सोमवार, 9 मार्च 2009

अयोध्या के विकास की अनदेखी क्यों?

अयोध्या के विकास की अनदेखी क्यों?
अमित द्विवेदी
अगर वेदों पुराणों की बातों पर आस्था रखते हुए भरोसा किया जाए तो अयोध्या भगवान राम की जन्मस्थली है। यह उत्तर प्रदेश के अन्य धार्मिक शहरों मथुरा, वृंदावन वाराणसी और इलाहाबाद के तरह ही एक आस्था की नगरी है। पर अब इस शहर को लोग सिर्फ विवादित शहर के रूप में जानते हैं। भाजपा जब कभी मौका मिलता है राम मंदिर निर्माण की बात करकेअयोध्या का नाम कुछ दिनों केलिए सुर्खियों में ला देता है। अन्य पार्टियां इससे अपने जनाधार को मजबूत बनाए रखने के लिए इसे भाजपा का घर समझकर अपनी दूरी बनाकर रखती हैं। इसकेचलते इस शहर का विकास अवरुद्घ हो गया है। दो दशक पहले जहां यह शहर धर्मनिरपेक्षता की मिसाल बना हुआ था वह आज अपने उद्घार केलिए तरस रहा है। पांच हजार से भी अधिक मंदिरों वाले इस अद्ïभुत शहर में इन विवादों केचलते न पर्यटक आना पसंद करते हैं न ही प्रदेश सरकार इसकेविकास को जरूरी समझती है। मैंने इस शहर को बहुत करीब से देखा है। बीस साल पहले अयोध्या के राम की पैड़ी आसपास केशहरों में एक रमणीक स्थल के रूप में वि यात थी। यहां पर लोग दूर-दूर से तैरने व जल क्रीड़ा करने के लिए आते थे। सरयू तट से सटी इस पैड़ी केपार्कों की हरी-भरी घासें और रंग बिरंगी लाइटों से इंद्रधनुषी छटा बिखेरते फव्वारे लोगों का मन मोह लेते थे। उस समय शाम होते ही यहां का नजारा मेले में तब्दील हो जाता था।पर अब यहां का माहौल बदल चुका है। इस पैड़ी से अब सिर्फ बदबू आती है और लोग अपने घरों के कूड़ेदान केरूप में इसका इस्तेमाल करते हैं। हर किसी को लगता है कि यहां केलोग राम मंदिर बनवाने केपक्ष में हैं। पर ऐसा नहींं है यहां केलोग शांति और स्वच्छता चाहते हैं। पूरे देश की तरह यहां पर मुस्लिम आबादी केसाथ-साथ कई धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं। इस शहर केभाईचारे को अगर उदाहरण के रूप में देखा जाए तो इससे बड़ा धर्मनिरपेक्ष शहर कोई पूरी दुनिया में नहीं देखने को मिलेगा। तुलसी की माला, भगवान राम की तस्वीरें, धार्मिक कैसेटें और सीडी तथा चंदन की लकड़ी बेंचकर ना जाने कितने मुस्लिम परिवार यहां पर अपनी रोजी रोटी कमा रहे हैं। अब इन लोगों से अगर शहर केसाधुओं और वहां की जनता को परेशानी नहीं है तो फिर ये पार्टियां इस शहर के पारिवारिक माहौल को खराब करने की कोशिश क्यों करती हैं? यह बात मुझे आज तक समझ में नहीं आई। मैं नहीं कहता कि यहां पर राम मंदिर बने या फिर मस्जिद बने। पर अगर इस शहर की मान्यता के अनुरूप इसे पर्यटकों केलिए संवारा जाए तो क्या बुरा है। इस शहर में पर्यटकों का टोटा सिर्फ इसलिए है क्योंकि यहां पर सुविधाएं न के बराबर हैं। अगर भूले भटके राम की नगरी में आ भी जाए तो वह दोबारा और किसी को इस शहर में नहीं आने देने के लिए प्रेरित करेगा। भाजपा यहां पर एक मंदिर की बात करती है जबकि इस शहर को मंदिरों का शहर कहा जाता है। यहां केहर घर मे मंदिर है। कई किलोमीटर दूर से ही इन मंदिरों पर लगे चमकते खूबसूरत कलश एक धार्मिक शहर होने का लोगों को अहसास कराते हैं। अयोध्या के कई प्राचीन मंदिर धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त होते जा रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि इन मंदिरों को बचाने की बजाय सिर्फ एक मंदिर पर ध्यान क्यों केंद्रित किया जा रहा है। भाजपा के राम मंदिर केराग का प्रभाव इस शहर की व्यवस्था पर पड़ रहा है क्योंकि प्रदेश की सत्ता में काबिज होने वाली अन्य पार्टियों की सरकारें इस शहर को उपेक्षित कर देती हैं उन्हें लगता है कि इससे उनका जनाधार कम होगा। कल्याण सरकार के शासनकाल में कुछ करोड़ रुपये अयोध्या केलिए पास हुए थे जिससे सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए सरयू तट पर कई तरह के निर्माण कार्य कराए गए पर अब व निर्माण धीरे-धीरे खत्म हो जाते हैं। मेरा मानना है कि इस शहर को एक पर्यटन स्थल के रूप में देखते हुए सरकार को इसकेविकास पर ध्यान देना चाहिए जिसकेमाध्यम से पर्यटकों को इस खूबसूरत शहर की ओर आकर्षित किया जा सके।

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