यार की कोई उम्र नहीं होती? क्या यह सही है जिसे एक बुजुर्ग व्यçक्त को अपनी बेटी वाला प्यार देना चाहिए वह उससे पत्नी की तरह व्यवहार करना चाहता है। मेरे बातचीत के बीच में भाई साहब ने खफा होकर कहा राधा-कृष्ण की शादी नहीं हुई थी। पर वे एक दूसरे से प्यार करते थे उनकी इस बात पर मैं सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कि कृष्ण भगवान ने इसके अलावा कई और बड़े काम किए थे जिसमें कंस के सहित ढेरों राक्षसों का बध शामिल है। अगर हम उनकेइस आचरण को नहीं अपना सकते तो बुरे आचरण पर ध्यान केंद्रित क्यों करते हैं। मैंने तो लिख दिया कि प्यार की कोई उम्र नहीं होती यह सही है या गलत इस पर मेरी यह राय है। अब आप बताएं कि आपको क्या लगता है।

सोमवार, 9 मार्च 2009

अयोध्या के विकास की अनदेखी क्यों?

अयोध्या के विकास की अनदेखी क्यों?
अमित द्विवेदी
अगर वेदों पुराणों की बातों पर आस्था रखते हुए भरोसा किया जाए तो अयोध्या भगवान राम की जन्मस्थली है। यह उत्तर प्रदेश के अन्य धार्मिक शहरों मथुरा, वृंदावन वाराणसी और इलाहाबाद के तरह ही एक आस्था की नगरी है। पर अब इस शहर को लोग सिर्फ विवादित शहर के रूप में जानते हैं। भाजपा जब कभी मौका मिलता है राम मंदिर निर्माण की बात करकेअयोध्या का नाम कुछ दिनों केलिए सुर्खियों में ला देता है। अन्य पार्टियां इससे अपने जनाधार को मजबूत बनाए रखने के लिए इसे भाजपा का घर समझकर अपनी दूरी बनाकर रखती हैं। इसकेचलते इस शहर का विकास अवरुद्घ हो गया है। दो दशक पहले जहां यह शहर धर्मनिरपेक्षता की मिसाल बना हुआ था वह आज अपने उद्घार केलिए तरस रहा है। पांच हजार से भी अधिक मंदिरों वाले इस अद्ïभुत शहर में इन विवादों केचलते न पर्यटक आना पसंद करते हैं न ही प्रदेश सरकार इसकेविकास को जरूरी समझती है। मैंने इस शहर को बहुत करीब से देखा है। बीस साल पहले अयोध्या के राम की पैड़ी आसपास केशहरों में एक रमणीक स्थल के रूप में वि यात थी। यहां पर लोग दूर-दूर से तैरने व जल क्रीड़ा करने के लिए आते थे। सरयू तट से सटी इस पैड़ी केपार्कों की हरी-भरी घासें और रंग बिरंगी लाइटों से इंद्रधनुषी छटा बिखेरते फव्वारे लोगों का मन मोह लेते थे। उस समय शाम होते ही यहां का नजारा मेले में तब्दील हो जाता था।पर अब यहां का माहौल बदल चुका है। इस पैड़ी से अब सिर्फ बदबू आती है और लोग अपने घरों के कूड़ेदान केरूप में इसका इस्तेमाल करते हैं। हर किसी को लगता है कि यहां केलोग राम मंदिर बनवाने केपक्ष में हैं। पर ऐसा नहींं है यहां केलोग शांति और स्वच्छता चाहते हैं। पूरे देश की तरह यहां पर मुस्लिम आबादी केसाथ-साथ कई धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं। इस शहर केभाईचारे को अगर उदाहरण के रूप में देखा जाए तो इससे बड़ा धर्मनिरपेक्ष शहर कोई पूरी दुनिया में नहीं देखने को मिलेगा। तुलसी की माला, भगवान राम की तस्वीरें, धार्मिक कैसेटें और सीडी तथा चंदन की लकड़ी बेंचकर ना जाने कितने मुस्लिम परिवार यहां पर अपनी रोजी रोटी कमा रहे हैं। अब इन लोगों से अगर शहर केसाधुओं और वहां की जनता को परेशानी नहीं है तो फिर ये पार्टियां इस शहर के पारिवारिक माहौल को खराब करने की कोशिश क्यों करती हैं? यह बात मुझे आज तक समझ में नहीं आई। मैं नहीं कहता कि यहां पर राम मंदिर बने या फिर मस्जिद बने। पर अगर इस शहर की मान्यता के अनुरूप इसे पर्यटकों केलिए संवारा जाए तो क्या बुरा है। इस शहर में पर्यटकों का टोटा सिर्फ इसलिए है क्योंकि यहां पर सुविधाएं न के बराबर हैं। अगर भूले भटके राम की नगरी में आ भी जाए तो वह दोबारा और किसी को इस शहर में नहीं आने देने के लिए प्रेरित करेगा। भाजपा यहां पर एक मंदिर की बात करती है जबकि इस शहर को मंदिरों का शहर कहा जाता है। यहां केहर घर मे मंदिर है। कई किलोमीटर दूर से ही इन मंदिरों पर लगे चमकते खूबसूरत कलश एक धार्मिक शहर होने का लोगों को अहसास कराते हैं। अयोध्या के कई प्राचीन मंदिर धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त होते जा रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि इन मंदिरों को बचाने की बजाय सिर्फ एक मंदिर पर ध्यान क्यों केंद्रित किया जा रहा है। भाजपा के राम मंदिर केराग का प्रभाव इस शहर की व्यवस्था पर पड़ रहा है क्योंकि प्रदेश की सत्ता में काबिज होने वाली अन्य पार्टियों की सरकारें इस शहर को उपेक्षित कर देती हैं उन्हें लगता है कि इससे उनका जनाधार कम होगा। कल्याण सरकार के शासनकाल में कुछ करोड़ रुपये अयोध्या केलिए पास हुए थे जिससे सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए सरयू तट पर कई तरह के निर्माण कार्य कराए गए पर अब व निर्माण धीरे-धीरे खत्म हो जाते हैं। मेरा मानना है कि इस शहर को एक पर्यटन स्थल के रूप में देखते हुए सरकार को इसकेविकास पर ध्यान देना चाहिए जिसकेमाध्यम से पर्यटकों को इस खूबसूरत शहर की ओर आकर्षित किया जा सके।