शनिवार, 28 अगस्त 2010

कानून का मुजरिम नहीं हीरो डाकू कहिए जनाब

यहां के पचास-पचास किलोमीटर तक कोई महिला नजर भी नहीं आती और तुम यहां फिरौती लेकर आई हो? ये डायलॉग किसी फिल्म का होता तो अब तक सबकी जुबान पर चढ़ गया होता। लेकिन यह संवाद वास्तविक जिंदगी के घटनाक्रम का है जिसमें डाकू की दयालुता का हर ओर गुणगान तो हो रहा है लेकिन वह मीडिया के पकड़ से बाहर है। एक महिला की बहादुरी पर डाकू साहब की उदारता शायद ही कोई भूल पाएगा। इससे एक बात का पता चलता है कि कोई कितना भी बड़ा क्रूर और खतरनाक क्यूं न हो जाए लेकिन उसके दिल के किसी कोने में उदारता जरूर बसती है।
पहले खलनायक की तरह किडनैप किया इसके बाद फिरौती ली और उस व्यक्ति की पत्नी को कुछ गहने गिफ्ट देकर उसे छोड़ दिया जिससे एक डाकू हीरो बन गया। इसमें मुझे जो सबसे अच्छा लगा वह यह कि भले ही सरकार गरीबों के लिए कोई आरक्षण देने को न तैयार हो लेकिन ये डकैत गरीबों की पूजा करते हैं इसीलिए वे फिरौती के लिए किसी ऐसे व्यक्ति का अपहरण करते हैं जो गरीबी रेखा से ऊपर रह रहे हैं।
चलो भगवान ने गरीबों को पैसा नहीं दिया तो अच्छा ही किया कम से कम वे इस पाप की दुनिया में सलामत तो हैं। जिसके पास बहुत सारा धन है वह इस गम से मरा जा रहा है कि कहीं कोई उसका किडनैप न कर ले। मैं तो उस दिन का इंतजार कर रहा हूं जब कोई समाचार चैनल उस डकैत तक पहुंचकर उसका इंटरव्यू लेगा और यह सवाल करेगा कि डाकू सर आखिर आप ऐसा क्यूं करते हैं? इस पर डाकू का वही पुराना जवाब होगा कि मेरे साथ किसी जमींदार ने इस तरह से ज्यादती की उसी का बदला लेने के लिए मैंने हथियार उठाया है।
अब तो टीवी के हास्य शो में भी डकैतों की इन बातों को पेश करके लोगों को हंसाया जा रहा है। एक दिन मैंने टीवी पर देखा कि एक हास्य कलाकार कह रहा था कि इन ठाकुरों और जमींदारों के जुल्मों तले पिसकर चुड़ैलों और डाकुओं का जन्म होता है। जिस तरह से डाकू समाज के लोग आजकल फिरौती की रकम बारगेन कर रहे हैं उस पर आधुनिक बाजार की प्रतिस्पर्धा नजर आती है।
हो सकता है आने वाले दिनों में डाकू एक साथ एक परिवार के दो लोगों का अपहरण करके एक के साथ एक फ्री का ऑफर भी देने लगें। एक की फिरौती दीजिए दूसरे को हम वैसे ही छोड़ देंगे। अगर कानून व्यवस्था का हाल यही रहा तो ऐसा भी होने लगेगा। यही नहीं कुछ दिन बाद डाकू समाज के लोग भी आरक्षण के नाम पर धरना प्रदर्शन करते भी दिखाई दे सकते हैं। एक बहादुर महिला की खबर सबने पढी और उसकी बहादुरी पर नाज किया लेकिन अब तक कोई ऐसा कदम नहीं उठाया गया जिससे हीरो बनने के कगार पर खड़े डाकू भाई साहब पर कानून का शिकंजा कसा जा सके। बस यही हमारे देश की विडंबना है।
अमित द्विवेदी/ /युवा जंक्शन

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