शनिवार, 12 जुलाई 2008

कातिल बाप से बेगुनाह बाप तक की कहानी

मीडिया यानी की देश का चौथा स्तम्भ। इसकी कहाने ऐसी है जो कभी भी बदल सकती है. पिछले ५७ दिनों से चल रहे आरुषि के ड्रामे में मीडिया को जो रोल रहा वो बिल्कुल गैर जिम्मेदाराना रहा. सिर्फ़ एक्स्लूसिव ख़बर के चक्कर में जो खबरें मीडिया ने अपनी मर्जी से दिखाईं उसे भी सीबीआई ने बेगुनाह करार दे दिया. शुक्रवार को जब ये ख़बर सीबीआई के तरफ़ से आयी. बस मीडिया वालों का रंग बदल गया. फिर से एक नयी कहानी सबने शुरू कर दी. चैनलों ने ब्रेकिंग न्यूज़ में दिखाया की आख़िर क्या दोष था एक मासूम पिता का. क्यूँ उसे इतनी बड़ी सज़ा दीगयी. अब इन उल्लू के पाठों को कौन बताये की उस बाप को पुलिस से ज्यादा मीडिया ने कातिल ठहराया था. अपने कार्टून के ज़रिये ये सब दिखाया गया की किस तरह से डॉक्टर तलवार ने पहले अपनी बेटी को मारा इसके तुंरत बाद चाट पर ले जाकर नौकर को मर दिया. तकरीबन दो महीने तक मीडिया इस तरह से डॉक्टर तलवार के पीछे पडी रही और ये भी कहने से नही हिचकी की सीबीआई डॉक्टर को बचने की कोशिश कर रही है. अचानक सारा का सारा माहोल ही बदल गया है. अब डॉक्टर को मीडिया एक प्यार करने वाला पिटा बता रही है जिसकी ज़िंदगी का बस एक मकसद उसकी बेटी थी. एक चैनल ने आरुषि के स्विमिंग पूल के विडियो को दिखाकर उसमे ये संबाद बनने की कोशिश कर रहा था जिसमे डॉक्टर तलवार उस चैनल के अनुसार आरुषि को गहराई में ना जाने को बोल रहे थे. तथा आरुषि उन्हें बोल रही थी नही पापा मुझे तैरना आता है. अब आप ख़ुद अंदाजा लगाइए क्या ये वोही राम की धरती है जहाँ लोग रामराज्य में रहते थे. इन मीडिया वालों पर भी अब कोई कानून होना चाहिए जो इन्हे कुत्तों के तरह व्यवहार करने से रोक सके. नही तो ऐसे ही बेगुनाहों के ये जिंदगियां तबाह करते रहेंगे और इन्हे सरकार भी चौथा स्तम्भ कह कर इन पर कोई लगाम नही लगा पायेगी. अब आप ही सोचिये क्या मीडिया का मतलब कहीं से भी ये होता है. बिना तथ्यों को जांचे परखे प्रस्तुत करना खून करने भी बड़ा गुनाह होता है. ये भारतीय कानून नही बल्कि इंसानियत के कानून के अंतर्गत आता है. वैसे मैं आप को बता दूँ इस पर हमें ही शुरुआत करनी है तभी रामराज्य का सपना साकार हो पायेगा.
अमित द्विवेदी

6 टिप्‍पणियां:

avinash ने कहा…

amitjee arushi ke katal mae uske pita talwar ko starting mae accused banaya aur yeh sab private channel ka kiya dhara hai,aur aaj cbi ne ushe begunah sabbit kiya ,kis tarah media ne girgit ke tarah rang badla,mafi chahata hu,aap ne yeh kahi jikra nahi kiya ki aap kis channel se judde hua hai,iska prayachit aap ko bhi karna chahiya,agar aap electronic chhanel se jude hua hai.

Udan Tashtari ने कहा…

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.

वर्ड वेरिपिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी. बस एक निवेदन है.

amit dwivedi ने कहा…

jee haan main media se juda hoon. main amar ujala ke saatha kaam kar rahaa hoon as sub editor cum reporter. par iska matlab ye nahee ki jo mujhe bura lagegaa us par bolna band kar doongaa.

36solutions ने कहा…

हिन्दी ब्लाग का स्वागत है ।
शुरूआती दिनों में वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें इससे टिप्पयणियों की संख्या‍ प्रभावित होती है
(लागईन - डेशबोर्ड - लेआउट - सेटिंग - कमेंट - Show word verification for comments? No)
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बेनामी ने कहा…

एक पत्रकार से ऐसे विचार सुनकर बोहत ही अच्छा महसूस हो रहा है............सच कहूँ, तो मेरे मन से पत्रकारों के लिए सम्मान की भावना समाप्त होते जा रही थी...........इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को जो नंगा वहशीपन रोज़ देखने को मिलता था, उसे देखने के बाद ऐसा लगने लगा था, की शायद सभी पत्रकारों ने अपनी आत्मा को इसी तरह बेच दिया है...............
पर अब लगता है, की इस काली दुनिया में सच्चाई की चमक शायद अभी भी बाकि है..........इंसानियत अभी भी बाकि है..........सच हे है, पांचो उँगलियाँ बराबर नही होती.........हर इंसान एक जैसा नही होता..........कुछ पत्रकार अभी भी है, जिन्हें यह सब ठीक नही लगता........
हम एक व्यावहारिक दुनिया में जीते है. हम ये उम्मीद नही कर सकते, की एक पत्रकार को अगर वह सब कुछ अच्छा नही लगता, जो बाकि सब लोग कर रहे है, तो वह पूरे चैनल को बदल देगा, या सरे पत्रकारों को अपनी तरह सोचने पे मजबूर कर देगा. ऐसा सोचना व्यावहारिक नही है.............जो बात व्यावहारिक है और प्रशंशनीय भी की उसने अपनी बात कही...........उसने सच कहा.........उसने यह बताने का प्रयास किया की दुनिया में सभी लोगो की आत्मा बिकाऊ नही है...........इसलिए मैं masaurhi जी के इस बात का समर्थन नही कर सकता की चुकी श्री अमित जी एक पत्रकार है, इसलिए वो भी दोषी है...........ऐसा कहना बेहद ही अप्रासंगिक है.
हम सच बोलने वालों को प्रोत्साहित न करकर, उन्हें ऐसे बातें कर हतौत्साहित करते है..............शायद इसी वजह से आज इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जंगली कुत्तो की फौज खड़ी हो गई है.......

Asha Joglekar ने कहा…

Very true