15 नवंबर 2006 को दोपहर 1 बजे का समय था। मैंने एक तय अप्वांटमेंट के तहत अमर उजाला के संपादक शशि शेखर जी के दफतर में दस्तक दी। फार्मल परिचय के बाद सर ने पूछा जयशंकर प्रसाद ने कितने महाकाव्य लिखे थे ? मैंने जवाब दिया आठ महाकाव्य। इतना सुनते ही चेहरे का गंभीर भाव बनाते हुए सर ने कहा सामने वाले को तुम मूर्ख समझते हो। अगर तुमसे कोई सवाल कर रहा है इसका मतलब उसको जवाब जरूर पता होगा। अगर तुम ऐसे सवालों पर तुक्का लगाते हुए इसका मतलब हुआ कि तुम सामने वाले को मूर्ख समझते हो। जवाब न आना दूसरी बात है पर झूठ बोलना सबसे बुरी बात है अगर तुम्हें किसी सवाल का जवाब नहीं पता तो साफ मना कर सकते हो। वैसे भी नौकरी मिलने का मतलब ये नहीं होता कि आप पढना छोड दें। पुरानी चीजें दोहराने में कोई बुराई नहीं है। चलो कोई बात नहीं तुम्हें जब नौकरी ज्वाइन करनी होगी शंभूनाथ जी को बता देना वे तुम्हें तुम्हारा काम समझा देंगे। ये मेरा अमर उजाला का अनोखा साक्षात्कार है जिसमें मैंने किसी ऐसे व्यक्ति से मुलाकात की जिसे मैंने कई आदर्श पात्रों के रूप में किताबों में पढा था। इस घटना ने मुझे एक ऐसी सीख दी जिसे आजतक मैंने याद रखा है। मैंने पहली बार इंटरव्यू दिया और उसमें सवाल का गलत जवाब दिया और मुझे उस दिन परमानेंट नौकरी मिल गई।यहां पर मैं जागरण से आया था। जागरण में मैं पूरे ढाई साल रहा। वहां स्टिंगर था पर खुश था क्योंकि बहुत सारी बाईलाइन छपती थी।
अचानक वहां पर एक ऐसी घटना घटी जिसमें मेरे बास का ट्रांसफर हो गया। एक दूसरे बॉस का आगमन हुआ जो शक्ल से भले मालूम होते थे। पर नोएडा में ज्वाइन करते ही अपने असली रंग में आ गए। शराब से महोदय का गहरा नाता था। कार्यालय में उनके साथ काम करने वालों के लिए एक नया फार्मूला बनाया गया जिसमें हर सप्ताह एक बंदे को शराब का इंतजाम करना था। मुझे इससे परेशानी नहीं थी कि कोई शराब पीता है क्योंकि यह किसी की स्वतंत्रता हो सकती है। पर उनके इस नए प्रावधान का मैं जबरन शिकार होने लगा। मैं दारू नहीं पीता पर उनकी पार्टी में मुझे जबरदस्ती शिरकत करना था। मैंने इसका विरोध किया तो मेरी बीट चली गई। एक दिन महोदय ने मुझसे माफीनामा लिखने को कहा और मेरा धैर्य जवाब दे गया और मेरे मुंह से ऐसी बातें निकल गईं जिसे एक कार्यालय के लिए अच्छा नहीं समझा जाता। मैंने उनसे लडाई करके नौकरी छोड दी। उस शराबी ब्यूरो चीफ को अपना सबसे बडा दुश्मन समझने लगा। पर जब मुझे अमर उजाला में नौकरी मिली तो मुझे ऐसा लगा बुरा आदमी भी अगर कुछ करता है तो उससे भी आपका भला हो सकता है। आज मैं जिस मुकाम पर हूं इसमें एक शराबी का भी हाथ है मैं उस व्यक्ति को मिलकर धन्यवाद तो कहने नहीं जाउंगा पर हां उसके लिए मेरे दिल से कोटि-कोटि थैंक्स निकल रहा है।
मेरे कैरियर को अमर उजाला ने जो दिशा दी उसे मैं जिंदगी भर नहीं भूलूंगा क्योंकि यह ऐसा हिंदी संस्थान है जहां पर सच में काम करने का कारपोरेट माहौल है। अच्छा काम करो तो उसका फल जरूर मिलेगा। बास के पांव छूने की परंपरा नहीं है किसी को कोई समस्या हो तो वह सीधे शशि जी से संपर्क कर सकता है। जहां तक मैं जानता हूं संस्थान के 80 फीसदी लोग जब कुछ कहना होता है तो सीधे संपादक जी को मेल करते हैं। जून में सबका प्रमोशन हुआ तो मैंने सोचा मेरा पिफर कुछ नहीं हुआ। 8 को मैं अयोध्या से लौटा तो मेरी सेलरी का संदेश मेरे मोबाइल पर आया। सेलरी देखकर मैं चौंक गया और सीधे अपने बास के कमरे में गया। मैंने उनसे कहा सर गजब हो गया देखिए न मेरी सेलरी इस बार कितनी ज्यादा आई है। सर ने मुस्कराते हुए कहा अच्छा एक काम करो जितना ज्यादा आई है उसे मुझे दे दो। इतना कहकर वे हंसने लगे और बोले तुम्हारा प्रमोशन हो गया है साथ में इंक्रीमेंट भी मिला है। पर इसके साथ ही सर ने यह शर्त रख दी कि देखो तुम इसे किसी को बताना मत।
मैं सीनियर सब एडिटर/सीनियर रिपोर्टर बन गया और ये बात किसी को न बताउं ये मेरे लिए बहुत बडी बात थी। मैंने इस बात को कुछ विश्वसनीय लोगों से शेयर किया। पर संस्थान में और किसी को पता नहीं चला। पर मैं इस बात को शब्दों में बयां नहीं कर सकता कि इस प्रमोशन ने मुझे कितनी खुशी दी। पर इस खुशी को सेलीब्रेट करने का मौका मुझे अधिक नहीं मिला। दूसरे दिन मुझे हिंदुस्तान से फोन आ गया जिसके लिए मैं कई महीनों से इंतजार कर रहा था। पर हिंदुस्तान को ज्वाइन करने से पहले मेरे साथ दो ऐसी घटनाएं घटीं जिसे मैं कभी भूल नहीं सकता। पहली बार जब हिंदुस्तान में मैं टेस्ट देकर लौट रहा था तो फोन पर बात करते हुए यातायात पुलिस ने मुझे पकड लिया। पर पत्रकार होने के नाते उन्होंने रेड लाइट तोडने का 100 रुपये का जुर्माना लगाकर छोड दिया। इसके कुछ महीने बाद जब एचटी से फाइनल काल आई तो मैं भजनपुरा के तरफ से हिंदुस्तान की ओर जा रहा था गाडी की स्पीड 80 से भी अधिक थी। पता नहीं किन ख्यालों में खोया हुआ था वहां पहले से तैनात पुलिस की स्पीड चेक करने वाली वैन में मैं रिकार्ड हो गया। आगे ट्रैफिक पुलिस से मेरा सामना हुआ। उन्होंने मेरी गलती बताते हुए अपनी चालान काटने की किताब निकाली। मैंने बिना कोई प्रतिक्रिया व्यक्त किए हुए अपनी गलती का खामियाजा भुगता और चालान के रूप में एक हजार रुपये भरे।
मुझे हिंदुस्तान से 20 को आफर लेटर मिला। मैंने 30 जून 2009 को ज्वाइनिंग डेट तय की और इसकी सूचना अपने सर को दे दी। मैंने नोटिस दिया पर मुझे तुरंत कार्यमुक्त कर दिया गया। 21 तारीख को मैं आखिरी बार अपने प्यारे संस्थान अमर उजाला में गया। वहां से जब मैं निकला तो ऐसा लगा जैसे मैं कुछ ऐसा छोड रहा हूं जिसकी कमी मुझे जरूर खलेगी। नौकरी छोड दी यहां के अच्छे लोगों का साथ छूट गया। दूसरे दिन घर में बैठा हुआ ऐसा लग रहा था जैसे मैंने कुछ खो दिया है। पर एक नए चैलेंज को स्वीकार करते हुए मैंने यह कठोर फैसला लिया। मैंने अपने कैरियर को संवारने के लिए यह कदम उठाया। बहुत से लोगों ने मेरे इस कदम की खुलकर सराहना की। अमर उजाला में मेरा बुरा चाहने वाला या सोचने वाला कोई भी शख्श नहीं था। इस संस्थान ने मुझे सौरव, गौरव और महेश जैसे दोस्त दिए। ये ऐसे लोग हैं जो हमेशा मेरे साथ खडे रहते हैं। मैं बहुत नया हूं नौकरियां बदलने का मेरा कोई शौक नहीं रहा है पर अब तक जहां तक मैंने काम किया उसमें अमर उजाला को अव्वल पाया हर मामले में। चाहे कोई कारपोरेट कल्चर की बात करे या कर्मचारियों के हितों की। पर अब मैं एक ऐसी जगह पहुंच गया हूं जहां पर आने का सपना मैं कई सालों से देख रहा था। हिंदुस्तान के लिए मैंने बहुत सारी फ्रीलांसिंग की है। पर अब यहां की एडीटोरियल टीम का हिस्सा बनकर खुश हूं।