रविवार, 6 सितंबर 2009

बालाचढी इतिहास का अनोखा पन्‍ना



हिटलर के सताए पोलिश बच्‍चे जब समुद्र में बहती हुई जहाज में अपनी जिंदगी बचाकर जब जामनगर से 35 किलोमीटर दूर बालाचढी केसमुद्र तट पर लगे। उस समय अलग दुनिया पाकर वे बच्‍चे जब जिंदा निकले भी तो उनके लिए सबकुछ नया था। यह वाकया आज सेलगभग 67साल पहले की है। द्वितीय विश्‍वयुद्व के दौरान हिटलर ने निर्दयता का परिचय देते हुए लगभग दो हजार पोलिश बच्‍चों को एक जहाज में डालकर समुद्र में छोड दिया था। वह जहाज कई महीने बाद बालाचढी के पास समुद्र के किनारे जामनगर के राजा को दिखा। राजा ने अपने सिपाहियों को आदेश दिया कि वह जहाज वहां से किनारे लाया जाए। सिपाहियों ने जब जहाज में जाकर देखा तो उसमें बहुत से बच्‍चों की मौत हो चुकी थी पर कुछ बच्‍चे जिंदा थे। राजा ने उन बच्‍चों के लिए वहां पर स्‍थान बनवाया स्‍कूल बनवाया जहां पर ये बच्‍चे 1942 से लेकर 1946 तक रहे। जो बच्‍चे मर गए थे राजा ने उनकी समाधि भी यहां बनवाई। उस दौर को देखने वाले लोग बताते हैं कि उस घटना ने आसपास के लोगों को हिलाकर रख दिया था। हमेशा शांत रहने वाली इस जगह पर समुद्र की तेज लहरों से ऐसा लग रहा था जैसे वह इस घटना से दुखी होकर मानो प्रलय मचाने वाला है। पर जामनगर के राजा ने जो किया उसके लिए उन्‍हें हमेशा याद रखा जाएगा। आज वह स्‍कूल सैनिक स्‍कूल के नाम से मशहूर है भारत के सभी सैनिक स्‍कूलों में बालाचढी के इस सैनिक स्‍कूल को सबसे अधिक धनी माना जाता है। वे बच्‍चे आज भी इस स्‍कूल को अपनी जिंदगी का अहम हिस्‍सा मानते हैं। स्‍कूल के मुख्‍य गेट पर लगा ममतामयी स्‍टेचू और उस पर लिखे शब्‍द इस बात की गवाही देते हैं कि वे बच्‍चे इस भूमि से कितना अटैच हैं। इस जगह स्थित यह स्‍कूल सिर्फ स्‍कूल नहीं है बल्कि मेहमाननवाजी का मिसाल है। अगर कभी मौका मिले तो यहां आकर देखियेगा पता चलेगा कि शांति किसे कहते हैं और शां‍ति की खोज कैसे की जाती है। यहां दिखने वाले हर आदमी से बात करने का मन करता है क्‍योंकि वहां लोग हैं ही नहीं।

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