शुक्रवार, 11 जुलाई 2008

यूँ आएगा रामराज्य

कथा चल रही थी बाबा ने कहा माया त्याग दो संसार के चक्करों से मुक्त हो जवोए यही ओ माया है जिसमे हम अपने इस 'बड़े भाग्य मानुष तन' को बर्बाद करते जा रहे हैं। आप ही सोचो क्या करोगे इस माया का जिसमे तुम्हे भगवान् का ध्यान ही न हो. तुम कभी पापा कभी मम्मी तो कभी चाचा के ही जंजाल में फंसे रह जावोगे. बाबा जी की बात को ध्यान से एक श्रोता सुन रहा था उसने वहीं से खड़े होकर आवाज़ लगाई बाबा जी इस माया का हम क्या करें. तभी बाबा के एक भक्त ने स्टेज पर खड़े होकर जवाब दिया वत्स इतना बड़ा हमने पंडाल लगा रखा है इसका लाखों का खर्चा है इसीलिये हर पोल के तरफ़ एक दान पत्र की भी व्यस्था है. दिल खोलकर माया त्यागो ये पत्र उसी के लिए हैं. ये मजाक नही हकीकत है जिसपर हमें कुछ करने की ज़रूरत है. आप ही सोचो वो कौन सा भगवान् है जिसे पैसे की ज़रूरत है. जो इस्वर आप में है उसकी तो हम पूजा करते नही. हाँ लोगों से इधर उधर दौड़कर ये ज़रूर पूछते रहते हैं भगवन कैसे मिलेगा. बाबा जी का भव्य पंडाल जो लगता है उसका खर्चा हर दिन लाखों में आता है जिसे आप स्वयं देते हैं. अगर यही पैसा आप अपने उत्थान में सकारात्मक ढंग से लगायें तो आप अपने साथ दूसरों की भी मदद कर सकते हैं. मुझे लगता है रामराज्य ऐसे ही आयेगा न की बाबा जी के चक्कर लगाने से.
जय श्री राम राम राज्य से

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